Sunday, August 8, 2010

आस्था ही सड्क पर न आ जाये, इसका भी ध्यान रखे !


अब जब श्रावण मास अपने अंतिम चरण मे पहुंच गया तो अब जाकर उत्तर भारत के खासकर चार राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा के बहुत से लोगो की जान मे जान आई है। हर साल की भांति इस साल भी सड्कों पर कांवड़ियों का हुजूम उमडा। पूरे श्रावण माह कांवड़िये उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धूम मचाये रहते हैं। दूर-दूर से ये हरिद्वार आते हैं, और यहां से गंगाजल लेकर इच्छित शिव मंदिर में जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। यहां तक कि ये कांवड़िये अब गंगोत्री और गौमुख तक जाने लगे हैं। इनका दायरा अब राज्य स्तर तक पहुंच रहा है। जिसके लिये सम्बद्ध राज्य सरकार और प्रशासन को एक महिने पहले से युद्ध-स्तर पर तैयारियां शुरू करनी पडती हैं।

चुंकि यह करोडों हिन्दुओं की अस्था से जुडा मसला है इसलिए भावनाऒं का आदर भी नि:सन्देह जरूरी है। मगर साथ ही हमे यह भी देखना होगा कि कहीं कोई चीज अत्याधिक तो नही हो रही? भग्वान शिव के प्रति जनता के मन मे जो आदर और आस्था है, हमारे कृत्य कहीं उसे कोई चोट तो नही पहुचा रहे ? क्योंकि पिछले आठ-दस सालों से जबसे हमारे इस देश की दोयम दर्जे की राजनीति ने आस्था के इस क्षेत्र मे अपनी घुसपैठ बनाई है, यह देखा जा रहा है कि इस प्रदेश/ क्षेत्र का आम निवासी अपने को विचलित/बेआराम मह्सूस करने लगा है। हिन्दू धर्म से जुडे किसी भी आस्थावान व्यक्ति को शायद ही यह बताने की जरुरत पडे कि इस धर्म के मूल सिद्धान्तों मे से एक प्रमुख सिद्धान्त यह भी है कि हम अपनी धार्मिक प्रथाओं और कार्यों का निष्पादन करते वक्त किसी दूसरे को कष्ठ न तो पहुंचाये और न ही होने दे। अन्यथा वह निष्पादित धार्मिक कार्य सफ़ल नही माना जाता।

आज के हालात मे यह भी एक सच्चाई है कि तेजी से बढ्ती जनसंख्या और सडक यातायात पर बढ्ते वाहनो के दबाव के आगे हमारे ढांचागत साधन बौने साबित हो रहे है। इन ढांचागत साधनों की भी अपनी कुछ सीमाए है, जिनके भीतर ही रहकर हमें इनका इस्तेमाल करना है। मसलन किसी सड्क को हम सिर्फ़ एक सीमा तक ही चौडा कर सकते है,उससे आगे नही। और जिस तरह से कुछ लोग धर्मान्धता,अन्धविश्वास और भावनात्मक उन्माद मे बहकर सिर्फ़ गंगाजल लाने के लिये अपनी और स्थानीय लोग की जान खतरे मे डालकर गंगोत्री और गौ-मुख तक सड्कों पर "कांवड-हुड्दंगता" मचाने लगे है, वह सरासर गलत है। एवंम जिसका खामियाजा अभी खुछ रोज पहले सारे नियम कानून ताक पर रखकर रात को ( पहाडो मे रात को सड्क पर गाडी चलाने की मनाही होती है) ट्रक से गंगोत्री जा रहे करीब २५ कांवडियों को अपनी जान गवांकर चुकाना पडा।


(छवि गुगुल से साभार)






