Wednesday, January 15, 2020

पीर पराई ।


दर्द उनका, सिर्फ वहीं जान पायेंगे
जिन्हें, तमाम रात नींद नहीं आती,
खामोश निशा, आंखों ही आंखों मे
घिसट-घिसट कर कैंसे गुजर जाती।
ऐ गुलजार, ये तुम्हें है मालूम कि मुझे,
सुबह होने मे कितने जमाने लगते हैं।।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।