भ्रष्ठाचार और मक्कारी तो मानो हमारी रग-रग में रची बसी है ! सार्वजनिक धन की चोरी को हम अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते है, और ऊपर से सीना जोरी भी ! शरमो-हया और दुनिया की लोक-लाज तो जयचंद के कुटुंबी वंशजों ने तभी बेच खाई थी, जब मंगोलों, मुगलों और फिरंगियों ने इन जयचंद की औलादों की मदद से बारी-बारी से हमारी इस पावन भूमि को अपवित्र किया था! कुछ ही पृथ्वीराज थे, जो जी-जान और मेहनत से तीन-तीन गुलामियों की मार झेलते हुए भी थोड़ा बहुत अपनी और अपने देश की पारंपरिक संस्कृति, लोक-लाज और सत्यनिष्ठा को बचाए रखने में कामयाब रहे थे ! मगर उन्हें क्या मालूम था कि कालान्तर में युगों से भेड़ की खालों में छुपे बैठे कुछ जयचंद के घरेलू भेड़िये, एक दिन आजादी मिलने पर अचानक लोकतंत्र की आढ़ में शराफत, इमानदारी, समानता, कौशल और नेतृत्व का नकली लवादा ओढ़कर देश में बची-खुची शर्मो-हया का भी गला घोंट देंगे !
मजेदार बात यह नहीं है कि देश में फैले भ्रष्ठाचार और अराजकता से पर्दा उठ रहा है, अपितु मजेदार बात यह है कि कुछ शकुनियों के फेंके फांसे उन पर ही उलटे पड़ने लगे है! जैसा कि मैं पहले भी अपनी पोस्टों में लिख चुका हूँ कि आयोजन की तैयारियों में देरी जानबूझकर दो कारणों से की गई थी; एक तो यह कि आयोजन स्थल के कर्ता-धर्ताओं को २००८-०९ में दोबारा गद्दी पाने की उम्मीद कम ही थी, इसलिए वे आने वाले अज्ञात कर्ता-धर्ता के लिए मुसीबतों का पहाड़ छोड़ना चाहते थे! ताकि आगे चलकर वे खुद इसका राजनैतिक फायदा उठा सकें ! लेकिन उनका दुर्भाग्य ही कह लीजिये कि वे फिर से गद्दी पा गए ! इसे वोटरों की महानता कह लीजिये या फिर उस पालनहार की सटीक लाठी, जो इनकी चाल इन पर ही उल्टी पड़ गई ! दूसरा यह कि इसतरह की अवधारणा इस निर्माण कार्य से जुड़े ज्यादातर भ्रष्ट लोग लेकर चल रहे थे कि घटिया स्तर के निर्माण कार्य को अंतिम क्षणों तक खींचा जाए ताकि आख़िरी में समय की कमी की वजह से किसी को यह देखने का अवसर ही न मिले कि घटिया निर्माण हुआ है, लेकिन यह लीपापोती भी उल्टी पड़ गई ! अनमने मन से ही सही किन्तु इंद्रदेवता को भी इसके लिए धन्यवाद दिया जा सकता है !
ऐसा भी नहीं है कि इस सारे चक्रव्यूह के लिए सिर्फ आयोजन कर्ताओं को ही जिम्मेदार ठहराया जाए ! इसके लिए जर्जर हो चुका पूरा सिस्टम भी काफी हद तक जिम्मेदार है, वह सिस्टम, जिसे सदियों पहले अंग्रेजों ने यह मानकर हिन्दुस्तानियों के लिए बनाया था कि ८० प्रतिशत भारतीय चोर है ! और फिर वे अंग्रेज अपने पीछे इस देश में उनके बनाए उस सिस्टम की देखभाल के लिए एक ऐसी पार्टी छोड़ गए जो बड़ी परायणता और कर्तव्यनिष्ठा से आज भी उसे बनाए रखे है ! हमारे मीडिया वालों को चठ्कारे लेकर सनसनी फैलाने की तो बड़ी महारत हासिल है, मगर तब ये कहाँ सो रहे थे जब आज खुद को भला इंसान दिखने वाला सालों फाइल के ऊपर बैठा रहा ? ये तब कहाँ थे जब मंत्रालय अपने लल्लू -पंचूओ को इस पूरे निर्माणकार्य की रूपरेखा तैयार करने के लिए मनोनीत कर रहे थे! ये तब कहाँ थे जब समय की नजाकत को न समझते हुए हमारे देश के न्यायालयों में कुछ संस्थाओं द्वारा निर्माणकार्य की राह में खड़े किये गए विवादों को सुलझाने में देरी हो रही थी ? तब कहाँ थे, जब निर्माणकार्य के लिए घटिया सामग्री आ रही थी? तब कहाँ थे जब पारिवारिक खान से खरीदकर सड़क किनारों पर लाल टाइले लगाईं जा रही थी? अब जब स्टेडियम के लिए ऐप्रूभ्ड ड्राइंग ही साल-छह महीने पहले निर्माण कार्य में लगी एजेंसियों को दोगे तो वे अलादीन का चिराग घिसकर जिन्न को बुला रातों-रात तो निर्माण कार्य पूरा नहीं कर लेंगे न ?
