Saturday, August 14, 2010

ब्लैकबेरी बनाम स्विस बैंक !


इसमे कोई सन्देह नही कि देश की आन्तरिक और सामरिक सुरक्षा के नज़रिये से ब्लैकबेरी सेलफोन प्रकरण अनेक देशों की सुरक्षा एजेंसियों के लिये एक संवेदनशील और चिन्ताजनक विषय बन गया है। और दुश्मन देश की गुप्तचर एजेंसिया और बुरे मंसूबे वाले आतंकवादी संगठन और लोग निश्चिततौर पर इसका गलत इस्तेमाल कर सकते है। भारत ही नही बल्कि विश्व के अनेक देशों जैसे चीन, अल्जीरिया, य़ूएई, सऊदी अरब, लेबनान और बहरीन ने भी इस बारे मे कदम उठाने शुरु कर दिये है। देश की सुरक्षा चिन्ताओं के प्रति हमारी अत्यधिक सजग सरकार ने भी त्वरित कार्यवाही करते हुए दूरसंचार प्रदाताओं और ब्लैकबेरी की निर्माता कम्पनी रिसर्च इन मोशन (रिम) को नोटिस दिया था कि अगर सुरक्षा एजेन्सियों को ब्लैकबेरी एंटरप्राइज सर्विसेज और ब्लैकबेरी मेसेंजर सर्विसेज तक पहुंच नही मुहैया कराई गई तो ३१ अगस्त तक ब्लैकबेरी की सेवायें बंद कर दी जायेंगी। मरता क्या नही करता वाली कहावत के हिसाब से शुरुआती ना-नुकुर के बाद ब्लैकबेरी ने सरकार की बात मान ली है। मानेंगे भी क्यों नही धंधा जो करना है। और देश की सुरक्षा के लिहाज से इसके उपभोक्ताओं को भी यह बात भली प्रकार से समझ आती है। हां, जहां तक भारत का सवाल है, मैं कल पाकिस्तान के एक प्रतिष्ठित दैनिक की वेब-साइट पर इसी से सम्बंधित एक लेख पढ रहा था, जिससे यह स्पष्ठ होता है कि इस बात से कुछ पाकिस्तानियों के पेट मे दर्द उठने लगा है कि भारत शर्ते न मानने पर ब्लैक बेरी की सेवायें रोक सकता है।

इस बात से एक और चीज स्पष्ठ होती है कि सरकार अगर दृढ इच्छा शक्ति रखती हो तो बहुत कुछ कर सकती है। लेकिन अफ़सोस कि हमारे ये तथाकथित “सजग”सरकारों के नुमाइंदे अपने निहित स्वार्थो के चलते वहां रजाई ओढकर सो जाते है, जहां इन्हे वास्तव मे अति सजगता दिखानी चहिये थी। मुझे यह देखकर हैरानी और आश्चर्य होता है कि एक अदना सा हराम की कमाई खाने वाला देश, स्विटजरलैण्ड ( यह देश भारत के भी तकरीबन ८० लाख करोड रुपयों के ऊपर कुंड्ली मार के बैठा है, और ब्याज की कमाई पर खूब ऐश कर रहा है) पिछ्ली तकरीबन एक सदी से पूरे विश्व मे आर्थिक आतंकवाद फैलाये हुए है, यह दुनिया मे भ्रष्ठाचार का जन्मदाता और मुख्य स्रोत है, और जिसके हाई-प्रोफाइल आतंकवादी समूची दुनिया मे फैले है। यह देश ओसामा बिन लादेन से भी कई गुना बडा अपराधी है, और इसके पाले हुए ये आर्थिक अपराधी अल-कायदा से भी कई गुना अधिक खतरनाक है, क्योंकि ये लोग उस प्रक्रिया से धन चुराते है जिसमे देश की तमाम जनता का हित निहित होता है। और इनकी कारगुजारियों का खामियाजा असंख्य लोगो को आगे चलकर अपनी जान देकर चुकाना पडता है। मसलन यदि कहीं पर किसी नदि का एक तटबन्द घटिया सामग्री से बनाकर उच्च पदस्थ लोग बजट का वास्त्विक पैसा घोटाला करके स्विस बैंक मे जमा कर दे, और आगे चलकर वह तटबंद बरसात में टूटकर पूरा गाँव ही बहा ले जाए तो यह कृत्य किसी भी आतंकवादी हमले से कहीं बढकर है, जिसे लोग मात्र एक दैवीय विपदा मानकर भूल जाते है।

