...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
Thursday, September 25, 2014
Tuesday, September 23, 2014
Saturday, September 20, 2014
तेरे इसरार पे मैं, हर हद पार करता हूँ।
बयां यह बात दिल की मैं, सरेबाजार करता हूँ,
ख़ब्त ऐसी ये कभी-कभी,ऐ मेरे यार करता हूँ।
(खब्त =पागलपन )
जबसे हुआ हूँ दीवाना,तुम्हारी मय का,ऐ साकी,
उषा होते ही निशा का, मैं इन्तजार करता हूँ।
अच्छा नहीं अधिक पीना,कहती हो सदा मुझसे,
तेरा इसरार कुछ ऐसा, मैं हर हद पार करता हूँ।
(इसरार=आग्रह )
जो परोसें जाम कर तेरे, ठुकराना नहीं मुमकिन, है अधम हाला बताओ तुम, मैं इन्कार करता हूँ।
खुद पीने में कहाँ वो रस, जो है तेरे पिलाने में,
सरूरे-शब तेरी निगाहों में,ये इकरार करता हूँ।
करे स्तवन तेरा 'परचेत', लगे कमतर,ऐ साकी,
ये मद तेरी सुधा लागे, मधु से प्यार करता हूँ।
(खब्त =पागलपन )
जबसे हुआ हूँ दीवाना,तुम्हारी मय का,ऐ साकी,
उषा होते ही निशा का, मैं इन्तजार करता हूँ।
अच्छा नहीं अधिक पीना,कहती हो सदा मुझसे,
तेरा इसरार कुछ ऐसा, मैं हर हद पार करता हूँ।
(इसरार=आग्रह )
जो परोसें जाम कर तेरे, ठुकराना नहीं मुमकिन, है अधम हाला बताओ तुम, मैं इन्कार करता हूँ।
खुद पीने में कहाँ वो रस, जो है तेरे पिलाने में,
सरूरे-शब तेरी निगाहों में,ये इकरार करता हूँ।
करे स्तवन तेरा 'परचेत', लगे कमतर,ऐ साकी,
ये मद तेरी सुधा लागे, मधु से प्यार करता हूँ।
Thursday, September 18, 2014
बेवफ़ा
तरुण-युग, वो कालखण्ड,
जज्बातों के समंदर ने
सुहाने सपने प्रचुर दिए थे,
मन के आजाद परिंदे ने
दस्तूरों के खुरदुरेपन में कैद
जिंदगी को कुछ सुर दिए थे।
और फिर शुरू हुई थी
अपने लिए इक अदद् सा
आशियाना ढूढ़ने की जद्दोजहद,
जमीं पर ज्यूँ कदम बढे
कहीं कोई तिक्त मिला,
और कभी कोई शहद।
सफर-ऐ-सहरा आखिरकार,
मुझे अपने लिए एक
सपनो की मंजिल भाई थी,
पूरे किये कर्ज से फर्ज
और गृह-प्रवेश पर
संग-संग मेरे "ईएम आई" थी।
अब नामुराद बैंक की
'कुछ देय नहीं ' की पावती ही,
हाथ अपने रह गई,
हिसाब क्या चुकता हुआ
कि वो नाशुक्र गत माह
मुझे अलविदा कह गई।
दरमियाँ उसके और मेरे
रिश्ता अनुबंधित था,
वक्त का भी यही शोर रहा है,
शिथिल,शाम की इस ऊहापोह में
मन को किन्तु अब
येही ख़्याल झकझोर रहा है।
हुआ मेरा वो 'आशियाना ',
उसके रहते जिसपर
हम कभी काबिज न थे,
मगर, वह यूं चली गई,
वही बेवफा रही होगी,
हम बेवफ़ा तो हरगिज न थे।
Thursday, September 4, 2014
आस्था और श्रद्धा
भावुक था विदाई पर
वहाँ पीहर पक्ष का हर बंदा,
किया प्रस्थान ससुराल,
तज मायका निकली नंदा।
हुआ पराया पीहर,
छूटे रिश्तों के सब ताने-बाने,
रूपकुण्ड से आगे पथ पर
साथ चले सिर्फ
"चौसींगा" वही जाने-माने।
Heavy Snowfall at Manali in the month of September |
रूठकर गई थी
ससुराल वालों से,
और पीहर में थी
वह चौदह सालों से,
बिन उसके शिव उदास,
लगता था घर उनको
सूना-सूना,खाली-खाली। अब जब वह
वापस कैलाश लौटी,
इन्द्रदेव भी खुश हुए,
कुछ यूं मदद की शिव की,
सितम्बर में बनाया
दिसम्बर का सा मौसम
और खूब बर्फबारी हुई, कल 'मना'ली।।
कैलास के लिए विदा हुई नंदा, छह खाडू गए साथ
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प्रश्न -चिन्ह ?
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