Thursday, August 23, 2012

बख्शीश का भूखा न हो जो, कोई ऐसा दरबान देना !


दस्तूर ही कुछ ऐसा  है कि हर महिला की ये दिली ख्वाईश होती है कि उसकी लडकी को उससे भी बढ़कर अच्छा पति मिले ! और साथ ही उसे यह भी पक्का भरोसा होता है कि उसके लड़के को उतनी अच्छी बीबी नहीं मिलेगी, जितनी कि उसके बाप को मिली ! इसलिए ज्ञानी लोग कह गए है कि इस तरह मत चलो, मानो कि तुम दुनिया के बादशाह हो , इस तरह चलो मानो कि तुम्हें इस बात की कोई परवाह ही नहीं कि दुनियां का बादशाह कौन है ! खैर, फिलहाल मेरी इस नज्म का लुत्फ़ उठाइये ;

मांग रही भूमि अपने देश की, तुम मुझे यह दान देना,  
अबके जो तुम दे सको तो, कोई रीढ़वाला प्रधान देना !

गांधी-सुभाष के इस देश में, ये क्लीबों की फ़ौज कैसी,
शान-बान,आत्म-सम्मान हो, कोई ऐसा मर्दान देना !  

सहारे चल नहीं सकती कौमियत,मूक-वधिर रोबोटों के,
रिमोट मत अब और  तुम किसी के हाथ श्रीमान देना !    

भूखे-अशक्तों की भीड़ को, नोच रहे हैं गिद्ध डालियों से, 
अहमियत दे इंसानियत को, इक ऐंसा कदरदान देना ! 

रिपु लांघ हमारी मेंड़ को, आँगन हमारे न जलसा करे,  
बख्शीश  का भूखा न  हो जो, कोई ऐसा दरबान देना ! 

और साथ में यह भी समझ लेना कि वह एक बहुत ही भला इंसान था, जिसने न कभी धुम्रपान किया, न दारू पी, न कभी प्यार-व्यार के चक्कर में पडा ! और जब मरा तो बीमा कम्पनी ने क्लेम यह कहकर खारिज कर दिया कि 
" He who never lived, cannot die  !"

Tuesday, August 21, 2012

विश्व बंधुत्व की एक मिशाल

दैनिक हिन्दुस्तान से साभार !



वाह-वाह-वाह ... माशाल्लाह, इसे कहते है विश्व बंधुत्व की मिशाल.... ! इस नेक कार्य के लिए इन सरदार बूटासिंह जी को कोटिश धन्यवाद ! ये कही वो ही वाले बूटा सिंह जी तो नहीं है जो कभी देश के गृहमंत्री और फिर बिहार के राज्यपाल हुआ करते थे? खैर, ये सज्जन जो भी "बूटा सिंह " हो, मगर इन्हें साम्प्रदायिक सौहार्दता की यह मिशाल पेश करने के लिए नोबेल भले ही न मिले, स्व० इंदिरा गांधी अथवा राजीव गांधी वाले कोई पुरूस्कार तो मिलने ही चाहिए ! 

यह जानकार प्रसंता हुई कि इन बड़े दिल वाले बूटा सिंह जी की वजह से कम से कम हमें यह जानने का तो मौक़ा मिला कि जोशीमठ ( जिसे बद्रीनाथ और हेमकुंठ साहिब के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है ) पर इन तंग-दिल सनमों ने अपनी एक अच्छी खासी उपस्थिति दर्ज करा ली है ! मुझे उम्मीद है कि स्थानीय हिन्दुओं की कृपा से इन बूटा सिंह जी ने तो गुरुद्वारे के लिए काफी पहले ही जमीन हथिया ली होगी, अत:अब उन्हें चाहिए कि जितनी जल्दी हो सके, बूटा सिंह जी के साथ मिलकर वहाँ किसी मंदिर अथवा इसी गुरुद्वारे के आस-पास एक मस्जिद के लिए भी जगह ढूढकर उसे बनाने में अपना भरपूर सहयोग करें ! इससे 

