Monday, June 24, 2013

प्रभु, चाह न रही मुझे अब तीरथ की।


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देखी ऐसी जो गत, 
तेरे दर,सत-पथ की,
प्रभु,चाह न रही, 
मुझे अब तीरथ की।

धाम तेरे आने की,
जो थी मन अभिलाषा,
दुखियारे जन को,
देते ख़त्म हुई दिलासा। 

हुई खण्डित धुन,
जोश,मुराद,मनोरथ की,
प्रभु,चाह न रही, 
मुझे अब तीरथ की।

पुण्य-सफर दुष्कर होगा,

अनजाने थे वो, 
वैकुण्ठ में पग धारण को 

दीवाने थे वो। 
   
खिले-अधखिले सब ही 

लील गई नदिया,
कुम्पित-मुरझाए से,

बचे फूल हैं बगिया। 

थर-थर कांपी तो होगी,

रूह भगीरथ की,
प्रभु,चाह न रही, 
मुझे अब तीरथ की।

उन्हें इल्म न था, 

जाकर तेरे द्वारे,
वक्त भी दे जाएगा 

उन्हें जख्म करारे। 

लुटेगी लाज प्रांगण 

तेरे, नथ-नथ की,   
प्रभु,चाह न रही, 
मुझे अब तीरथ की।

बनकर तलवार,

छड़ी कुदरत की घूमी,
विध्वंसित हो गई, 

जो थी देव-भूमि।  

घुले ही जा रही, 

बेकली मन-मथ की,
प्रभु,चाह न रही, 
मुझे अब तीरथ की।

16 comments:

  1. दुखद अध्याय, आस्था के पग पर।

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  2. बहुत ही दुखद..............

    रामराम.

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  3. आस्था बस एक दुखद घटना,,,,सुंदर प्रस्तुति,,,

    Recent post: एक हमसफर चाहिए.

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  4. अत्यंत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  5. अब तो लोग जाने से पहले दस बार सोचेंगे ...

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  6. आपकी यह रचना कल मंगलवार (25 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  7. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार२ ५ /६ /१ ३ को चर्चा मंच में राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।

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  8. आपने सब कुछ शब्दों में ढाल कर उकेर दिया , मनोस्थिति से लेकर वस्तुस्थिति तक सब कुछ रख दिया इस रचना के माध्यम से

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  9. भावपूर्ण -
    आभार आदरणीय-
    वापस धनबाद आ गया हूँ-
    सादर-

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  10. किसी का भी ह्रदय टूट जाएगा ये सब देख!आस्था भी डांवाडोल हो ही जाती है कुछ समय के लिए!

    कुँवर जी,

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  11. उत्क्रुस्त , भावपूर्ण एवं सार्थक अभिव्यक्ति .

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  12. अपना दोष ईश्वर के सर
    इंसान क्यों है इतना तंगनज़र|
    क्या सिर्फ कुछ पाने की इच्छा से थी भक्ति,
    नहीं थी आस्था, बस आसक्ति |
    कष्टों के एक झटके से ही टूट जाए-
    वह अनास्था,
    आस्था कब कहलाये|

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  13. जनता आस्था और अनास्था के बीच में झूल रहे हैं .आस्था पर बल देने वालों के पास भी कोई जवाब नहीं.-अच्छी रचना
    latest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!

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  14. बेहद दु:खद .......आस्था और अनास्था के बीच हज़ारों सवाल मन में डोल रहे हैं .....प्रभु के लीला न्यारी है ...कोई नहीं जानता कब क्या हो जाय ..

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  15. दुखद है जो हुआ ... पर इसमें क्या प्रभू का दोष
    समय समय पे वो अपनी उपस्थिति का एहसास कराता है ... पर ऐसे एहसास कराएगा पता न था ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।