संविधान के हिसाब से इस देश मे हर नागरिक को अपनी धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार है, और हमे निष्ठा से अपने इस अधिकार का उपयोग भी करना चाहिये। मगर साथ ही मै सरकार और इन शिव भक्त कांवडो से यह गुजारिश भी करुंगा कि वे जनता की परेशानियों का भी ध्यान रखे। मुझे याद है कि १०-१२ साल पहले तक भी इस क्षेत्र मे हर साल कांवड चलती थी, लेकिन कभी किसी को कोई दिक्कत नही हुई। ये भी नही है कि अभी कुछ सालों मे ही आवादी बढी हो, हां बढे है तो सड्कों पर वाहन, राजनैतिक हस्त:क्षेप, बेरोजगार और हुडदंगी, जो ये सोचते है कांवड के नाम पर सडकों पर हमारी खूब आवाभगत होती है इसलिये डिवाईडर के दोनो ओर के सडक पर जंहा मर्जी हो, वहां बेधडक चलकर अपना हुडदग दिखायें। बढे है तो वे पैसे वाले जो ये समझते है कि हर चार कदम पर बीच सडक पर कही भी टेन्ट गाढकर फ्री मे पुण्य कमाया जाये, मानो सडक इनके बा**..................। ये भी ध्यान रखे कि दूसरों को कष्ठ देकर आपको पुण्य प्राप्त हो जाये, यह नामुम्किन सा लगता है। दो-दो करके अगर भक्त कांवड लोग अपने गनतव्य पर निकलें तो किसी को भला क्या दिक्कत हो सकती है? गांवो से सीमित मात्रा मे ही युवा कांवड को निकले, यह नही कि पूरा का पूरा गांव ही कावड लेने निकल पडे। आजकल देखा यह जा रहा है कि अनेक असामाजिक तत्व अपने गंदे मंसूबे लेकर इस आस्था को बदनाम करने पर भी आमादा है। सरकार को चाहिये कि वह रास्ते मे कांवड के लिये मुहैया कराई जाने वाली खान-पान की व्यवस्था को अपने हाथ मे ले।

यहां एक बात और कहना चाहुंगा कि अन्धविश्वास के आगे हम अन्विज्ञं लोग अपने कृत्यों से किसी धार्मिक अनुष्ठान की जड पर ही प्रहार कर देते है। हालांकि मुझे इस बात का ज्यादा ज्ञान नही है कि जलाभिषेक के दिन शिव भग्वान के दरवार मे कांवड के द्वारा सिर्फ़ गंगाजल ही चढाया जाता है अथवा वह कोई भी जल चढा सकता है। ध्यान रहे कि मैं यहां पर बात सिर्फ़ कांवड की ही कर रहा हूं। अगर जो तो धार्मिक ग्रंथों और पुस्तकों मे यह कहा गया है कि सिर्फ़ गंगाजल ही मान्य है तो मैं समझता हूं कि जो कांवड गंगोत्री जाकर जल ला रहे है, वो बहुत बडी भूल कर रहे है। क्योंकि वे भग्वान शिव को गंगाजल नही, भागीरथी जल अर्पित कर रहे है। क्योंकि गंगा का वास्तविक उदगम देवप्रयाग मे भागीरथी और अलकनन्दा के मिलन से हुआ माना जाता है, न की गंगोत्री अथवा गौ-मुख से। इसीलिये पुराणों मे चढावे के लिये हरिद्वार, ऋषिकेश से ग्रहित किये गए जल की ही वास्तविक गंगाजल की मान्यता है।

26 comments:

  1. तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग।

    कांवड़ लेकर श्रद्धालु जाते हैं तो चोर लुटेरे, अराजक तत्व भी लूट पाट के इरादे से भेष बदल कर शामिल हो जाते हैं।
    लेकिन यह चिंता का विषय है कि गोमुख तक पहुंचने से वहां का पर्यावरन संतुलन बिगड़ सकता है।
    इसलिए कुछ जगहों पर तो प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

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  2. बिल्कुल सही लिखा जी आपने. हर तरह के लोग हैं.

    रामराम.

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  3. दिल खोल के लिखा है आपने और समस्या का नीर क्षीर विवेचन -सहमत !

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  4. यह करोडों हिन्दुओं की अस्था से जुडा मसला है इसलिए भावनाऒं का आदर भी नि:सन्देह जरूरी है। मगर साथ ही हमे यह भी देखना होगा कि कहीं कोई चीज अत्याधिक तो नही हो रही? भग्वान शिव के प्रति जनता के मन मे जो आदर और आस्था है, हमारे कृत्य कहीं उसे कोई चोट तो नही पहुचा रहे ? क्योंकि पिछले आठ-दस सालों से जबसे हमारे इस देश की दोयम दर्जे की राजनीति ने आस्था के इस क्षेत्र मे अपनी घुसपैठ बनाई है, यह देखा जा रहा है कि इस प्रदेश/ क्षेत्र का आम निवासी अपने को विचलित/बेआराम मह्सूस करने लगा है।
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    आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूँ!
    उपयोगी लेख!