भेद-भाव की हद देखिये कि खुद को दुनिया का थानेदार बताने वला यह तथाकथित सभ्य देश, अमेरिका १९४५ मे द्वितीय विश्व युद्ध के दर्मियान, जापान को दुनियां के लिये खतरा बताकर उसके दो शहरों के असंख्य निर्दोष नागरिकों को परमाणु बम गिराकर मौत की नींद सुला देता है। ०९/११ के बाद से अब तक इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को दुनिया के लिये खतरा बताकर असंख्य इराकियों को मौत की नींद सुला चुका है। लेकिन एक यह देश स्वीटजलैंड, जो दुनियां के अरबों लोगो का गुनाह्गार है, जो कि हिरोशिमा और नागासाकी के बजाय परमाणु बम का स्वाद चख्नने का ज्यादा हकदार था, जिसकी हुकूमत सद्दाम हुसैन से ज्यादा इस दुनिया के लिये खतरनाक है, और सद्दाम के साथ किये गये भी बुरे वर्ताव से अधिक की हकदार है,क्योंकि यह देश अप्रत्यक्ष तौर पर भ्रष्ट और गद्दार लोगो को गद्दारी और चोरी के लिए प्रोत्साहित करता है, उसके बारे मे दुनिया का कोइ भी देश कुछ नही बोलता है। और वह देश व्यक्तिगत आजादी और गोपनीयता की दुहाई देकर नैतिकता और इमानदारी को धत्ता दिखाकर दुनियां मे भ्रष्ठाचार और दुराचार को खुले-आम बढावा देकर, लूटे गये धन को अपने देश मे रखवाकर, उस धन से अपनी समृद्धि का डंका पीट रहा है। जरा सोचिये कि अपने देश मे यदि गलती से भी कोई सुनार / जवैलर किसी लुटेरे से लूटे हुए आभूषण भी खरीद ले तो उसे भी सख्त सजा दी जाती है, लेकिन स्विस बैंक के बारे मे कुछ बोलने की किसी मे जरा भी नैतिक्ता नही बची।जबकि यह देश हमारे राष्ट्रीय हितो के लिए ब्लैकबेरी से कहीं अधिक खतरनाक है।

15 comments:

  1. गोंदियाल साहब मैं आपसे एकबार फिर पुर्णतः सहमत हूँ. ब्लेक्बेरी पर कार्यवाही करना बड़ा आसान है क्योंकि इस कम्पनी में हमरे नेताओं का पैसे नहीं फंसा होगा पर स्विट्जर्लैंड पर कोई भी कार्यवाही करने से तो हमरे देश के कर्णधारों के खून पसीने की कमाई ही आधार में लटक जाएगी तो भला कार्यवाही कैसे होगी.

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  2. बहुत सुंदर लिखा आप ने, ओर यह स्विट्जर्लैंड मुझे बिलकुल पसंद नही आया.....

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  3. सरकार चाहे तो क्या नही कर सकती मगर करे क्यूँ? आज सरकार के पास इन सबके लिये वक्त ही कहाँ है पहले अपनी कुर्सी की तो फ़िक्र कर ले जनता और उसका धन तो सिर्फ़ सरकार के भोगने के लिये होते हैं ना कि जनता के लिये।

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  4. आपके लिखों से बहुत नयी जानकारी मिलती है...सच ही सरकार चाहे तो क्या कुछ नहीं के सकती ...पर अपने पैर पर कुल्हाड़ी कौन मारेगा ?

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  5. सुन्दर प्रस्तुति
    स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामना.

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  6. महेन्द्र मिश्र जी, सच कहु तो मेरा इस बार किसी को भी आजादी की शुभ् कामनाये देने का कतई मूड नही, फिर भी आपको भी स्वतन्त्र्ता दिवस की शुभ काम्नाये !

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  7. हर शाख़ पे उल्लू बैठे हैं, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा:)

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  8. पैरों पर खड़े होने की ताकत रखने वाले देश यदि स्टैंड नहीं ले पायेंगे तो क्या मालदीव लेगा। नीयत ठीक होनी पड़ेगी पर।

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  9. गोदियाल साहब,कुंए में ही भांग पड़ी है।
    सब मदमस्त हैं,देश की किसको पड़ी है।
    जब एक अधिकारी के पास हजारों करोड़ नगद मिल रहे हैं। सोचना पड़ता है कि भ्रष्टाचार देश को कितना खोखला कर चुका है।

    अच्छी पोस्ट

    आभार

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  10. गोदियाल जी! आप भी हमारे समाजसेवी, कर्मठ और देसप्रेमी नेताओं के पीछे पड‌ गए हैं… ई सब गाढे खून (देस के मासूम जनता का) अऊर पसीना (देस का करोड़ों कामगार लोगों का) का कमाई है अऊर आप उसपर भी न जाने का का बोले जा रहे हैं. ई सब अच्छा बात नईं है!!

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  11. देश की सुरक्षा सर्वोपरि होती है। मेरा मानना है कि इसके आढ़े कोई भी आए कार्रवाई होनी ही चाहिए। ब्लैक बैरी को नोटिस दो अगर न माने तो उसकी सेवाओं पर तत्काल रोक लगा देना चाहिए। आपकी चिंता वाजिब है।
    स्वाधीनता दिवस पर आपको शुभकामनाएं।

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  12. स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  13. जनता के धन से ये खेल रहे, सत्ता का नशा सिर रहता है
    इनकी सुख-सुविधाओं में, जनता का पैसा बहता है
    मजदूर-किसान के तन से, बन खून पसीना बहता है
    पर इनको भला आराम कहाँ, दुख मान मुक्कदर सहता है!!

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  14. उल्लूओं की नगरिया है , स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.

    रामराम.

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  15. सच है गौदियाल साहब .. स्विस के ख़तरनाक इरादों से परदा हटना चाहिए ... फिर चाहे बॅंक हो या ब्लककबेरी ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।