Friday, August 21, 2009

मुर्खता के 'पर' नहीं होते !

मैने जसवंत जी की किताब नहीं पढी, और न ही कभी पढ़ना चाहूँगा! वह किताब जसवंत सिंह ने ही तो लिखी है, आखिर उस किताब में ऐसा है क्या, जो उसे पढा जाए? जसवंत सिंह कोई बहुत बड़े लेखक तो है नहीं, जो बिना उनकी किताब पढ़े खाना न हज्म हो ! किताब को बेचने के लिए कोई अगर कुछ फालतू का विवादास्पद कबाडा उसमे भर दे, तो क्या हमें वह किताब पढ़ लेनी चाहिए? और अगर इस तरह से कहूँ कि जिन्दगी भर तो कोई ख़ास राह पकड़ कर लोगो को मूर्ख बनावो और जब छक लिए, तो अपने को भला आदमी साबित करने की कवायद शुरू कर दो ! कभी जिन्ना के नाम पर और कभी कुछ और....! कितना हास्यास्पद है न कि जो आदमी जिन्दगी भर हमारे देश के तथाकथित सेकुलरों द्वारा दिए गए कम्युनल होने का लिबास ओढे रहा, वही इंसान आज जाकर किसी और को सेकुलर होने का खिताब बाँट रहा है ! जिस इंसान के प्रति आजतक ये तथाकथित सेकुलर और अल्पसंख्यक, दिल में कूट-कूट कर घृणा का भाव रखते थे, उन्ही के लिए आज वो हीरो बन गए !

तरस आता है मुझे उन लोगो पर भी, जो फालतू में किताब पर पावंदी लगाने और तरह तरह की बाते कर ज़रा सी बात का बतडंग बना, जसवंत सिंह को हीरो बनाने की कोशिश कर रहे है ! अरे भाई, रहा होगा जिन्ना सेकुलर, हमें क्या लेना, देश ने विभाजन का दंश तो आख़िर झेल ही लिया, और देश को विभाजित हुए ६२ साल हो गए ! जसवंत सिंह अपने पक्ष में आज भले ही जो भी तर्क दे, लेकिन उन्होंने इस गडे मुर्दे को इस वक्त पर वेवजह उखाड़ कोई समझदारी वाला काम नहीं किया, किताब लिखना किसी का भी अपना व्यक्तिगत मामला हो सकता है, लेकिन किताब लिखकर देश के हितों के साथ खेलना, उसका व्यक्तिगत मामला नहीं, वह तब, जबकि वे एक सम्मानित पद पर आसीन थे! और साथ ही उन्होंने देश के दुश्मनों को यह सरल तर्क प्रस्तुत करने का मौका दिया है कि इस देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार, यह देश खुद है ! और यह बात वे नहीं कह रहे, बल्कि वह व्यक्ति कह रहा है जो कल तक इस देश की एक मुख्य विपक्षी पार्टी में रहकर देश की सबसे बड़ी देश भक्त पार्टी होने का दावा करते थे !

14 comments:

  1. बहुत सही लिखा है आपने !

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  2. "मुर्खता के 'पर' नहीं होते !"

    lekin udati sabase tej hai !

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  3. सही कहा आपने...मगर आपने भी न अपनी एक अमूल्य पोस्ट और अमूल्य समय उनके नाम कर दिया...:)

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  4. when we reach a ripe age we all introspect and try to find out reasons of events that happened and then we realize that course of destiny is th most important factor .
    people who are above the age of 75 years today also feel that nehru should not have been a pm , had that problem been solved then country would not have been divided

    writing a book on jinaah in no way makes jaswant less patriptic then any of us but the problem is that RSS is not open to critisism

    bjp is left red faced with advani and jaswant writing on jinaah because both of them belive that jinaah was not a villian as generally he is shown to be

    and do you think its a healthy sign for our country to stop people and banish them from writing books

    then in what way we are FREE

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  5. Here I'm not fully agreed with you Rachna ji. Yeah, no doubt that Nehru has played a crucial role to divide this country, and even after partition he had committed many mistakes like Kashmir. But at the same time Jaswant Singh has no right to justify Jinnah's role. As I said writing book is purely a personal matter but it sould not be at the cost of the Nation. You people are not trying to understand the consiquences of this idiotic lyric of Jaswant in long run. To me it looks like Mr. Jaswant Singh has done this book fiasco to keep himself in lime light in public. These types of writings today after 62 years of partition have no relevance. Patel having done every thing to unite the India as a steel man, if he along with Nehru would have done “concede” to Jinnah the Pakistan, it may not be wrong in this present scenario! Otherwise the entire India would have become a state of Pakistan today.