हाँ, मैं सिस्टम की बात कर रहा था, कल से खबरिया चैनलों और पत्र-पत्रिकाओं में बड़े मजे लेकर जोरशोर से इस बात को उठाया जा रहा है कि कीमत से कई अधिक मूल्य पर आयोजन सामग्री किराए पर ली जा रही है, तो जनाव, एक तरफ अगर समय पर कार्य पूरा करने का दबाव हो और दूसरी तरफ वह जर-जर सिस्टम जिसमे एक क्लास वन आफिसर भी स्वयं निर्णय लेकर एक कुर्सी तक नहीं खरीद सकता, उसके लिए टेंडर भरो, फाइल को मंत्रालय तक पहुँचाओ और इस माध्यम के बीच कई हस्तियों की आवभगत करो, तो उसके लिए इन्तजार का वक्त किसके पास था? क्या कभी किसी ने उस और ध्यान देकर वह बात उजागर की ? हमारे लिए शर्म की इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है कि दूसरे देश की एजेंसिया हमें सतर्क कर रही है कि जाग जाओ कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ चल रही है ! इस देश के एक आम आदमी के खून पसीने की कमाई से एकत्रित टैक्स का इस तरह का दुरुपयोग देख विदेशी भी चुप नहीं रह पाए !
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकलता है कि अपने युवराज के ऑस्टेरिटी (त्याग / मितव्यता) आव्हान की हवा ये कमवक्त भ्रष्ट लोग इस तरह नेहरु स्टेडियम में जाकर निकालेंगे, शायद सम्राज्ञी ने भी सपने में नहीं सोचा होगा! ४००० करोड़ रूपये खर्च का प्रारम्भिक आंकलन अगर सत्रह गुना बढ़ जाए तो भृकुटियाँ तनना भी स्वाभाविक है! यही अगर इनके ऑस्टेरिटी की मिसाल है तो भगवान् बचाए इनकी गिद्ध नजरों से इस देश को ! इस मुद्दे पर अब जाकर चिल-पौं मचाने वालों से भी यही कहूंगा कि आप यह बात भली प्रकार से जानते है कि आज से पहले इस देश में हुए बड़े-बड़े घोटालों का हश्र क्या हुआ ? और अंत में मेरी भी इस दुनिया के पालनहार से हाथ जोड़कर यह प्रार्थना है कि हे भगवन, ये आयोजन जैसे भी हो ठीक ठीक ही निपट जाए और देश की इज्ज़त पर कोई आंच न आने पाए !