आगे चलकर कई और फायदे नजर आयेंगे, मसलन मस्जिद बन जाने से हमारे ये अल्पसंख्यक समुदाय के जो भाई लोग अभी म्यांमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान की वजह से मजबूर होकर इस बड़े दिल वालों के देश में घुसते है, या असम जैसी जगहों से जिन्हें इधर-उधर भागना पड़ता है, उन्हें भी यहाँ पहुंचकर बरसात में छत नसीब हो जायेगी और जब इन तंगदिल सनमो की तादाद इस इलाके में भी खासी बढ़ जायेगी तो यहाँ भी साम्प्रदायिक सद्भाव और ज्यादा बढेगा! और जैसा कि मैंने अभी कुछ समय पहले अपने एक लेख "उत्तराखंड में पैर पसारते वाइज" में बताया था कि किस तरह ईसाई मिशनरिया भी वहाँ दूर-दराज के पिछड़े और दलित गावो में धीरे-धीरे अपने पैर पसार रहे है, और पसारते -पसारते वे भी एक दिन जोशीमठ तक पहुँच ही जायेंगे ! अत: दूरदर्शिता का परिचय देते हुए थोड़ी सी जमीन इन स्थानीय ब्रोड-माइंड-डेड हिन्दुओं को अभी से उनके चर्च के लिए भी सुरक्षित रखनी चाहिए, ताकि आगे चलकर उन्हें भी रविवार के दिन बारिश के मौसम में खुले में प्रेयर न करनी पड़े!

हाँ, तो मैं इसके फायदे गिना रहा था, तो देखिये न, जब इस जोशीमठ में भी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के अनुयायियों की एक उचित अनुपात में उपस्थिति दर्ज हो जायेगी तो वहाँ का वह पहाडी खुशनुमा और स्वच्छ वातावरण और भी खुशनुमा हो जाएगा...........आहा !... वो किसी शायर ने कहा हैं न कि हमी हम है तो क्या हम है?......तब पूरे भारत देश की झलक उस एक छोटे से पहाडी प्रदेश में ही नजर आ जायेगी ! विविधता में एकता......वैसे भले ही एकता न भी रहे तो क्या, कहने को तो कम से कम हो ही जाएगा न ! मस्जिद बन जायेगी तो इन आलसी पहाडी हिन्दुओं को जिन्हें सुबह आठ बजे से पहले उठने की आदत नहीं है, मुल्ला जी मेहरबानी कर रोज चार बजे ही उठा देंगे ! और ये जल्दी उठेंगे तो काम ज्यादा करेगे, काम ज्यादा करेगे तो क्षेत्र का विकास होगा, क्षेत्र का विकास होगा तो राज्य का विकास होगा, राज्य का विकास होगा तो देश का विकास होगा....वाह...क्या फंडा पाया है यार हमने देश के सर्वांगीण विकास का ! इन तंग-दिल सनमो के लिए भी एक तात्कालिक फायदा मुझे नजर आ रहा है ! इन्हें जब कभी बदरीनाथ-ऋषिकेश हाइवे जाम करना हो तो इन्हें सोढ़े की बोतलें और ईंट इकठ्ठा कर रखने की जरुरत नहीं है,उस पहाडी इलाके में छोटे-बड़े हर प्रकार के पत्थर बड़ी तादाद में उपलब्ध हैं !