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  6. BJP came into existence very much after the partition and PATEL was a congress man and how can you accept a BJP loyalist to write in favour of patel .

    THe book is against congress and not in favor of Jinnah

    And since when Patel came into BJP I really fail to understand

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  7. रचना जी, यहाँ पर आपके अपने ही शब्दों में विरोधाभास है ! एक तरफ आप ने कहा कि हम एक बीजेपी वाले से यह कैसे उम्मीद कर सकते है कि वह "कोंग्रेसी पटेल " के फेवर में लिखेगा, और दूसरी तरफ आप कह रही है कि कब से पटेल बीजेपी में आ गए जो ये बीजेपी वाले उनका पक्ष लेने लगे? मैं यह भी साफ़ कर दूं कि मैं बीजेपी का कोई 'डाईहार्ड' पक्षधर नहीं हूँ, मगर क्या आप इस बात के लिए,( जैसा कि आपने कहा कि पटेल कोंग्रेसी थे) बीजेपी की तारीफ़ नहीं करोगी कि यह जानते हुए भी कि पटेल कोंग्रेस्सी थे, बीजेपी उनका पक्ष ले रही है ?
    बात यहाँ बीजेपी या आर एस एस की नहीं है, मेरा कहना सिर्फ यह था कि एक बीजेपी के वरिष्ट नेता होते हुए इस तरह के अप्रसांगिक मुद्दे को इस वक्त उठाना क्या जसवंत जी की समझदारी कही जायेगी? इस देश में और बहुत सी ज्वलंत समस्याए है जिन पर बढिया से बढिया किताब लिखी जा सकती है !

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  8. वैसे भी इन नेताओं की किताबें बहुत ही वाहियात और महँगी होती है,पढता भी कौन है??हाँ थोडा हल्ला जरूर होता है...!मुझे हंसी आती है की बहुत कम लोगों ने इसे पढ़ा होगा..पर इस पर बोलना हर कोई चाहता है...

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  9. Sahee hai prasiddhi ke liye aadami kya kya karata hai fir wo jaswant singh hee kyun na ho.

    Jinnah ko secular kehane walon ko kya ye pata na hoga ki desh ka vibhajan unhone isliye karwaya ki musalman hindu bahul rashtra men musalman surakshit nahee hoga halanki wegalat the ise itihas ne hee sabit kar diya.

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  10. यह बीमारी तो उस दिन शुरू हुई जिस दिन चुने गए अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस पार्टी ने इस्तेफ़ा देने के लिए मजबूर किया॥

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  11. इनकी पुस्तक के बारे न्यूज़ में कुछ सुना जरुर था आज आपकी चर्चा से कुछ और जानकारी मिली ....रजनीश जी ने सही कहा इसे बहुत कम लोगों ने इसे पढ़ा होगा..पर इस पर बोलना हर कोई चाहता है...!!

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  12. "अगर इस तरह से कहूँ कि जिन्दगी भर तो कोई ख़ास राह पकड़ कर लोगो को मूर्ख बनावो और जब छक लिए, तो अपने को भला आदमी साबित करने की कवायद शुरू कर दो"

    तो आप मानते हैं कि जसवंत और जसवंत सरीखे लोग (भारतीय झंझट पार्टी के कथित राष्ट्रवादी नेताs) पहले गलत थे और गलत होकर मलाई काटी........

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  13. स्वच्छ सन्देश जी, हम क्या मानते है और क्या नहीं इसके लिए हम किसी से प्रमाण पत्र नहीं लेते ! बस इतना समझ लो कि हम हिन्दुवों में चाहे वह बीजेपी या संघ से सम्बद हो अथवा नहीं, इतनी हिम्मत तो रखते है कि किसी बात का आंकलन कर सके और जो भी सच और झूट हो उसे बयां कर सके !

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।