वो एक कहावत है कि इंसान कितना भी बड़ा बन जाए, कितनी भी धनदौलत पा ले, लेकिन उसे उसके संस्कारों से मिली सोच उसका जीवन भर पीछा नहीं छोड़ती ! यही कुछ अक्सर इस देश में जब-तब देखने को मिल जाता है! कल से अपने संचार माध्यमो में खासकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया में बस एक ही खबर छा रखी है कि इमरान हाशमी को मुसलमान होने की वजह से फ्लैट नहीं मिला! तिल का ताड़ बनाना तो कोई इनसे सीखे ! और कभी-कभार तो यह देखकर लगता है कि इस देश में न सिर्फ मानसूनी सूखे की स्थिति है अपितु खबरों का भी अकाल पड़ गया है!
मैं श्रीमान इमरान हाशमी या महेश भट्ट के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा, क्योंकि इससे पहले उनसे भी बड़ी-बड़ी हस्तियाँ इस मुद्दे पर अपने मानसिक दिवालियेपन का प्रदर्शन कर चुकी है! और इसे राजनैतिक रंग देने का भरसक प्रयास कर चुकी है! लेकिन जो चंद बाते यहाँ पर मैं कहना चाहता हूँ वह यह कि मैंने मुंबई को बहुत करीब से देखा है! शहर में जमीन की कमी के कारण उस महानगरी का धनी वर्ग भी दिल्ली के धनी वर्ग की तरह इतना खुशकिस्मत नहीं है कि हर कोई जमीन के एक टुकड़े पर अपनी कोठी बनाकर रह सके! अतः उन्हें भी फ्लैट में ही गुजर बसर करना पड़ता है! महानगरी में कोल्हू के बैल की तरह दिनभर पिसने के बाद, शाम को हर इंसान अपने घर पर कुछ पल शान्ति से बिताना चाहता है! और आये दिन हमें खबरों में यह देखने सुनने को मिल ही जाता है कि अमुक फिल्मी हस्ती ने बर्थडे या और किसी पार्टी के अवसर पर रात-भर अपने फ्लैट या बंगले के आस-पास के लोगो को सोने नहीं दिया! लाखो-करोडो की खून- पसीने की कमाई से इंसान अपने लिए एक अदद घर खरीदता है और उसे मालूम पड़े कि उसके पडोष में एक ऐंसी फिल्मी हस्ती बसने जा रही है जो युवा है और न चाहते हुए भी किन्ही वजह से उनके शकुन में खलल पड़ सकता है, क्योंकि उसकी वजह से मोहल्ले में आवाजाही बढ़ जाती है, तो चाहे मैं हूँ या कोई भी हो, इन पहलुवों पर अवश्य गौर फरमाता है!
जैसा कि उन्होंने मीडिया के समक्ष खुद कहा कि सोसाईटी के किसी भी सदस्य ने उनसे इस बात का कोई जिक्र नहीं किया कि उन्हें मुसलमान होने के नाते एनओसी नहीं दी जा रही है, वह सिर्फ अपनी सोच के हिसाब से यह इल्जाम लगा रहे है ! तो क्या यह उचित है, इस बिनाह पर कि वह मुसलमान है, इस देश के बहुसंख्यको पर कोई भी आरोप लगा देगा,बिना यह सोचे-समझे कि एनओसी ना देने का सिर्फ एक ही कारण नहीं है बल्कि और भी बहुत सारे कारण है ? यह बात भी सत्य है कि आज पूरे इस्लाम की जो छबि अपने कृत्यों से तमाम दुनिया में कुछ मुसलमानों ने बना डाली है उसकी वजह से लोग इस विषय पर दो बार सोचने को मजबूर है ! मुंबई एक ऐसा शहर है, जिसने मुसलमानों की वजह से पिछले कुछ दशको में बहुत कुछ सहा-झेला, तो आज अगर वे फूँक- फूँक कर कदम रखते है तो बुराई क्या है? मुसलमान हिन्दुओ पर यह दोष मढ़ने से पहले अपने गिरेवान में क्यों नहीं झांकते कि ऐसी स्थित पैदा क्यों हुई? क्या साम्प्रदायिकता की आड़ में अपनी बात थोपने और भयादोहन(ब्लैकमेल) करने का यह एक अनुचित तरीका नहीं है? और मुझे यह भी अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि लानत है उन हिन्दुत्व के तथाकथित ठेकेदारों पर, जो फायदे के लिए फालतू बातो पर तो उछलते रहते है, मगर जब इस तरह के वेबुनियाद सीधे आक्रमण होते है तो दुबककर बैठ जाते है !
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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सटीक…
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख है
ReplyDelete---------------
चाँद, बादल और शाम
आपका कथन बिल्कुल ठीक है,इमरान हाशमी ही क्यों
ReplyDeleteइससे पहले अनेक लोग ऐसा गलत इल्जाम लगा चुके हैं.नासिरा शर्मा लेखिका जिन्हे दुनिया भर के इनाम हिन्दोस्तान में मिले ने साहित्य अकादमी पर यही इल्जाम लगाया अपने एक इन्ट्र्व्यू में,तस्लीमा नसरीन को सारे मुस्लिम देशो में कहीं जगह न मिली अब भी रह-रह कर भारत लौटती हैं,सल्मान रशीदी लेखक जिस्के खिलाफ़ फ़तवा जारी है के पिता भारत छोड़ पाकिस्तान फ़िर इंगलैंड गये उसके पास ब्रिटिश नागरिकता है को बाप दादा की कोठी शिमला में ६० साल बाद भी सरकार ने मालिकाना हक उसे पिछले साल दिया जैसे अनेक उदाहरण हैं,लेकिन सुर्खियों में आने के लिये,सरकार को ब्लैक्मेल करने के लिये अल्पसंख्यक होने का दुरुपयोग र्तो इनका ब्रह्म अस्त्र है
मेरी गज़ल पर टिपण्णी हेतु आभार
श्याम सखा
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