फिर धीरे -धीरे जिस तरह देश के उस अंतिम छोर पर बर्फीले प्रदेश में अभी सिर्फ हिन्दुओं का बद्रीनाथ मंदिरऔर सिखों का हेम-कुंठ साहिब गुरद्वारा ही मौजूद है, फिर वहाँ एक मक्का मस्जिद और एक जीसस चर्च भी बन जायेगी...वाऊ कितना मजा आयेगा चारो धर्मों के तीर्थस्थलों को एक ही जगह पर देखकर... दुनिया में एक मिशाल बन जाएगा वह इलाका ! छिटपुट नुकशान यह है कि आगे चलकर हिन्दुओं और सिक्खों को अपने बदरीनाथ और हेम-कुंठ साहिब धामों को घूमने के लिए परमिट अथवा वीसा भी लेना पड़ सकता है, जोशीमठ में तब के बहुसंख्यक समुदाय के तंगदिल सनमो से उन्हें बदरीनाथ जाने के लिए रास्ता देने की गुहार भी लगानी पड़ सकती है..... मगर क्या पाकिस्तान में गुरुद्वारों में जाने के लिए हमारे सिख भाई अभी यह सब नहीं करते क्या ? क्या हम अभी कश्मीर में बर्फानी बाबा के दर्शन के लिए जाने के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं कराते, क्या हम कैलाश मान सरोबर जाने की चीन सेअनुमति नहीं लेते क्या ? ये हमारे लिए बहुत छोटी-मोटी बातें है,हम ब्रोड-माइंड-डेड लोग इसकी कतई परवाह नहीं करते ! यह देश सबका है किसी एक के बाप की बपौती नहीं ! वो बात और है कि बाद में थोड़ी से शब्द इन शब्दों में और जुड़ते हुए दिख जाएँ कि है तो सबका, किन्तु रहना इसमें तुम्हे एक ख़ास धार्मिक क़ानून के हिसाब से ही पडेगा !

Saturday, August 18, 2012

नेक सलाह दे रहा हूँ......... !



यदि आप प्रोपर्टी में इन्वेस्टमेंट की सोच रहे है, और आगे चलकर आपका मकसद कोई अपना धंधा करने अथवा प्राइवेट सैक्टर में नौकरी करने का है तो बिना किसी लाग-लपेट, बिना किसी स्वार्थ के फ्री में यह नेक सलाह दूंगा कि गुजरात के किसी इंडस्ट्रियल हब के आस-पास एक जमीन का टुकडा खरीद लीजिये, फायदे में रहोगे ! क्योंकि जहां तक बाकी देश , खासकर जिन राज्यों में तथाकथित स्यूडो-सेक्युलरिज की पूजा होती है, वहाँ का सवाल है , हमारे ये मार्गदर्शक सिर्फ और सिर्फ तुष्टिकरण भी कर पाए तो वही काफी है ! आज एक खबर/आलेख पर नजर गई, (आप भी यहाँ नजर फरमा सकते है) तो याद आया कि क्यों मारुती-सुजूकी के भी गुजरात सिफ्ट होने के कयास लगाए जा रहे थे ! क्यों टाटा ने सिंगूर से अपना प्लांट गुजरात सिफ्ट किया ! और अब उत्तर प्रदेश के व्यावसायिक घराने भी उसी कतार में खड़े है, और हों भी क्यों नहीं, हर कोई अपना फायदा देखता है ! ये राजनैतिक दल जो तमाम देश की ऐसी-तैसी करने में जुटे है, ये किसका फायदा देखकर यह सब कर रहे है ? विकास पुरुष मोदी अपने राज्य को सुदृढ़ बना रहे है, और कल ये सेक्युलरिज्म के चैम्पियन उनको दोष भी देंगे कि उन्होंने सारे उद्योगों को गुजरात में समेट लिया, कोई इनसे पूछे कि जनाब, तुम्हे ऐसा ( अपने राज्य का विकास) करने की मनाही किसने की थी, क्यों नहीं तुमने भी वही किया ? मगर लाख टके का सवाल तो यह है कि लोकतंत्र के इन चैम्पियनो से पूछेगा कौन ?

Tuesday, August 14, 2012

अन्ना-रामदेव गो बैक !