मजेदार बात यह नहीं है कि देश में फैले भ्रष्ठाचार और अराजकता से पर्दा उठ रहा है, अपितु मजेदार बात यह है कि कुछ शकुनियों के फेंके फांसे उन पर ही उलटे पड़ने लगे है! जैसा कि मैं पहले भी अपनी पोस्टों में लिख चुका हूँ कि आयोजन की तैयारियों में देरी जानबूझकर दो कारणों से की गई थी; एक तो यह कि आयोजन स्थल के कर्ता-धर्ताओं को २००८-०९ में दोबारा गद्दी पाने की उम्मीद कम ही थी, इसलिए वे आने वाले अज्ञात कर्ता-धर्ता के लिए मुसीबतों का पहाड़ छोड़ना चाहते थे! ताकि आगे चलकर वे खुद इसका राजनैतिक फायदा उठा सकें ! लेकिन उनका दुर्भाग्य ही कह लीजिये कि वे फिर से गद्दी पा गए ! इसे वोटरों की महानता कह लीजिये या फिर उस पालनहार की सटीक लाठी, जो इनकी चाल इन पर ही उल्टी पड़ गई ! दूसरा यह कि इसतरह की अवधारणा इस निर्माण कार्य से जुड़े ज्यादातर भ्रष्ट लोग लेकर चल रहे थे कि घटिया स्तर के निर्माण कार्य को अंतिम क्षणों तक खींचा जाए ताकि आख़िरी में समय की कमी की वजह से किसी को यह देखने का अवसर ही न मिले कि घटिया निर्माण हुआ है, लेकिन यह लीपापोती भी उल्टी पड़ गई ! अनमने मन से ही सही किन्तु इंद्रदेवता को भी इसके लिए धन्यवाद दिया जा सकता है !
ऐसा भी नहीं है कि इस सारे चक्रव्यूह के लिए सिर्फ आयोजन कर्ताओं को ही जिम्मेदार ठहराया जाए ! इसके लिए जर्जर हो चुका पूरा सिस्टम भी काफी हद तक जिम्मेदार है, वह सिस्टम, जिसे सदियों पहले अंग्रेजों ने यह मानकर हिन्दुस्तानियों के लिए बनाया था कि ८० प्रतिशत भारतीय चोर है ! और फिर वे अंग्रेज अपने पीछे इस देश में उनके बनाए उस सिस्टम की देखभाल के लिए एक ऐसी पार्टी छोड़ गए जो बड़ी परायणता और कर्तव्यनिष्ठा से आज भी उसे बनाए रखे है ! हमारे मीडिया वालों को चठ्कारे लेकर सनसनी फैलाने की तो बड़ी महारत हासिल है, मगर तब ये कहाँ सो रहे थे जब आज खुद को भला इंसान दिखने वाला सालों फाइल के ऊपर बैठा रहा ? ये तब कहाँ थे जब मंत्रालय अपने लल्लू -पंचूओ को इस पूरे निर्माणकार्य की रूपरेखा तैयार करने के लिए मनोनीत कर रहे थे! ये तब कहाँ थे जब समय की नजाकत को न समझते हुए हमारे देश के न्यायालयों में कुछ संस्थाओं द्वारा निर्माणकार्य की राह में खड़े किये गए विवादों को सुलझाने में देरी हो रही थी ? तब कहाँ थे, जब निर्माणकार्य के लिए घटिया सामग्री आ रही थी? तब कहाँ थे जब पारिवारिक खान से खरीदकर सड़क किनारों पर लाल टाइले लगाईं जा रही थी? अब जब स्टेडियम के लिए ऐप्रूभ्ड ड्राइंग ही साल-छह महीने पहले निर्माण कार्य में लगी एजेंसियों को दोगे तो वे अलादीन का चिराग घिसकर जिन्न को बुला रातों-रात तो निर्माण कार्य पूरा नहीं कर लेंगे न ?
हाँ, मैं सिस्टम की बात कर रहा था, कल से खबरिया चैनलों और पत्र-पत्रिकाओं में बड़े मजे लेकर जोरशोर से इस बात को उठाया जा रहा है कि कीमत से कई अधिक मूल्य पर आयोजन सामग्री किराए पर ली जा रही है, तो जनाव, एक तरफ अगर समय पर कार्य पूरा करने का दबाव हो और दूसरी तरफ वह जर-जर सिस्टम जिसमे एक क्लास वन आफिसर भी स्वयं निर्णय लेकर एक कुर्सी तक नहीं खरीद सकता, उसके लिए टेंडर भरो, फाइल को मंत्रालय तक पहुँचाओ और इस माध्यम के बीच कई हस्तियों की आवभगत करो, तो उसके लिए इन्तजार का वक्त किसके पास था? क्या कभी किसी ने उस और ध्यान देकर वह बात उजागर की ? हमारे लिए शर्म की इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है कि दूसरे देश की एजेंसिया हमें सतर्क कर रही है कि जाग जाओ कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ चल रही है ! इस देश के एक आम आदमी के खून पसीने की कमाई से एकत्रित टैक्स का इस तरह का दुरुपयोग देख विदेशी भी चुप नहीं रह पाए !
