कल मंत्रिमंडल विस्तार के बाद हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने अपना कीमती भाषण दिया, जिसमे उन्होंने देश की वर्तमान और भविष्य की राजनीति से सम्बंधित काफी उपयोगी बाते कहीं। या यूं कह लीजिये कि उन्होंने कुछ राजनीतिक सर्टिफिकेट अपने भाषण में बांटे और कुछ राजनीतिक भविष्यवाणियाँ भी की। मैं बड़ी टकटकी लगाए महोदय के बोल सुन रहा था। वैसे भी जब कोई महत्वपूर्ण पद पर बैठा इंसान देश से सम्बंधित ज्वलंत मुद्दों पर साल में एक-आदा बार आने वाले किन्हीं त्यौहारों की ही भांति अपना मुह खोले, तो उस ख़ास पल की उपयोगिता स्वत: बढ़ जाती है। कुछ दिनों से मॉनसून की प्रचंडता और उद्विग्नता के समाचार हमारे अतिविश्वश्नीय मीडिया की सुर्खियाँ बनी हुई थी, अत: मैं यह उम्मीद भी कर रहा था कि मौसम और मॉनसून के हालिया व्यवहार पर वे शायद यह भी अवश्य कहेंगे कि पश्चिमी देशों के मौसमों की ही तरह यहाँ के मॉनसून और तूफानों को भी मर्यादा में रहकर भारतीय मौसम विभाग की भविष्यवाणी की कद्र करनी होगी, लेकिन वे ऐसा कुछ नहीं बोले। खैर, मैं इसके लिए उन्हें कोई दोष नहीं दूंगा, वो क्या है कि शुरू से ही ज्वलंत मुद्दों पर तत्काल प्रतिक्रिया देने की उनकी आदत नहीं है न । और वैसे भी वे बहुत बुद्धिमान और चालाक किस्म के इंसान है, मन ही मन भांप लिया होगा कि जिस उदंडी मॉनसून ने उत्तराखंड में खुद शिवजी की नहीं सुनी वो मेरी अथवा हमारे मौसम विभाग की क्या सुनेगा? वो कोई श्री लालकृष्ण आडवाणी तो हैं नहीं जो मना-बुझा के अपना विकराल रूप त्याग दें, इसलिए खुद चुप रहना ही बेहतर।
खैर, बात यहीं खत्म हो जाती तो वो बात ही कुछ और थी, किन्तु कमबख्त बातें हैं कि यूंपीए सरकार के घोटालों की ही भांति खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। आदरणीय मनमोहन सिंह जी एक प्रधानमंत्री के रूप में तो अब जाके विश्वविख्यात हुए है, उनकी पुरानी छवि तो एक निहायत ईमानदार और प्रख्यात अर्थशास्त्री की थी। वो बात और है कि हमारे मौसम विभाग की ही तरह शायद उनकी भी राशि में मंगल दोष होने की वजह से मुद्रास्फीति और देश की आर्थिक विकास की उनकी भविष्यवाणियों ने भी हमारे मौसम विभाग के मौसम से सम्बंधित पूर्वानुमानो की ही तरह उनके अर्थशास्त्र की भी हवा निकाल दी।
ये भरोसा (क्रेडिविलिटी) भी बड़ी कुत्ती चीज होती है। एक बार खो दिया तो दोबारा इसे हासिल करना बड़ी टेड़ी खीर है। अब चाहे उसके लिए आप अपनी जगह कितने ही सही क्यों न हों और चाहे कितनी ही ईमानदारी से प्रयास क्यों न कर रहे हों, मगर डिगा हुआ भरोसा वापस लौटा लाना एवरेस्ट फतह करने जैसा है। ठीक यही विडंबना हमारे मौसम विभाग की भी है, उसने चाहे अल्पकालिक पूर्वानुमान हो या दीर्घकालीन पूर्वानुमान, लोगों का खुद पर भरोसा कायम करने के लिए उसने कोई कसर बाकी नहीं छोडी, लेकिन यहाँ के ज़िद्दी, अनाडी लोग है कि उस पर उसकी भविष्यवाणी के ठीक विपरीत भरोसा जताते है। जिस दिन उसने कहा कि आज धूप खिली रहेगी, लोग उस दिन छाता और रेनकोट लेकर घर से बाहर निकलते है। अब यहीं देख लो, उसने ७ जुलाई को मॉनसून के उत्तर भारत पहुँचने का पूर्वानुमान लोगो को बताया था, सोचा होगा तमाम विश्व ही इस वक्त आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है, मॉनसून पर भी जरूर इसका कुछ असर पडा होगा, अत: भारी भरकम मॉनसून जब दक्षिण भारत से चलेगा तो पैसे बचाने के चक्कर में सड़क मार्ग से होकर जाएगा, १०-१५ दिन तो लगेंगे ही। कौन जानता था कि उसके पास भी इतना पैसा है कि वह चार्टड-विमान से अगले ही दिन उत्तरभारत पहुँच जाएगा। हो सकता है पिछले कुछ सालों में जो घोटाले यहाँ हुए उसमे से कुछ हिस्सा उसे भी दक्षिणा स्वरुप मिला हो। सुने को अनसुना करोगे तो भुगतना तो आखिरकार आम आदमी को ही पड़ता है, इसलिए पहाड़ों में बैठ के भुगतो, वहां की सड़कें तो सब मॉनसून जी उठाकर साथ ले गए, अब पहाडो की ठंडी हवा ही तो बाकी बची है खाने के लिए।
