सृष्टि को उपहित न कर,
वरना कुदरत भी कहर देगा,
कभी किसी गाँव-खलियान,
कभी किसी शहर देगा।
अखंड,भंगुर वसन्त,वैभव,
तय है उजड़ना एक दिन,
छल-कपट,बेईमानियों को,
कब तलक न ठहर देगा।
लांघते ही रहे अगर हद को,
जो तय की है प्रकृति ने,
अमृत हमें जो दिया है उसने,
बनाके उसे जहर देगा।
बाढ़,सूखा,तूफाँ,भूकंप,
ये अचूक हैं हथियार उसके,
कहीं बहेगा सैलाब बनकर,
तो कहीं वो लहर देगा।
'प्रलय' और क्या है, यही है,
जो दृष्ठिगौचर हो रहा,
करेंगे न पथ दुरस्त हम,
वो प्रतिकार हर पहर देगा।
अद्भुत सामर्थ्य है 'परचेत',
कुदरत की हर कृति में,
निसर्ग,सुघर गजल को,
वो क्यों नई बहर देगा।
अंत में एक चिट्ठी उत्तराखंड से ( सौजन्य से आज तक ( साभार ):
इधर, फेसबुक और टि्वटर पर भी लोगों ने मदद की अपील शुरू कर दी है. कई मर्मस्पर्शी संदेश पढ़ने को मिल रहे हैं. उन्हीं संदेशों में से एक संदेश उत्तराखंड के लोहघाट से श्रीनिवास ओली का है. आप भी पढ़ें और वहां के लोगों के लिए दुआ करें...
सैलानियो, आपका शुक्रिया!
तीर्थयात्रा पर आए श्रद्धालुओं, आपका भी शुक्रिया! आप सभी का शुक्रिया कि आपकी मौजूदगी से ही सही, हमारा दर्द दुनिया को दिखने तो लगा है. कुछ महीनों के बाद यात्रा सीजन खत्म हो जाएगा. उसके बाद, हम भी इन तबाह खेतों के बीच फिर से अपने सपनों की फसलें रोपेंगें, बर्बाद हो चुके अस्पतालों में जिंदगी की उम्मीद खोजेंगे और खंडहरनुमा स्कूलों में बच्चों के मासूम सवालों के जवाब सोचेंगे. क्योंकि, आप सभी के लौटने के साथ ही ये तमाम तामझाम और चमकते कैमरे भी यहां से विदा ले लेंगे, हमेशा की तरह.
यहां उपजे इस अंधेरे को दूर करना कुछ मुश्किल जरूर होगा, क्योंकि रोशनी के लिए पहाड़ों की देह को छलनी कर सुरंगों का जाल बनाने की औकात हमारी नहीं है. हमारे पास दैत्याकार मशीनें नहीं, बल्कि मामूली सी कुदालें ही हैं. पहाड़ों को सीढ़ीनुमा खेतों में बदलने में ही हमारी कई पीढ़ियां गुजर जाती हैं. इससे पहले कि वहां से दो मुट्ठी अनाज हमारे घरों तक पहुंचे, सब कुछ मलबे के ढेर में बदल जाता है... और ऐसा यहां कभी-कभी नहीं बल्कि अक्सर होता है. अब आप ये ना कहना कि, फिर भी यहीं रहना क्यों जरूरी है. बस यूं समझ लीजिए कि ये हमारा घर है, ठीक वैसा ही घर जहां पहुंचने का आप सभी को बेसब्री से इंतजार है. ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ आपका एक बार फिर से शुक्रिया!
श्रीनिवास ओली- लोहघाट, उत्तराखंड
सार्थक पोस्ट .आभार .
ReplyDeleteहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
भारतीय नारी
प्रकृति आहत है...अपना क्षोभ व्यक्त करती है। दुखद घटना, प्रलयसम।
ReplyDeleteनितांत दुखद घटना, आखिर इसके लिये इंसान भी कम कसूरवार नही है.
ReplyDeleteरामराम.
गर यूँ ही लांघते गए हर हद,जो तय की है प्रकृति ने,
ReplyDeleteपरोसा है जो अमृत बनाके, उसे बनाके वो जहर देगा। ...
सच कहा है आपने ... प्राकृति अपने पास कुछ नहीं रखती ... लौटा देगी जहर जो इन्सान उसे दे रहा है ...
सच्चाई को प्रदर्शित करती रचना !!
ReplyDeleteगर यूँ ही लांघते गए हर हद, जो तय की है प्रकृति ने,
ReplyDeleteपरोसा है जो अमृत उसने, उसे बनाके वो जहर देगा। …………यही सत्य है
सूखा,बाढ़,तूफाँ,ज्वालामुखी, अचूक उसके हथियार है,
ReplyDeleteकहीं बह रहा सैलाब बनकर, और कहीं वो लहर देगा। ,,,
RECENT POST : तड़प,
हमें तो पहाड़ों से हमेशा प्यार रहा है। लेकिन इन्सान कुदरत की इज्ज़त करना नहीं जानता। बेहद दुखद है यह।
ReplyDeleteइंसान कब चेतेगा ? दुखद स्थिति
ReplyDeleteयह सच है कि पहाड़ धरती के लिये वरदान हैं जिनने उसे हमेशा खुशहाल बनाया ,संरक्षण दिया .लेकिन उन्हें हमेशा छला गया और अपने मतलब से प्रेरित विकृत-व्यवहार से सदा घायल और वंचित किया गया -
ReplyDeleteइसी अतिचार ने वरदान को अभिशाप में परिणत कर दिया !
प्रशासन की घूसखोरी नींद.....हमारा लालच ....आखिरी कितना माफ करेगी प्रकृति
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति .....
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