Sunday, August 1, 2010

तेरे चाहने वाले, तमाम बढ़ गए है|

सर्द मौसमी पुरवाइयों के पैगाम बढ़ गए है,
कुदरत के कातिलाना इंतकाम बढ़ गए है।  


मुश्किल हो रहा है इस तेरे शहर में जीना,
शाम-ए-गम की दवा के दाम बढ़ गए है॥

तरक्की की पहचान थी जो चौड़ी सड़कें,
उन पर भी सुबह-शाम जाम बढ़ गए है।


चुसे,पिचकाए मिल जाते हैँ पटरियों पर,
आदमी दीखता नही बस आम बढ़ गए है॥

किया बेदखल जबसे हया को शहर से,
नुक्कड़ों पर तभी से बदनाम बढ़ गए है।


'बेईमानी' से की है 'दौलत' ने जबसे शादी,
नैतिक पतन  के काफी काम बढ़ गए है॥

परमार्थ रखा जबसे तृष्णा ने नाम अपना,
स्वामी-महंतों के कुटिल धाम बढ़ गए है।

कहे 'परचेत' खुश होले घोटालों की जननी,
तेरे चाहने वाले तो अब तमाम बढ़ गए है॥

35 comments:

  1. जन-सेवा की आड़ में अपनी तृष्णा-तृप्ति लेकर,
    स्वामी-महंतों के भी कुटिल धाम बढ़ गए है।
    गोदियाल कहे खुश होले, ऐ भ्रष्ठाचार की जननी,
    हर तरफ, तेरे चाहने वाले तमाम बढ़ गए है॥
    .....samaj mein asamajik taton ka bolbala sare aam din-b-din badhta jaa raha hai, aur aam jan ka dard sunene wale kam hote jaa rahe hai..
    .. Samajik bidambana ka bahut hi marmsparshi chitran kiya hai aapne.. aabhar

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  2. सत्यता के बेहद करीब की पोस्ट

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  3. @पी.सी .गोदियाल जी

    मैं आपको हम सबके साझा ब्लॉग का member और follower बनने के लिए सादर आमंत्रित करता हूँ,

    http://blog-parliament.blogspot.com/

    कृपया इस ब्लॉग का member व् follower बनने से पहले इस ब्लॉग की सबसे पहली पोस्ट को ज़रूर पढ़ें

    धन्यवाद

    महक

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  4. वाह , गोदियाल जी ।

    डेढ़ महीने की छुट्टी कहाँ काट कर आ रहे हैं ।
    ये शहर वो रहा नहीं , बस जिए जा रहे हैं ।

    बेहतरीन व्यंग लिखा है आपने ।

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  5. वाह , गोदियाल जी ।
    बेहतरीन व्यंग लिखा है आपने ।

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  6. kahan the aap sir abhi tak...

    we are miss u.....

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  7. इंसान की कमी हर जगह हो गयी है चाहे मित्र हो ,रिश्तेदार हो या आस-पड़ोस | जरूरत है इंसान बनने,बनाने और इन्सान की मदद व सुरक्षा हर-हाल में करने की | अच्छी प्रस्तुती बहुत दिन बाद आपका ब्लॉग पढ़ व देख सका हूँ | ब्लॉग संसद का सदस्य आप भी बनिए ये हमारी भी इक्षा है ...

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  8. बेह्द उम्दा व्यंग्य्।

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  9. आप ने तो बिलकुल सच सच लिख दिया अपनी इस सुंदर कविता मै, ओर यही है आज का नंगा सच.
    धन्यवाद.

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  10. गोंदियाल जी वापस स्वागत है आपका.

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  11. स्वागत है गोदियाल जी । आते ही धज्जी उड़ा दी ,बहुत खूब ।

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  12. धमाकेदार वापसी पर एक सटीक रचना !

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  13. सुन्दर प्रस्तुति
    मित्र दिवस की शुभकामनाये ....

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  14. तरक्की की पहचान बनी सुन्दर चौड़ी सड़कें है,
    ये बात और है कि इन पर, जाम बढ़ गए है।

    जन-सेवा की आड़ में अपनी तृष्णा-तृप्ति लेकर,
    स्वामी-महंतों के भी कुटिल धाम बढ़ गए है।

    बहुत करारा व्यंग ....बहुत लंबी छुट्टी ली आपने ....