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकलता है कि अपने युवराज के ऑस्टेरिटी (त्याग / मितव्यता) आव्हान की हवा ये कमवक्त भ्रष्ट लोग इस तरह नेहरु स्टेडियम में जाकर निकालेंगे, शायद सम्राज्ञी ने भी सपने में नहीं सोचा होगा! ४००० करोड़ रूपये खर्च का प्रारम्भिक आंकलन अगर सत्रह गुना बढ़ जाए तो भृकुटियाँ तनना भी स्वाभाविक है! यही अगर इनके ऑस्टेरिटी की मिसाल है तो भगवान् बचाए इनकी गिद्ध नजरों से इस देश को ! इस मुद्दे पर अब जाकर चिल-पौं मचाने वालों से भी यही कहूंगा कि आप यह बात भली प्रकार से जानते है कि आज से पहले इस देश में हुए बड़े-बड़े घोटालों का हश्र क्या हुआ ? और अंत में मेरी भी इस दुनिया के पालनहार से हाथ जोड़कर यह प्रार्थना है कि हे भगवन, ये आयोजन जैसे भी हो ठीक ठीक ही निपट जाए और देश की इज्ज़त पर कोई आंच न आने पाए !
ये आयोजन जैसे भी हो ठीक ठीक ही निपट जाए और देश की इज्ज़त पर कोई आंच न आने पाए !
ReplyDeleteबेहद सटीक लिखा और हर जिम्मेदार नागरिक की यही ख्वाहिश है कि इज्जत बची रहे.
रामराम
बात तो आपने सही उठाई है मगर क्युँ आप ही देशभक्त बने और देश की इज़्ज़त का सोचें ……………मै तो कहती हूँ इस बार देश की इज़्ज़त मिट्टी मे मिल ही जाये ताकि यहाँ की जनता के साथ साथ देश के हर नेता की भी आँख खुल जाये और फिर कोई दोबारा देश की जनता की गाढी कमाई का दुरुपयोग करने का साहस नही कर सके…………………भ्रष्टाचार और बेईमानी की अब तो इंतिहा हो चुकी है इसलिये सबक मिलना जरूरी है…………आज के हालात ने देश के जीना दूभर कर दिया है गरीबी नही गरीब को मिटाने की कवायद चल रही है ,मँहगाई ने जीना मुश्किल किया हुआ है तो फिर क्यूँ हम ही हमेशा अपनी इज़्ज़त के लिये मर मिटें …………एक बार रुख से नकाब हटना ही चाहिये ताकि आने वाली पीढियों को सबक मिल सके और फिर कोई ऐसी अन्धेरगर्दी ना कर सके।
ReplyDeleteजय हिंद
वन्दना जी, इस बारे में तो मैंने सोचा भी नहीं था, आपकी बात में दम है , बहुत खूब !
ReplyDeleteगोदियाल जी , आपने समस्या का अच्छा विश्लेषण किया है । लेकिन अब तो जो होगा , वक्त ही बताएगा ।
ReplyDeleteहमारे यहाँ एक कहावत होती है --अरे रामा , तन्ने कित कित रो ल्यूं ।
सही चिंतनीय मुद्दा उठाया है....देश की कहाँ किसी को फ़िक्र है....अपनी जेबें भरने से फुर्सत ही कहाँ ...सब एक दूसरे पर आरोप -प्रत्यारोप कराने में लगे हैं ....आम जनता ही इज्ज़त की फ़िक्र में दुबली हुई जा रही है ...