मेरे मोहल्ले की गली का टी पॉइंट......... एक ऐसा पॉइंट जो अपने में खूबसूरती से द्विअर्थ समेटे है ! एक तो यह कि गली वहाँ  से लेफ्ट और राईट दो दिशाओं में निकल पड़ती है और पहला साधारण अर्थ तो यही है कि इस टी पॉइंट से गली दायें-बाएं दो भागो में विभक्त हो जाती है ! किन्तु जो सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, वह है इस टी पॉइंट पर रामभरोसे जी की चाय की दूकान का होना, जो 'रामभरोसे टी पॉइंट' के नाम से मशहूर है, इस पूरे  इलाके में ! इसकी भी दो खासियते है, एक तो यह कि यहाँ की चाय मोहल्ले की तमाम पाक और कुकरी प्रबंधन में निपुण और सर्टिफिकेट कोर्स हासिल घरवालियों की चाय को मात देती है, और दूसरी यह कि इस खोखे के प्रोप्राइटर मिंया रामभरोसे अपने को किसी खबरिया चैनल के कर्णव् और यहाँ आने वाले तमाम चायनवाज निठल्ले और खूसट, बूढ़े और जवान अपने को किसी लोंग्रेसी प्रवक्ता से कम नहीं समझते! और समझे भी क्यों नहीं, इन्हें हर पर्दा चाहे हो रेशम का हो या मलमल का, अन्ना के खद्दर का हो या फिर बाबा रामदेव के भगवे का , उन्हें इसे "फाश" करने की महारत जो  हासिल है, बस ! एक बार पर्दा उनके सामने से होकर गुजरना चाहिए, फिर देखिये कि ये किस खूबसूरती से उसे फाश करते है !

फुर्सत पर मैं भी कभी-कभार इस मंडली में शामिल होने चला जाता हूँ, और कल भी पहुँच गया था ! टी-पॉइंट पर परोसी गई चाय भले ही ठंडी होती जा रही थी किन्तु वहाँ के सियासी हलके में यह चर्चा काफी गरम थी कि रामदेव और अन्ना हजारे और कुछ नहीं बल्कि बीजेपी के मोहरे हैं, और राजनीति कर रहे है ! इनका मकसद भ्रष्टाचार ख़त्म करना नहीं है बल्कि बीजेपी को सत्ता में लाना मात्र है ! मैं ठहरा गाँव का पढ़ा हुआ एक निचट गंवार, पोलिटिक्स क्या है, उसकी एबीसीडी तक नहीं मालूम ! अत : सवाल कर बैठा उन शहरी सभ्य लोगो से कि भैया, अगर आप ये समझते हो कि अन्ना और रामदेव सिर्फ राजनीति कर रहे है , उनका उद्देश्य सिर्फ सत्ता हथियाना है तो जहां आपने साठ साल तक एक ख़ास पार्टी को झेला, पांच साल इन्हें भी झेल लो, अगर ये भी कुछ नहीं कर पाए तो पांच साल बाद आपके पास विकल्प तो हासिल है ही इन्हें बाहर फेंकने का ! सब ने एक स्वर में कहा " अबे अब तू कहाँ से आ टपका, ये कुछ नहीं करेंगे सिर्फ बीजेपी को जिताएंगे ! मैं भी कहाँ चुप रहने वाला था, अगला सवाल दाग दिया ; भैया, माना कि बीजेपी भी बुरी है , किन्तु इन यूंपी के भइयों से तो ज्यादा बेहतर ही होगी , जो खुलेआम अपने कर्मचारियों को चोरी करने और कमीशन खाने की सलाह दे रहे है ! मेरा इतना कहना था कि सभी चायनवाज मुझ पर टूट पड़े ! कहने लगे, अबे, यूपी के अधिकारी और कर्मचारी भरष्ट और चोर नहीं होते तो आज चार दिन गुजर गए हैं अखिलेश के चाचा को वो बात कहे हुए, अब तक हंगामा मच चुका होता पूरे प्रदेश में ! सारे सरकारी कर्मचारी  सड़कों पर उतरकर कहते कि तुमने ये बात हमारे लिए कैसे कह दी कि चोरी करो मगर थोड़ा-थोड़ा खाओ, क्या तुम्हे हम चोर नजर आते है ? लेकिन एक माई के लाल ने भी अपनी जुबान नहीं खोली! यह क्या दर्शाता है ? यही न कि सिस्टम में सब के सब चोर है ! फिर भ्रष्टाचार खत्म होगा कहा से जब सब चोर ही घुसे बैठे है ? और इतना कहने के बाद वे एक सुर में नारेबाजी करने लगे ! अन्ना-रामदेव वापस जाओ --- अन्ना-रामदेव गो बैक......!

