Saturday, June 12, 2010

इस तरह फर्ज अदा करते मंत्रालय !


जितनी सरकारी रकम खर्च करके सम्बद्ध मंत्रालयों द्वारा अपने चेहते अखबारों की इस विज्ञापन के द्वारा आर्थिक मदद की जाती है, उतने धन से या यूं कहूँ कि सिर्फ एक दिन के विज्ञापन पर खर्च की गई रकम से शायद दस हजार बाल मजदूरों का जीवन संवर जाता ! इस विज्ञापन से आप किस तबके के लोगों को जागरूक कर रहे है ? जो अखबार पढ़ना जानता ही नहीं, या फिर जिसके पास अखबार खरीदकर पढने की औकात नहीं ! क्या शोषणकर्ता वर्ग इन विज्ञापनों को महत्व देता है ?

14 comments:

  1. aap bhi sir dekhte nahi kaisi muskuraati hui sundar tasveerein khinchvaayi hai janaab ne wo bhi to kahin dikhne chahiye...isi bahane paarty workeron ko bhi kuch maal mil jaata hai...

    ReplyDelete
  2. सही कहा आपने। सरकार तो लोगो को बेवकूफ बनाने मे लगी है...देश के धन का सदुपयोग करें तो देश का कुछ भला हो...

    ReplyDelete
  3. ये इंडिया है गोदियाल जी यहाँ भ्रष्ट मंत्री और मिडिया का शर्मनाक गठजोर खुले आम है और यह तभी रुकेगा जब हम जनता इन मंत्रियों को देश के खजाने को अपने बाप का माल नहीं समझने के लिए मजबूर कर देंगे ,तब तक तो ऐसा ही चलता रहेगा ....

    ReplyDelete
  4. .देश के धन का सदुपयोग करें तो देश का कुछ भला हो...

    ReplyDelete
  5. आज की दुनिया का कटु शाश्वत वास्तविक सत्य ..

    ReplyDelete
  6. गौदियाल जी, भला इनके बाप का क्या जाता है...पैसा जनता का, तो चाहे जैसे मर्जी लुटाते रहें

    ReplyDelete
  7. काश..आप जैसी सोच मंत्रियों की भी होती...धन का सदुपयोग तो करते हैं वो ...पर अपने लिए..

    ReplyDelete
  8. सबकी गरीबी दूर करना है... अखबार के मालिकों की भी...

    ReplyDelete
  9. प्यार करो न करो , दिखाना ज़रूर चाहिए ।

    ReplyDelete
  10. बेहद सटीक सोच का परिचय दिया है आपने इस आलेख के माध्यम से ! जो गलत है वह गलत है |
    बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  11. क्या शोषणकर्ता वर्ग इन विज्ञापनों को महत्व देता है ?
    यही तो त्रासदी है जिसके लिये होता है उसे समझ नही आता और जिसे समझ आता है उस पर असर नही।

    ReplyDelete
  12. विलकुल सही कहा आपने ।
    संयोग देखो इसी पर आज हम भी लिखने वाले थे ।

    ReplyDelete
  13. इमानदारी की भी ज़रूरत है. सही लिखा है.

    ReplyDelete
  14. आगया है अब टंगडीमार ले दनादन दे दनादन। दुनिया याद रखेगी। जरा संभलके।

    टंगडीमार

    ReplyDelete

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...