Friday, June 14, 2013

मुश्किल



















बड़ा अजब दस्तूर है 
इस बेदर्द जमाने का,
घर की चौखट तो कभी 
लांघी ही नहीं  हमने 
और लोग कहते है 
कि हम गुम-राह हो गए है। 


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जब उदासी की बदली,
तेरे आशियाने पे घिरे,
यादों की बारिश,
जज्बातों के ओले,
सब मेरे ही अंगना गिरें। 
आरजू खुदा से है , 
सलामत रहे तेरी 
उम्मीदों का आसमां, 
तेरे अरमानो की जमीं पे, 
न कभी पानी फिरे।।  

10 comments:

  1. बहुत सुंदर, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. बहुत सुंदर लिखा है। बढ़िया आरजू है।

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  3. बहुत खूब..क्या कहने।

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  4. वह गोदियाल जी , बहुत खूब लिखा है।
    हमराह होना भी गुमराह होना हो जाता है ।

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  5. सचमुच.. बहुत सुन्दर....

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  6. मन की आरजू के सुन्दहरी पंख ...
    सुन्दर लिखा है ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।