और अब एक निवेदन अपने उत्तराखंडी भाई-बहनों से :-
जैसा कि आप लोग भी जानते ही है कि इस बार सचमुच में मॉनसून ने आते ही कहर बरपा दिया है, और वहाँ पर जन-जन त्रस्त है। वहाँ पर आवश्यक सामान की बहुत तंगी महसूस की जा रही है। खैर, एक पहाडी होने के नाते मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि वहाँ के निवासियों को इन मुसीबतों से जूझना आता है, और वे इस मुसीबत का भी डटकर मुकाबला करेंगे। किन्तु, आप सब जानते है कि यात्रा का पीक सीजन होने की वजह से मैदानी क्षेत्रों और देश के विभिन्न भागों के यात्री और पर्यटक भी असमय आयी इस बरसात की वजह से हजारों की संख्या में वहाँ फंस गए है, और उनको वहाँ पर किन- किन मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा होगा, आप भी भलीभांति जानते है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और हेमकुंड साहिब के रास्ते में करीब 30 हजार से ज्यादा यात्री फंसे हुए हैं। अत: इस विपदा की घड़ी में हम उत्तराखंडियों का यह कर्तव्य बनता है कि हम जहां तक हो सके उन्हें हर संभव मदद पहुंचाएं। वैसे भी यह हम उत्तराखंडियों के लिए एक गौरव का विषय रहा है कि मानवता की कसौटी पर हम हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहे है। अत: एक ब्लोगर की हैसियत से मेरा आपसे यह विनम्र निवेदन है कि इस क्षण भी हम आगे आयें। जो लोग उत्तराखंड से बाहर है वे अपने सम्बन्धियों, परिचितों, खासकर वहाँ के युवावर्ग को फोन कर इस बात के लिए प्रेरित करें कि वे फंसे हुए यात्रियों की मदद के लिए आगे आये। और उनको यथासम्भव आर्थिक अंशदान देने की हम पैरवी करें। हालाँकि उत्तराखंड की ज्यादातर टेलीफोन लाइने बाधित हो गई है, फिर भी यकीन मानिए, मैं भी अपनी तरफ से वहाँ रह रहे अपने परिचितों और सम्बन्धियों से इस बारे में संपर्क बनाने की पूरी कोशिश कर रहा हूँ।
शंकर शान्त खड़े ताण्डव देख रहे हैं, नदियों का।
ReplyDeleteप्राकृतिक संकट के समय हर किसी को मदद के लिए आगे आना ही चाहिए !!
ReplyDeleteबहुत ही सटीक व्यंग, वाकई मानसून तो चार्टर प्लेन से ही आगया, बेचारी सरकारों को मानसून पूर्व की तैयारियां भी नही करने दी बेईमान ने.:)
ReplyDeleteरामराम.
जो भी वहां फ़ंसे हैं उनकी सहायता की अपील सभी को करनी चाहिये, आभार.
ReplyDeleteरामराम.
प्राकृतिक आपदा में जो यात्री और पर्यटक संकट में फसे है,सरकार से अनुरोध है शीघ्र अतिशीघ्र मदद करे,,,
ReplyDeleteRECENT POST : तड़प,
प्राकृतिक आपदा के समय सभी को सहायता के लिए आगे आना चाहिए...बहुत सटीक आलेख...
ReplyDeleteप्रशासन और सरकार पर करारी मार करते हुये एक संवेदनशील अपील कोई संवेदनशील मन ही कर सकता है।
ReplyDeleteतहे-दिल से आभार आपका, वन्दना जी ! हर इंसान के अपने अपने दुःख और दुखड़े है, जिसके लिए वह जिन्दगी भर रोता रहता है, किन्तु सच्चा इंसान वही है जो विपदा में दूसरों के काम आये !
Deleteइस आपदा से जल्दी ही लोग निजात पायें, यही कामना है.
ReplyDeleteउत्तराखंड की बिपत्ति में पूरे देश का ध्यान होना चाहिए ..
ReplyDeleteमंगल कामनाएं !
.
ReplyDelete.
.
यही कामना है कि इस आपदा से उत्तराखंड जल्दी से जल्दी व पहले से ज्यादा मजबूत-तैयार बनकर उबरे...
...
सार्थक अपील ....अपने-अपने स्तर से इस विपदा की घडी में हर किसी को मदद के लिए आगे आकर अपना योगदान देना ही चाहिए ... ..हमारा भी लघु प्रयास जारी है ....
ReplyDeleteइस प्राकृतिक आपदा में सभी को साथ मिल के काम करना चाहिए ...
ReplyDeleteआपकी बात उचित है .. आपका प्रयास भी उचित है ...
हम सहमत हैं कि इस आपत्काल में जैसे और जितना जिससे हो सके वह सहायता करे!
ReplyDeleteहम सब यही मनाते हैं कि सब कुछ शीघ्र सामान्य हो !