बड़ा अजब दस्तूर है
इस बेदर्द जमाने का,
घर की चौखट तो कभी
लांघी ही नहीं हमने
और लोग कहते है
कि हम गुम-राह हो गए है।
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जब उदासी की बदली,
तेरे आशियाने पे घिरे,
यादों की बारिश,
जज्बातों के ओले,
सब मेरे ही अंगना गिरें।
आरजू खुदा से है ,
सलामत रहे तेरी
उम्मीदों का आसमां,
तेरे अरमानो की जमीं पे,
न कभी पानी फिरे।।
क्या बात
ReplyDeleteबढिया
बहुत सुंदर, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुंदर लिखा है। बढ़िया आरजू है।
ReplyDeleteबहुत खूब..क्या कहने।
ReplyDeleteवह गोदियाल जी , बहुत खूब लिखा है।
ReplyDeleteहमराह होना भी गुमराह होना हो जाता है ।
बहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर..
ReplyDeleteसचमुच.. बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteमन की आरजू के सुन्दहरी पंख ...
ReplyDeleteसुन्दर लिखा है ...
बहुत ही सुंदर लाजबाब ,,,
ReplyDeleteRECENT POST: जिन्दगी,