प्रिय कलयुगी भाइयों, (बहनों के) !
आज रक्षाबंधन है , भाई-बहन के अटूट प्यार और पवित्र बंधन का पर्व !
जैसा कि आप जानते ही होंगे कि पुराने जमाने में जब लोग "वीर" पुरुष हुआ करते थे, सतयुगी हुआ करते थे, उस जमाने में वे इस त्यौहार पर बहन को हर हाल में उसकी रक्षा का वचन देते थे। उस युग में ऐसा माना जाता था कि गहने स्त्री की शोभा होते है, और इसीलिए रक्षा बंधन के दिन भाई लोग अपनी सामर्थ्य के हिसाब से बहनों को उपहार स्वरुप गहने दिया करते थे।
ज़माना कितना बदल गया है न ??!! बहन की अस्मिता पर तो एक बड़ा प्रश्न-चिन्ह हममें से ज्यादातर कल युगी भाइयों ने लगा ही दिया है, जहां तक गहनो की बात है, आप भी अपने दफ्तरों में, बाजार में, सडको पर, घर पर माँ-बहनों को रोजाना देखते ही होंगे, खाली गर्दन, कानो पर नकली टोप्स अथवा कुण्डल, हाथो में नकली कड़े, गले में नकली चेन ! वो इसलिए नहीं कि सोना महंगा हो गया और वे खरीदने में असमर्थ है, वो सिर्फ इसलिए कि हमारा दूसरा कलयुगी भाई झपटमार है ( शायद इसीलिए इस कलयुग में भाई के म्याने भी बदल गए, अंडरवल्ड की दुनिया में सबसे शातिर किस्म के बदमाश को 'भाई' कहा जाता है ) यह वो भाई है जो एक सोने की चेन के खातिर बहन की गर्दन भी काट सकता है। और इन भाइयों के हौंसले कितने बुलंद है इसका एक उदाहरण अभी कुछ समय पहले का यहां पेश करना चाहूंगा ;
गाजियाबाद से दिल्ली आते हुए वसुंधरा लाल बत्ती पड़ती है। ( साहिबाबाद सब्जी मंडी के सामने ) . एक युवती सुबह बस स्टैंड पर चार्टर्ड बस का इन्तजार कर रही थी, तभी मोटर बाइक पर दो युवक आये और उसके गले से चेन झपट कर ले गए। पांच मिनट बाद बाइक मोड़कर वे दोनों "युग-पुरुष" पुनः उस युवती के पास पहुंचे , उसको थप्पड़ मारा , और वह झपटी हुई चेन उसके चेहरे पर फेंकते हुए, भद्दे शब्दों में उसे सम्बोधित कर यह कहकर रफूचक्कर हो गए कि साXXXXX नकली चेन पहनकर घूमती है।
जमाने के आगे हम इक्कीसवी सदी के लोग कितने असहाय हो गए है न ?
खैर, आप सभी को इस पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाये !
सार यही है, इक धागे के पावन- पर्व का,
भाई रखे ख्याल, हर बहना के गर्व का।
आज रक्षाबंधन है , भाई-बहन के अटूट प्यार और पवित्र बंधन का पर्व !
जैसा कि आप जानते ही होंगे कि पुराने जमाने में जब लोग "वीर" पुरुष हुआ करते थे, सतयुगी हुआ करते थे, उस जमाने में वे इस त्यौहार पर बहन को हर हाल में उसकी रक्षा का वचन देते थे। उस युग में ऐसा माना जाता था कि गहने स्त्री की शोभा होते है, और इसीलिए रक्षा बंधन के दिन भाई लोग अपनी सामर्थ्य के हिसाब से बहनों को उपहार स्वरुप गहने दिया करते थे।
ज़माना कितना बदल गया है न ??!! बहन की अस्मिता पर तो एक बड़ा प्रश्न-चिन्ह हममें से ज्यादातर कल युगी भाइयों ने लगा ही दिया है, जहां तक गहनो की बात है, आप भी अपने दफ्तरों में, बाजार में, सडको पर, घर पर माँ-बहनों को रोजाना देखते ही होंगे, खाली गर्दन, कानो पर नकली टोप्स अथवा कुण्डल, हाथो में नकली कड़े, गले में नकली चेन ! वो इसलिए नहीं कि सोना महंगा हो गया और वे खरीदने में असमर्थ है, वो सिर्फ इसलिए कि हमारा दूसरा कलयुगी भाई झपटमार है ( शायद इसीलिए इस कलयुग में भाई के म्याने भी बदल गए, अंडरवल्ड की दुनिया में सबसे शातिर किस्म के बदमाश को 'भाई' कहा जाता है ) यह वो भाई है जो एक सोने की चेन के खातिर बहन की गर्दन भी काट सकता है। और इन भाइयों के हौंसले कितने बुलंद है इसका एक उदाहरण अभी कुछ समय पहले का यहां पेश करना चाहूंगा ;
गाजियाबाद से दिल्ली आते हुए वसुंधरा लाल बत्ती पड़ती है। ( साहिबाबाद सब्जी मंडी के सामने ) . एक युवती सुबह बस स्टैंड पर चार्टर्ड बस का इन्तजार कर रही थी, तभी मोटर बाइक पर दो युवक आये और उसके गले से चेन झपट कर ले गए। पांच मिनट बाद बाइक मोड़कर वे दोनों "युग-पुरुष" पुनः उस युवती के पास पहुंचे , उसको थप्पड़ मारा , और वह झपटी हुई चेन उसके चेहरे पर फेंकते हुए, भद्दे शब्दों में उसे सम्बोधित कर यह कहकर रफूचक्कर हो गए कि साXXXXX नकली चेन पहनकर घूमती है।
जमाने के आगे हम इक्कीसवी सदी के लोग कितने असहाय हो गए है न ?
खैर, आप सभी को इस पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाये !
सार यही है, इक धागे के पावन- पर्व का,
भाई रखे ख्याल, हर बहना के गर्व का।
मैं बस की इंतजारी में खडा था,
और वह वहीं सड़क किनारे,
फटे लिफाफे में चन्दन-अक्षत की
पुडिया में लिपटा पडा था....
सोचा, अपने प्रिय भाई के खातिर
इसे बड़े प्यार से सहेजा होगा,
अवश्य ही , कहीं दूर से उसे
किसी बहन ने भेजा होगा …
असहाय वह अभागा
राखी का इक धागा !
जिसमे बहन की आबरू
ReplyDeleteसड़को पर विखर जाती है ,
वह तो फिर भी
सिर्फ इक धागा है !!
बडा कटु सत्य लिखा है. शुभकामनाएं.
रामराम.
जिसमे बहन की आबरू
ReplyDeleteसड़को पर विखर जाती है ,
वह तो फिर भी
सिर्फ इक धागा है !!
बडा कटु सत्य लिखा है. शुभकामनाएं.
रामराम.
जिसमे बहन की आबरू
ReplyDeleteसड़को पर विखर जाती है ,
वह तो फिर भी
सिर्फ इक धागा है !!
क्या बात कही आपने..
बहुत ही सामयिक और सटीक....
वाह...और कविता ऐसी सटीक की शायद सटीक भी उतनी सटीक न हो....
आप अपनी पीठ ठोक लें हमारी तरफ से...