Monday, August 30, 2010

भ्रष्टों और निक्कमों का प्रिय खेल बनकर रह गया है क्रिकेट !

कविता बनाने बैठा था, मगर वक्त और आत्मउत्साह की कमी के कारण सिर्फ चार ही लाईने बन पाई ;

किसने कब यह सोचा था, वक्त का ऐसा एक तकाजा होगा,
अन्धेर लिये सारी नगरी होगी, अन्धों मे काना राजा होगा ।
महंगाई से त्रस्त होंगी प्रजा सारी, चांदी काटेंगे मंत्री, दरवारी,
राग अलापेंगे सब अपना-अपना, पर सिंहासन साझा होगा॥
अन्धेर लिये सारी नगरी होगी, अन्धों मे काना राजा होगा ।...........................॥

हाँ , इस लेख के शीर्षक के मुताविक चंद बातें कहना चाहूँगा कि आज क्रिकेट का खेल एक भ्रष्टाचार की जननी बन चुका है। इस बात से अधिक उत्साहित होने की जरुरत नहीं कि आज इस खेल के गंदे हिस्से में कुछ पाकिस्तान के खिलाड़ियों के फंसने की ख़बरें है। सिर्फ इतनी सी बात नहीं है कि केवल पाकिस्तानी खिलाड़ी ही ऐसा काम कर रहे है। याद करे कि अभी आई पी एल पर यह खुले आरोप लगे है कि उसके भी सारे मैच पहले से फिक्स थे। तो क्या जो खेल फिक्स करके खेले गए तो क्या उसमे खेलने वाले खिलाड़ी पाक साफ़ थे ? इस खेल ने देश के सारे खेलों को निगल लिया है। दूसरे खेलों के खिलाड़ी जो देश के लिए खेलते है वे पाई-पाई को तरसते है और इस खेल के खिलाड़ी......? इस खेल में जो गंदगी फैल चुकी है इसकी वजह इसका अत्यधिक राजनीतिकरण भी है अत : यह उम्मीद करना कि इसे सुधारने के लिए कोई ठोस प्रयास होंगे, अपने को अँधेरे में रखने जैसा है। लेकिन आम जनता बहुत कुछ कर सकती है। अब यह आप सबके ऊपर है कि इस उबाऊ और निक्कम्मा बनाने वाले खेल को क्या आप आगे भी वैसा ही समर्थन देंगे, जो आज तक दिया ? वक्त आ गया है कि इस खेल के बारे में अपने माइंड सेट का फिर से गंभीरता के साथ अवलोकन करें !

22 comments:

  1. क्रिकेट से मोह भंग हो रहा है।

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  2. सही कहा आपने .....
    कुछ लिखा है, शायद आपको पसंद आये --
    (क्या आप को पता है की आपका अगला जन्म कहा होगा ?)
    http://oshotheone.blogspot.com

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  3. मै तो इस गुलामो के खेल को कभी देखता ही नही,

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  4. सच है ..आज क्रिकेट देखने का आनंद खत्म हो गया है ...

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  5. इसमें दोष तो हमारा ही है!
    --
    अपनी पोटली में बँधे रत्नों को हम कभी खोलकर देखते ही नहीं हैँ!

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  6. आप सही कह रहे हैं, बस टाइम पास के‍ लिए ही देखना चाहिए।

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  7. इस कारण मैंने टी.वी. पर मैच देखना बंद कर दिया है ....

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  8. इसमें दोष तो हमारा ही है!

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  9. इसी कारण अब देखने का मन नही करता।

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  10. अरे ये आप क्या कह रहे है गोदियाल जी, ऐसा हुआ तो निठल्ले लोग कहाँ और किसकी शरण में जायेंगे. फिर मीडिया तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान, गांगुली को प्रिंस ऑफ कोलकाता, सहवाग को मुल्तान का सुल्तान, शाहरुख और अमिताभ को फिल्मो का देता इत्यादि बता कर अपनी दुकान कैसे चलाएंगे. इसमें कोई शक नहीं कि उपरोक्त लोग अपने फन में माहिर है लेकिन ये भी अतिशयोक्ति नहीं है कि मीडिया और जनता ने इन्हें जरुरत से ज्यादा सर चढा रखा है. आज के समय में क्रिकेट फालतू लोगो के बेकार मनोरंजन के सिवा कुछ नहीं है.

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  11. Bhala ho cricket ka naa jane kitne gharo ke sheeshe tode, kitne balle paise jod jod ke kharide. Kitni ball paodsi ke ghar mei gayi par wapis nahi aayi.
    Isse mahaan khel aur koi nahi milega janab.
    Aisa mat kahiye janab, aise to har khel mei kuch na kuch bhrastachaar aapko milte rahenge.

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  12. गोदियाल जी .... इस निकामे खेल को मजबूरी में देखन पड़ता है ... कोई और चारा भी तो नही ... कुछ दिन नही देखते पर कुछ दिन बाद फिर शुरू हो जाते हैं ....

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  13. गोदियाल जी , हमें तो क्रिकेट देखना बहुत अच्छा लगता है । ये अलग बात है कि कभी खेले नहीं ।
    कुछ नालायकों की वज़ह से देखना छोड़ दें , ऐसे तो हालात नहीं ।

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  14. चार लाइनों में ही सब कह दिया भाऊ !

    बहुत उम्दा पोस्ट !

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  15. इधर कुछ सालों से देखना भी छुट गया, बढिया ही हुआ.

    रामराम.

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  16. डा० साहब , कोई आर्ग्युमेंट नहीं करूंगा, बस ये कहूंगा कि आप भी क्रिकेट देखने लायक समय निकाल लेते है, अच्छी बात है :)

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  17. "इस खेल में जो गंदगी फैल चुकी है इसकी वजह इसका अत्यधिक राजनीतिकरण भी है"
    और राजनीति में जो खेल चल रहा है.... :)

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  18. गोदियाल जी
    यहाँ जो चुनाव प्रक्रिया दी गयी है वो प्रधान लामा के लिए दी गयी,
    दलाई लामा के जीवित रहते किसी और के प्रधान लामा बन्ने के प्रश्न ही नहीं है !!!
    आपने स्वयं कहा है की ग्याल्तसेन नोरबू को पंचेन लामा घोषित किया है, पंचेन लामा और प्रधान लामा में अंतर होता है,
    कृपया अपने तथ्यों को ध्यानपूर्वक पढ़े
    आशा करता हूँ कि आप अपना सहयोग इसी प्रकार बनाये रखेंगे, यदि आपको या किसी अन्य पाठक को कोई और प्रश्न करना हो तो आपका स्वागत है .

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  19. गोंदियाल जी, आज खिलाड़ी खेल के प्रति समर्पित नहीं रहे, देश की तो बात ही बहुत दूर है। उन्हें सिर्फ पैसे का मोह है। वो पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हैं।

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  20. अपन तो बहुत पहले इस ड्रामे से जान छुड़ा चुके हैं। जब से फ़िक्सिंग वाला मामला उजागर हुआ था, इधर ध्यान देना भी बेवकूफ़ी लगती थी। अब भी अगर कहीं टी.वे. पर मैच चल रहा हो तो, पहले पता कर लेते हैं, अगर इंडिया जीत रहा है पक्का, तो देख लिया नहीं तो एकाध मोटी सी गाली पहले ही देकर खिसक लेते हैं।
    और तो और चीयरलीडर्स भी हमें आकर्षित नहीं कर पाई। हा हा हा।

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  21. क्रिकेट का खेल एक भ्रष्टाचार की जननी बन चुका है..isiliye teji se cricket se logo kaa mohbhang ho rahaa hai.

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।