नाइंसाफी की भी हद है
इस शहर मे,
कोई फर्क नहीं, सुबह, शाम
और दोपहर मे।
नूतन वर्ष के बहाने,
कोई डूबा है जशन मे,
नववर्ष की पूर्व संध्या पर
पार्टी मे, उसने सबको बुलाया,
मुझे नहीं, कोई जी रहा है
इसी टशन मे।
जो दरिद्रता से नंगा है,
कोशिश कर रहा तन ढकने की
और जो समृद्ध है,
नंगा ही नजर आ रहा, वसन मे।।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteशुक्रिया तिवारी जी।
ReplyDelete