अदना सा मैं, भला क्या करता ; बस अपने पास आये एक मेल को मोबाइल पर पढने लगा, लिखा था;
May your happiness increase like Petrol Price,
May your sorrow fall like Indian Rupee, &
May your joy fill your heart like corruption in India …!!!

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Congress is fulfilling its promise, when they said: GDP will rise this year.

The only thing, they forgot to tell us its full form:

G= Gas & Gold
D= Diesel & Dollar
P= Petrol & Price

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Pleasure & Pain come at the same price: Rs.80/- for a Beer Bottle OR 1 Litre Petrol.
Decision is yours… झूम लो, या घूम लो.!!!
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Dear Father-in-Law,

I deeply regret taking a Car in dowry.
Please take your Daughter or Car back…
I cannot afford both.

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Now Tata Nano’s fuel cost will be more than its EMI per month!

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Finally it has happened…
After decades,
Beer is now cheaper than petrol !!!
Now, there will be a new slogan: JUST DRINK; DON’T DRIVE !!!

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'Drink and drive' should not be a problem now.
After all, how many will be able to afford alcohol and petrol on the same day?

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We have the world’s cheapest car and the world’s costliest petrol. रिकॉर्ड बन गया!!!
Signboard at Petrol pump: Buy Petrol worth Rs. 20,000 and get a TATA Nano Car absolutely free.

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Man at Petrol Pump: Full tank कर दो...
Attendant: Sir, PAN Card की copy दो...
Man: What? Why? How?
Attendant: Sir, it’s a HIGH VALUE TRANSACTION !!!

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Amitabh Bachchan has decided to take all his payments in Dollars
Because……….
वो आज भी गिरे हुए पैसे नहीं उठiता...!!!
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Dharmendra’s new dialogue:
कुत्ते... कमीने... तेरी गड्डी का पेट्रोल पी जाऊंगा..

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Beti: Mom, He is JUST A FRIEND!
Mom: हमने दुनिया देखि है, बेटी... 2 लीटर पेट्रोल जलाके घरआने वाला कभी JUST FRIEND नहीं होता...

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Dear Rupee,
तुम मेरे प्यार में इतना गिर जाओगे,
ये मैंने सपने में भी नहीं सोचा था...
~तुम्हारा ~
Dollar

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रामचंद्र कहे गए सिया से, ऐसा कलयुग आएगा,
कार कैश पे लेगा हर कोई, पेट्रोल लोन से भरवाएगा...!!

Wishing you all a

Happy
Independence
Day !

अंत में बस इतना ही निवेदन करूंगा कि कल स्वतंत्रता दिवस पर दिवंगत कॉंग्रेसी नेता  देशमुख के निधन की आढ़ में  दो मिनट का मौन रखकर यह मनन जरूर कीजिएगा कि क्या हमें वास्तविक तौर पर आजादी मिली या फिर हम अभी तक मुगालते में ही जी रहे है ! 

लुंठक, बटमारो के हाथ में आज सारा मेरा देश है,
गणतंत्र बेशक बन गया हो, स्वतंत्र  होना शेष  है !    

एक बार पुन:  स्वतन्त्रता दिवस की आपको हार्दिक शुभ कामनाये !

Friday, August 10, 2012

फ़साने निकल आते है....