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  15. वायरस बहुत तेज़ी से फैलता है न.

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  16. वाह वाह एक एक पंक्ति में जम के धुलाई की है आपने ..कोई कोर कसर बांकी नहीं रखी

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  17. सर्द मानसूनी पुरवाइयों के पैगाम बढ़ गए है,
    मौसम के जुल्म कातिलाना,सरेआम बढ़ गए है।
    बहुत दिनों बाद आप आये और ग़म को भुलाने के जाम भी साथ लाये बधाई

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  18. बहुत अच्छी कबिता जो बर्तमान क़े काफी नजदीक
    धरातल पर लिखी गयी कबिता
    बहुत सुन्दर.

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  19. बहुत अच्छी कबिता जो बर्तमान क़े काफी नजदीक
    धरातल पर लिखी गयी कबिता
    बहुत सुन्दर.

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  20. गोदियाल जी!
    आपको बहुत दिनों के बाद नेट पर पढ़ रहा हूँ!
    --
    बहुत सुन्दर रचना है!
    --
    मित्रता दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  21. क्या, गोदियाल साहब, कहां गायब हो गये थे? बहुत मिस किया आपको।
    लेकिन वापिसी धमाकेदार की है, मज़ा आ गया है।
    बधाई।

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  22. वाह , गोदियाल जी ।
    बेहतरीन व्यंग लिखा है आपने ।

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  23. वाह वाह गोदियाल जी
    रचना पढकर मजा आ गया।
    हमने एक खत भेजा था आपको
    लेटरबाक्स में ही फ़ना हो गया

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  24. वाह! क्या बात है! बहुत सुन्दर!

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  25. सटीक और करारी रचना..जय हो!

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  26. गोदियाल जी स्वागत है ...बहुत सुंदर बात कही आपने बढ़ती आबादी के साथ साथ बहुत कुछ बढ़ रहा है...और इनका ऐसे निरंतर बढ़ाना तरक्की का संकेत कतई नही है..बहुत खूब ...बधाई

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  27. क्या धोया है, पढ़कर मज़ा आ गया।

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  28. मंगलवार 3 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  29. गोदियाल जी.... नमस्कार....

    कैसे हैं आप? आज बहुत दिनों के बाद आपको देखा... डॉ. दराल जी के पोस्ट पर... तभी पता चला की आप आ गए हैं.... बहुत अच्छा लगा... आपको वापिस देख कर... उम्मीद करता हूँ कि आप ठीक होंगें... और अभी आपकी पोस्ट भी देखी... बहुत अच्छी लगी... अपना हालचाल ज़रूर मेल करियेगा... और प्लीज़ अपनी जीमेल की आई.ड़ी. दीजियेगा... mailtomahfooz@gmail.com पर...

    सादर

    महफूज़...

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  30. महफूज जी, सादर अभिवादन !
    मैंने अपनी इ-मेल आई डी तो आपको करीब दो महीने पहले ही ( जब पहली बार अपने माँगी थी ) भेज दी थी, आप अपना मेल बॉक्स चेक करें कही मेल स्पैम में तो नहीं जा रही ?

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  31. @ बेईमानी' संग रचाई है,'दौलत' ने जबसे शादी,
    घरेलू उद्यमों में भी अब बुरे काम बढ़ गए है...
    जन-सेवा की आड़ में अपनी तृष्णा-तृप्ति लेकर,
    स्वामी-महंतों के भी कुटिल धाम बढ़ गए है...
    पैनी नजर है आपकी इस बदलते समाज पर ...मगर यह चेतना ही इसे सही राह पर लाने में भी मददगार होगी ...!

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  32. बहुत दिनों के बाद आप को पढने को मिला है, अच्छा लगा।
    बहुत सुन्दर व्यंग्य कविता
    यह रचना पढवाने के लिये आभार
    प्रणाम

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  33. जमाकर कर कूट दिया आज तो.

    रामराम

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।