क्या कभी सोचा है तुमने इस सवाल पर,
क्यों आज ये देश है अपना, अपने ही हाल पर।
ढो रहा क्यों अशक्त शव अपना काँधे लिए,
ताक बैठे है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥
भ्रष्टाचार भरी आज यह सृष्ठि क्यों है,
कबूतरों के भेष में बाजो की कुदृष्ठि क्यों है।
'शेर-ए-जंगल' लिखा क्यों है गदहे की खाल पर,
ताक बैठे है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥
महंगाई से निकलता दरिद्र का तेल क्यों है,
राष्ट्र धन से हो रहा फिर लूट का खेल क्यों है।
शठ प्रसंन्न है आबरू वतन की उछाल कर,
ताक बैठे है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥
क्यों आज ये देश है अपना, अपने ही हाल पर।
ढो रहा क्यों अशक्त शव अपना काँधे लिए,
ताक बैठे है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥
भ्रष्टाचार भरी आज यह सृष्ठि क्यों है,
कबूतरों के भेष में बाजो की कुदृष्ठि क्यों है।
'शेर-ए-जंगल' लिखा क्यों है गदहे की खाल पर,
ताक बैठे है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥
महंगाई से निकलता दरिद्र का तेल क्यों है,
राष्ट्र धन से हो रहा फिर लूट का खेल क्यों है।
शठ प्रसंन्न है आबरू वतन की उछाल कर,
ताक बैठे है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥
आज के हालात बयां कर दिए आपने !
ReplyDeleteबेहद उम्दा रचना !
बहुत अच्छी रचना !!
ReplyDeleteek sam sach likha hai aapne
ReplyDeleteआज का हाल बयाँ कर दिया ……………देश के हाल पर जो तड्प है वो उभर कर आयी है।
ReplyDeleteक्या कहें इन साले भ्रष्ट नेताओं से तो गिद्ध भी अच्छे हैं जो जिन्दा इंसान को नहीं खाते हैं ,ये साले हरामी सूअर की औलाद तो जिन्दा इंसान को नोच कर खा रहें हैं ...अब तो इन सालों का कुछ सोचना ही होगा एकजुट होकर ...
ReplyDeleteउल्लू बनी जनता, बैठी होगी हर साख पर.
ReplyDeleteलूटेरे बनाएंगे हवा महल, शहीदों की राख पर.
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबड़ी ही धारदार रचना। इन गिद्धों के कारण सबका विश्वास उठ रहा है प्रजातन्त्र पर।
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना ।
ReplyDeleteआपकी रचनाओं की धार इतनी पैनी है कि एक दिन ये बुराइयों को काटेगी जरूर..
ReplyDeletewapas aaya dekh achchha laga bahut.. :)
ReplyDeleteबेहद सटीक और पैनी रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
"जहां 'शेर-ए-जंगल' लिखा होगा,हर गदहे की खाल पर"
ReplyDeleteबहुत सटीक और उम्दा रचना.
गोदियाल साहब! ई ता पूरा चिड़ियाखाना हो गया है... उल्टा लटका हुआ चमगादड़ भी होगा कहीं कोना में... एकदम सकह्चा तस्बीर खींचे हैं आप!!
ReplyDeleteBehad Prabhavshali rachana...dhanywaad!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
बहुत अच्छी रचना ...तीखा कटाक्ष ...
ReplyDeleteसामयिक कबिता क़े लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteक्या करेगे इन देश द्रोहियों क़ा