Thursday, July 30, 2009

लघु व्यंग्य- अरहर महादेव !


सावन का महीना है, इस पूरे मास में हिन्दू महिलाए प्रत्येक सोमवार को शिव भगवान् का व्रत रखती है, शिव मंदिरों में पूजा-अर्चना करती है तथा उन्हें श्रदा-पूर्वक ताजे पकवानों का भोग चढाती है।    पिछले सोमवार को थोडा जल्दी उठा गया था, और बरामदे में बैठ धर्मपत्नी के साथ चाय की चुस्कियाँ लेते हुए अच्छे मूड में होने का इजहार उनपर कर चुका था।   अतः ब्लैकमेलिंग में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल मेरी धर्मपत्नी ने मुझे जल्दी नहा -धोकर तैयार होने को कहा।  मैंने कारण उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि मुझे भी आज उनके साथ मोहल्ले के बाहर, सरकारी जमीन को  कब्जाकर बने-बैठे शिवजी के मंदिर में पूजा-अर्चना करने और भोग लगाने चलना है।  

स्नानकर तैयार हुआ तो धर्मपत्नी भी किचन में जरूरी भोग सामग्री बनाकर तैयार बैठी थी।   अतः हम चल पड़े मंदिर की और।   मंदिर पहुंचकर कुछ देर तक पुजारी द्वारा आचमन और अन्य शुद्धि विधाये निपटाने के बाद हम दोनों ने मंदिर के बगल में स्थित भगवान् शिव की करीब दो मीटर ऊँची प्रतिमा को दंडवत प्रणाम किया।   इस बीच धर्मपत्नी थाली पर भगवान् शिव को चढाने के वास्ते साथ लाये पकवान सजा रही थी कि मैंने थोड़ा  जोश में आकर भगवान् शिव का जयघोष करते हुए कहा; "हर-हर महादेव !" यह जय-घोष किया तो मैंने पूरे जोश के साथ था, किन्तु  चूँकि पहाडी मूल का हूँ, आवाज में  भरीपन  न होने की वजह से कभी-कभार सुनने वाला उलटा-सीधा भी सुन लेता है।   अतः जैसे ही मेरा हर-हर महादेव कहना था कि अमूमन आँखे मूँद कर अंतर्ध्यान रहने वाले शिवजी ने तुंरत आँखे खोल दी, और बोले, "ला यार, कहाँ है अरहर की दाल , पिछले एक महीने से किसी भक्तगण ने भी यहां दाल नहीं परोसी।   अरहर की दाल खाने का मेरा भी बहुत जी कर रहा है।  " मगर ज्यों ही मेरी धर्मपत्नी ने भोग की थाली आगे की, शिवजी थाली पर नजर डालकर  क्रोधित होते हुए बोले, "तुम लोग नहीं सुधरोगे, टिंडे की सब्जी पका कर लाया है और मोहल्ले के लोगो को सुनाने और गुमराह करने के लिए अरहर की दाल बता रहा है ?

बकरे की भांति मै-मै करते हुए मैंने सफाई दी, भगवन आप नाराज न हो, मेरा किसी को भी गुमराह करने का कोई इरादा नहीं है।   दरह्सल आपके सुनने में ही कुछ गलती हो गई, मैंने तो आपकी महिमा का जय-घोष करते हुए हर-हर महादेव कहा था, आपने अरहर सुन लिया।   अब आप ही बताएं प्रभु कि इस कमरतोड़ महंगाई में आप तो बड़े लोगो के खान-पान वाली बात कर रहे है, हम चिकन रोटी खाने वाले लोग भला आपको १०५ रूपये किलो वाली अरहर की दाल कहाँ से परोश सकते है? यहाँ तो बाजार की मुर्गी घर की दाल बराबर हो रखी है, आजकल एक 'लेग पीस' में ही पूरा परिवार काम चला रहा है ! और हाँ, ये जो आप टिंडे की सब्जी की बात कर रहे है तो इसे भी आप तुच्छ भोग न समझे प्रभु, ४५/- रूपये किलो मिल रहे है टिंडे भी।  इतना सुनने के बाद भगवान शिव ने थोडा सा अपनी मुंडी हिलाई, कुछ बडबडाये, मानो कह रहे हो कि इडियट,पता नहीं कहाँ-कहाँ  से सुबह-सुबह चले आते है, मूड ख़राब करने ...........और फिर से अंतर्ध्यान हो गए।  

4 comments:

  1. बढ़िया व्यंग्य

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  2. हाँ, और मेरे घर से जो दाल की चोरी हुई तो आपने कह दिया की 'भुक्खड़ चोर थे' अब दाल की चोरी कोई मामूली चोरी नहीं है....समझ लीजिये.
    अगली बार अरहर की दाल चढावा में ले जाइए बस बिल उन्हें पकडा दें...क्या पता भोले शंकर टिप ऐसी दे दें की बेडा पार ही हो जाए... हा हा हा हा हा
    बहुत ही बढ़िया व्यंग.... हँसते ही रहे हम...

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  3. ha..ha..ha...majedar vyangya.

    "युवा" ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

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  4. बहुत करारा झटका, सटीक व्यंग्य.

    अब हर हर महादेव के बदले ओम नमः शिवाय बोला करो.

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।