ReplyDeleteइन्हरमियो को तो सिर्फ़ एक हिटलर ही सीधा कर सकता है जो इन की जडॊ कॊ भी खॊद दे, बहुत सुंदर लेकिन हकीकत लिखी आप ने , हमे शर्म आने लगी है इन की हरकतो से लेकिन इन कमीनो कॊ कोई शर्म नही. धन्यवद
ReplyDeleteबहुत दुखी और क्रोध भरे हृदय से लिखा है आपने.. होना भी चाहिए। अपनी खून-पसीना बहाकर रुपया कमाकर टैक्स जमा करके सरकारी खजाने की रौनक बनाते हैं और भ्रष्ट नेता व अफसर उसे कुछ तो यूं ही बहा देते हैं और कुछ अपनी जेब में सरका लेते हैं। देश की इज्जत तो बची ही रहनी चाहिए... हम और आपको तो उसी में थोड़ी संतुष्टि हो जाएगी।
ReplyDeleteकसौटी फ़िल्म का गाना है गोदियाल साहब,
ReplyDelete’हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है’
पहले तो अपनी गुलामी को ही सेलीब्रेट करने वाला फ़ार्मूला हम जैसों के पल्ले नहीं पड़ता।
फ़िर यहां के तौर तरीके,हम तो पिछड़ी मानसिकता वाले ही रह गये जी। देश की इज्जत, मेहमानों के सामने, वगैरह वगैरह।
वंदना जी के कमेंट से सहमत।
गैर जिम्मेदार होने का मन कर रहा है।
गुलामी के प्रतीक इस स्पर्धा के आयोजन का औचित्य क्या है ???
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट भी अच्छी है लेकिन वंदना जी से मैं पूरी तरह सहमत हूँ की देश की इज्जत एक बार जानी ही चाहिए जिससे कांग्रेस के बेशर्म और भ्रष्ट नेताओं को गली-गली में नंगा किया जा सके उनके इस महान काम के लिए ,बेशर्मों की भी सीमायें होती है इनलोगों ने तो व्यवस्था को इतना सडा दिया है की बेशर्मी भी पानी-पानी हो गयी है ...
ReplyDeleteएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
वन्दना जी की बात सही है
ReplyDeleteलेकिन इन नेताओं पर कुछ असर पडेगा, कहा नही जा सकता।
फिर भी हम तो यही कहेंगें कि "ये आयोजन जैसे भी हो ठीक ठीक ही निपट जाए और देश की इज्ज़त पर कोई आंच न आने पाए।"
प्रणाम
गोदियाल जी, आपने बिल्कुल सही लिखा. मैं आपके इस कथन से शत प्रतिशत सहमत हूँ कि आज जर्जर हो चुका पूरा सिस्टम ही काफी हद तक जिम्मेदार है. कुछ टिप्पणीकारों ने लिखा है कि देश की इज्जत के बारे में क्यों सोचे. अफ़सोस चाहे खेल ढंग से संपन्न हो या फिर कोई हादसे के साथ, असल नुकसान तो देश का होना है न कि उन लोगो का जो इस दुर्दशा के लिए जिम्मेवार है.
ReplyDeleteअगर खेल ढंग से निपट जाते है जो सत्रह गुना खर्चे का बोझ जनता के सर, और अगर कही खुदा न खस्ता कोई हादसा हो जाता है तो देश की बदनामी जिसकी वजह से देश में इन्वेस्टमेंट कम हो जायेगा और अर्थव्यस्था की गति मंद पड़ जाने का खतरा है.
ये तो वो बात हुई, कि चाकू खरबूजे पर घिरे या खरबूजा चाकू पर काटना तो खरबूजे (देश के नागरिक) ने ही है.
bilkul satik sahi baat likhaa hai aapne.aapne ek ek parat khol kar rakh diya hai......jaychandon ki sankhyaa badhti hi jaa rahi hai...prithviraj kare bhi to kya...
ReplyDeleteवन्दना जी की बात सही है
ReplyDelete४००० करोड़ रूपये खर्च का प्रारम्भिक आंकलन अगर सत्रह गुना बढ़ जाए तो भृकुटियाँ तनना भी स्वाभाविक है!
ReplyDeleteइतना बडा अमला और ये सारा तामझाम. अगर यह भी नहीं सम्भलता तो ओलिम्पिक्स की तो बात सोचना ही बेमानी है। वैसे ऐसे आयोजन के लिये दिल्ली के अलावा देश में कोई और शहर नहीं बचा है क्या?
दूसरे देश की एजेंसिया हमें सतर्क कर रही है कि जाग जाओ कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ चल रही है !
ReplyDeleteइस खबर का सन्दर्भ मिल सकता है? किस खुफिया एजेंसी ने किस खरत्र के प्रति हमें आगाह किया है?