देखी ऐसी जो गत,
तेरे दर,सत-पथ की,
प्रभु,चाह न रही,
मुझे अब तीरथ की।
धाम तेरे आने की,
जो थी मन अभिलाषा,
दुखियारे जन को,
देते ख़त्म हुई दिलासा।
हुई खण्डित धुन,
जोश,मुराद,मनोरथ की,
प्रभु,चाह न रही,
मुझे अब तीरथ की।
पुण्य-सफर दुष्कर होगा,
अनजाने थे वो,
वैकुण्ठ में पग धारण को
दीवाने थे वो।
खिले-अधखिले सब ही
लील गई नदिया,
कुम्पित-मुरझाए से,
बचे फूल हैं बगिया।
थर-थर कांपी तो होगी,
रूह भगीरथ की,
प्रभु,चाह न रही,
मुझे अब तीरथ की।
उन्हें इल्म न था,
जाकर तेरे द्वारे,
वक्त भी दे जाएगा
उन्हें जख्म करारे।
लुटेगी लाज प्रांगण
तेरे, नथ-नथ की,
प्रभु,चाह न रही,
मुझे अब तीरथ की।
बनकर तलवार,
छड़ी कुदरत की घूमी,
विध्वंसित हो गई,
जो थी देव-भूमि।
घुले ही जा रही,
बेकली मन-मथ की,
प्रभु,चाह न रही,
मुझे अब तीरथ की।
दुखद अध्याय, आस्था के पग पर।
ReplyDeleteबहुत ही दुखद..............
ReplyDeleteरामराम.
आस्था बस एक दुखद घटना,,,,सुंदर प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRecent post: एक हमसफर चाहिए.
अत्यंत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteअब तो लोग जाने से पहले दस बार सोचेंगे ...
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल मंगलवार (25 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार२ ५ /६ /१ ३ को चर्चा मंच में राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
ReplyDeleteआपने सब कुछ शब्दों में ढाल कर उकेर दिया , मनोस्थिति से लेकर वस्तुस्थिति तक सब कुछ रख दिया इस रचना के माध्यम से
ReplyDeleteभावपूर्ण -
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
वापस धनबाद आ गया हूँ-
सादर-
Welcome back , Ravikar Ji !
Deleteकिसी का भी ह्रदय टूट जाएगा ये सब देख!आस्था भी डांवाडोल हो ही जाती है कुछ समय के लिए!
ReplyDeleteकुँवर जी,
उत्क्रुस्त , भावपूर्ण एवं सार्थक अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteअपना दोष ईश्वर के सर
ReplyDeleteइंसान क्यों है इतना तंगनज़र|
क्या सिर्फ कुछ पाने की इच्छा से थी भक्ति,
नहीं थी आस्था, बस आसक्ति |
कष्टों के एक झटके से ही टूट जाए-
वह अनास्था,
आस्था कब कहलाये|
जनता आस्था और अनास्था के बीच में झूल रहे हैं .आस्था पर बल देने वालों के पास भी कोई जवाब नहीं.-अच्छी रचना
ReplyDeletelatest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
बेहद दु:खद .......आस्था और अनास्था के बीच हज़ारों सवाल मन में डोल रहे हैं .....प्रभु के लीला न्यारी है ...कोई नहीं जानता कब क्या हो जाय ..
ReplyDeleteदुखद है जो हुआ ... पर इसमें क्या प्रभू का दोष
ReplyDeleteसमय समय पे वो अपनी उपस्थिति का एहसास कराता है ... पर ऐसे एहसास कराएगा पता न था ...