छुपाकर हासिल होगा न कुछ भी, दास्ताँ को जमाने से,
फ़साने कई-कई निकल आते है, अक्सर इक फ़साने से।

जिक्र आएगा भरी महफ़िल, जुबां पर जब भी तुम्हारा,
लफ्ज़ रोके न रुक पाएंगे मुहब्बत की दास्तां सुनाने से।

पलकों के उठते-गिरते ही, नयन बयाँ कर देते है सब,
निहारो हमें दिल खोलकर, फायदा क्या नजर चुराने से।

फितना-ए-अक्ल भले ही,  दिखाने के काबिल न रही,
किन्तु तुम्हें पाकर ही जाकर लगेगी, कहीं ठिकाने से।

कदम जिन्हें हम 'परचेत',रखते थे बालिस्तों से नापकर,
तुम्हें देखकर यूं लड़खड़ाते है,निकले हों ज्यूँ मयखाने से।

Monday, August 6, 2012

असम - ऑक क्रीक त्रासदी के बहाने !

इतिहास गवाह है, और इसमें कोई दो राय भी नहीं कि इस समूची धरा पर संकीर्ण स्वार्थवाद, क्षेत्रवाद, रंगभेद, जातिवाद, और धार्मिक कट्टरवाद ने जब-जब  उसे मौक़ा मिला, मानवता का निर्ममता से खून बहाया! लेकिन साथ ही यह भी सत्य है कि इस खून-खराबे की सिर्फ इतनी ही ज्ञांत वजहें नहीं है! कई बार इससे थोड़ा भिन्न वजहें भी होती है,  जो इस तरह के खून खराबे को जन्म देती हैं, और उसमे से एक वजह है, अस्तित्व की लड़ाईहालांकि यह जुनून और इंसानी पागलपन भी  रंगभेद, जातिवाद, और धार्मिक कट्टरवाद से ख़ास भिन्न नहीं होता है किन्तु, हम यह भी अनदेखा नहीं कर सकते कि  आंतरिक शान्ति की दशा से अलग, एक सभ्य समाज से सम्बद्ध होते हुए भी युद्ध के मैदान में एक सैनिक की मानसिकता होती है, दुश्मन को मारो अन्यथा वह तुम्हें मार डालेगा! 

गत रविवार को अमेरिका के विस्कोन्सिन स्थित मिल्वाउकी के उपनगरीय इलाके ऑक  क्रीक में स्थित गुरूद्वारे में सिख समुदाय को निशाना बनाकर जो  गोलीबारी की गई, हालांकि अभी उसके निष्कर्षों पर पहुंचना मैं समझता हूँ शायद जल्दबाजी होगी ! लेकिन शुरुआती तौर पर उसे वहाँ की पुलिस की ओर से भी ‘घरेलू आतंकवाद’ की कार्रवाई करार दिया गया है! खून-खराबे के बाद अक्सर जो सवाल हमेशा पीछे छूट जाते है, वे है कि आखिर यह सब हुआ क्यों ? और यही सवाल  आज ऑक क्रीक का गुरुद्वारा भी पूछ रहा है ! गहन बातों पर पर्दा डालने के लिए यह कह देना कि अमुक हत्यारा ९/११ का टैटो लिए हुए था, अत: सिखों को मुसलमान समझकर उसने यह जघन्य अपराध किया होगा, एक सरलतम निष्कर्ष कहा जा सकता है! इसकी वजह यह है कि  हत्यारा एक अनुभवी पूर्व अमेरिकी सैनिक था, और आज के इंटरनेट के युग में यह कह देना कि उसे सिख और मुसलमान की ठीक से पहचान नहीं थी, कुछ हास्यास्पद सा लगता है !

आज जिस द्रुतगति से इंसानी आबादी बढ़ रही है, और धरा पर संसाधनों की निरंतर कमी होती जा रही है, वह इस पूरी मानव सभ्यता के लिए एक खतरे की घंटी है ! जल और जमीन की कमी आज हर क्षेत्र, प्रांत और देश की समस्या बन गई है! असम में भी आजकल जो कुछ हो रहा है, उसे भी इसी नजरिये से भिन्न नहीं देखा जा सकता ! आज भले ही अल्पसंख्यक समुदाय का फैक्ट फाइंडिंग  मिशन आदतन यह कहे कि असम की हिंसा अवैध आप्रवासियों का मुद्दा नहीं है, यह तो बीजेपी और मीडिया के एक वर्ग द्वारा उत्पन्न की गई भ्रान्ति है, लेकिन सच्चाई यही है कि इस आप्रवासी समस्या ने बोडो आदिवासियों को अस्तित्व की चिंता में डाल दिया है ! 