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  5. गोदियाल जी , आपने बड़े संवेदनशील विषय पर लिखने का साहस किया है । आपको बधाई देता हूँ ।
    आपने सहनशीलता का परिचय देते हुए सही तथ्य प्रस्तुत किये हैं ।
    अपनी धार्मिक आस्थाओं , मान्यताओं और रीति रिवाजों पर कभी कभी बड़ा क्षोभ होता है । लेकिन सच कहूँ तो बस मन मसोस कर रह जाते हैं । किस को क्या समझाएं । सभी समझदार हैं ।

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  6. "भग्वान शिव के प्रति जनता के मन मे जो आदर और आस्था है, ...."
    जी हां, बम बम भोले
    ना बरसे भांग के गोले :)

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  7. सार्थक लेखन ....हर बात सीमा में ही सही लगती है ...

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  8. एक और सार्थक आलेख पर बहुत बहुत आभार और शुभकामनाएं !

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  9. पते का बात किए हैं आप गोदियाल साहब... बिहार में भी सुल्तांगंज से गंगाजल लेकर लोक वैद्यनाथ धाम जल अर्पण करने जाते हैं... लेकिन नौजवान लडका सब गुंडई अऊर ब्यभिचार से भी बाज नहीं आता है... एक से एक डिस्को ड्रेस पहिनकर सब निकलता है… आजकल त हॉकी स्टिक भी बहुत जोर से फैसन में है... बताइए त, ई आस्था है?

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  10. आपकी बात से सहमत हूं........

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  11. आस्था अगर हम अपने मां बाप की बुढापे मै सेवा कर ले तो हमे सब पुन्य मिल जाते है, बाकी मै आप से सहमत हुं

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  12. आस्था का दुरुपयोग तो जमकर हो रहा है।

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  13. धर्मनिरपेक्ष सरकार है, इसे सभी धर्म के अनुयायियों से एक सा व्यव्हार करते हुये सभी सुविधा शिविर बंद कर देने चाहियें। जिनके मन में विशुद्ध धार्मिक भावना होगी, वे तो जायेंगे ही। उन्हें पहले भी सुख सुविधा की दरकार नहीं थी और आगे भी नहीं रहेगी। फ़ालतू की भीड़ छंट जायेगी।

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  14. aapki baat se sahmat hun..
    har baat seema mein rahe to acchi lagti hai..
    aabhaar..

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  15. आजकल पैदल चलना बड़ा घातक हो गया है। कई बार मन किया पर कर नहीं पाया।

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  16. कांवड़ लेकर श्रद्धालु जाते हैं तो चोर लुटेरे, अराजक तत्व भी लूट पाट के इरादे से भेष बदल कर शामिल हो जाते हैं

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  17. बहुत अच्छी जानकारी है। आज कल किस जगह पर अराजक तत्व नहीं हैं। इन्हों ने तो भगवान को भी नही बख्शा। आभार।

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  18. aapki baat bilkul sahi hai....aasthaa our dhong ke beech ki rakh mit rahi hai.....aaj ke aasthaavan log aasthaa shabd ke sahi arth nahi jaanate.

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  19. बिल्कुल सही लिखा है आपने ।

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  20. पोस्ट अच्छी है . मेरी पोस्ट भी देखिये और कृतार्थ कीजिये मुझे भी और स्वयं को भी .

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  21. आस्था इसी को तो कहते हैं जहाँ मनुष्य उसके आगे कुछ नही सोचता ।

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  22. आपने बड़े संवेदनशील विषय पर लिखने का साहस किया है

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  23. सारगार्वित प्रस्तुति....आभार

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  24. आस्था प्रदर्शन का काफी कुछ रूप ले चुकी है । मन्दिर निर्माण व वहाँ जाकर पूजा करना . प्रदर्शन ही है ।
    आपका लेख लोकोपयोगी है ।

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  25. समय के साथ साथ श्रधा कम होती जा रही है ... भेड़ चाल ज़्यादा हो रही है ... धर्म के नाम पर झगड़े कर के धर्म का नाम बदनाम करने से बचना चाहिए इन कावानियों को ....

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।