Wednesday, August 18, 2010

ताक बैठे है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर!




क्या कभी सोचा है तुमने इस सवाल पर,
क्यों आज ये देश है अपना, अपने ही हाल पर।
ढो रहा क्यों अशक्त शव अपना काँधे लिए,
ताक बैठे  है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥

भ्रष्टाचार भरी आज यह सृष्ठि क्यों है,
कबूतरों के भेष में बाजो की कुदृष्ठि क्यों है।
'शेर-ए-जंगल' लिखा क्यों है गदहे की खाल पर,
ताक बैठे  है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥

महंगाई से निकलता दरिद्र का तेल क्यों है,
राष्ट्र धन से हो रहा फिर लूट का खेल क्यों है।  
शठ प्रसंन्न है आबरू वतन की उछाल कर,
ताक बैठे  है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥

17 comments:

  1. आज के हालात बयां कर दिए आपने !
    बेहद उम्दा रचना !

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्‍छी रचना !!

    ReplyDelete
  3. आज का हाल बयाँ कर दिया ……………देश के हाल पर जो तड्प है वो उभर कर आयी है।

    ReplyDelete
  4. क्या कहें इन साले भ्रष्ट नेताओं से तो गिद्ध भी अच्छे हैं जो जिन्दा इंसान को नहीं खाते हैं ,ये साले हरामी सूअर की औलाद तो जिन्दा इंसान को नोच कर खा रहें हैं ...अब तो इन सालों का कुछ सोचना ही होगा एकजुट होकर ...

    ReplyDelete
  5. उल्लू बनी जनता, बैठी होगी हर साख पर.

    लूटेरे बनाएंगे हवा महल, शहीदों की राख पर.

    ReplyDelete
  6. बड़ी ही धारदार रचना। इन गिद्धों के कारण सबका विश्वास उठ रहा है प्रजातन्त्र पर।

    ReplyDelete
  7. प्रभावशाली रचना ।

    ReplyDelete
  8. आपकी रचनाओं की धार इतनी पैनी है कि एक दिन ये बुराइयों को काटेगी जरूर..

    ReplyDelete
  9. बेहद सटीक और पैनी रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  10. "जहां 'शेर-ए-जंगल' लिखा होगा,हर गदहे की खाल पर"

    बहुत सटीक और उम्दा रचना.

    ReplyDelete
  11. गोदियाल साहब! ई ता पूरा चिड़ियाखाना हो गया है... उल्टा लटका हुआ चमगादड़ भी होगा कहीं कोना में... एकदम सकह्चा तस्बीर खींचे हैं आप!!

    ReplyDelete
  12. Behad Prabhavshali rachana...dhanywaad!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

    ReplyDelete
  13. बहुत अच्छी रचना ...तीखा कटाक्ष ...

    ReplyDelete
  14. सामयिक कबिता क़े लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
    क्या करेगे इन देश द्रोहियों क़ा

    ReplyDelete

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।