आठ नवम्बर, १९९८ को असम के तत्कालीन गवर्नर, लेफ्ट. जन. रिटायर्ड (PSVM ) की देश के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के आर नारायणन को लिखी गई वह चिट्ठी इस बात की गवाह है कि असम में अवैध आप्रवासी बांग्लादेशी समस्या कितना विकराल रूप धारण कर चुकी थी ! इस पत्र में इस बात का विस्तृत उल्लेख है कि किस तरह बांग्लादेश से आये घुसपैठियों ने इस पूरे परदेश के समीकरण को बदल डाला है ! ज़रा इस तालिका पर एक नजर दौडाए जिससे यह साबित होता है कि १९७१ से १९९१ के बीच असम में मुस्लिम आवादी ७७.४२ प्रतिशत बढी जबकि वहाँ की कुल हिन्दू आवादी में ४१.८९ % का ही इजाफा हुआ ;

 Community-wise growth:

Year
Assam
All India
Hindus
Muslims
Hindus
Muslims
(i) 1951-1961
33.71
38.35
20.29
25.61
(ii) 1961-1971
37.17
30.99
23.72
30.85
(iii) 1971-1991
41.89
77.42
48.38
55.०४


इस तालिका को देखने पर इस फैक्ट फाइंडिंग मिशन के दावे खोखले साबित होते है ! यह इस देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि तुच्छ राजनीतिक आकांक्षाओं, उदासीनता और चाटुकारिता ने यहाँ के मूल निवासियों  के हितों की अनदेखी की है ! क्या यह उन लोगो का दोगलापन नहीं है जो एक तरफ तो यह कहते है कि बिहार,झारखंड, उदीशा और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का अपना अस्तित्व बचाने के लिए हथियार उठाना तो उचित है किन्तु  बोडो आदिवासी ऐसा नहीं कर सकते ?  
    
न सिर्फ देश बल्कि देश के पड़ोस में भी आज हालात बेकाबू  होते जा रहे है, म्यांमार से भगाए गए आप्रवासी बांग्लादेशी मूल के लोग भी आगे चलकर हमारे देश के लिए घुसपैठ की एक गंभीर समस्या उत्पन्नं कर सकते है !  उधर लम्बे ना-नुकुर के बाद इस साल मार्च में, चीन के Vice-Premier (and likely premier in 2013)  ली  केक्वेंग ने स्टेट काउन्सिल की एक मीटिंग में कहा कि सूखा और पानी की कमी  उत्तरी चीन ( जहां चीन की सबसे बड़ी आवादी बसती   है )  की आर्थिक प्रगति को रोक रही है, जिसके परिणाम स्वरुप उन्होंने कहा कि दक्षिण-उत्तर डाईवर्सन प्रोजक्ट (South-North diversion project जिसमे ब्रह्मपुत्र के बहाव को उत्तरी  चीन ले जाने की योजना है )  अत्यंत आवश्यक हो गया है ! यह उसी प्रोजक्ट की बात कर रहे थे, जिसपर  ब्रहमपुत्र नदी पर यहाँ लगाए गए चित्र के समीप चीन अपना गुपचुप निर्माणकार्य शुरू कर चुका है ! अब ज़रा सोचिये कि यह अस्तित्व की लड़ाई जो हम देश के अन्दर देख रहे है यदि उसने सीमाएं पार की तो वह कितनी भयावह होगी ? ज्ञांत रहे कि दुनिया की कुल मानव आवादी का लगभग आधा हिस्सा इन्ही दो पड़ोसियों के पास है! साथ ही दाद देनी पड़ेगी चीनी नेतृत्व  की कि उसने १९५० के दशक में ही यह भांप लिया था कि आगे चलकर तिब्बत उसके लिए कितना अहम् हो सकता है ! 

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।