Friday, April 10, 2020

सच को सच न कह पाने की असमर्थता ।

दोस्तों,

जैसा कि आपने भी नोट किया होगा, सोशल मीडिया और खबरिया  चैनलों और ट्वीट्स पर यहां चस्पा तस्वीर तारीफों के पुलों के साथ सुबह से वायरल हो रही है। कोई संदेह नहीं कि महिला का दुस्साहस थोडी देर के लिए उसके प्रति दिल मे सम्मान उत्पन्न करता है।
किंतु, साथ ही बहुत से सवाल भी खडे करता है और जो शायद अब तक देश मे मौजूद बहुत सी सिकुलर जोंकें और प्रेश्या खडे कर भी चुके होते, अगर महिला एक समुदाय विशेष से ताल्लुक न रखती होती तो।

बच्चे अगर मुसीबत मे हों तो हर मां ऐसा ही साहस कह लो या फिर दुस्साहस, रखती है। सिर्फ़ देश, काल और परिस्थितियों को भी एक समझदार मां को ध्यान मे रखना पडता है। फिर ऐसा महिमामंडन क्यों?
और हर कोई इन सवालों को क्यों नजरअंदाज कर रहा है:-
1) महिला ने यह कहा, उसने पुलिस की अनुमति ली थी। बहुत बढिया, मगर , क्या इतने लम्बे सफर मे बिना हेलमेट की ड्राइव की हमारा कानून अनुमति देता है?
2) जैसा कि चित्र से पता चल रहा है , महिला के बेटे ने भी हेलमेट नहीं पहना हुआ था और ना ही मास्क।
3) आजकल कोरोना के चलते सोशल डिस्टेंसिंग की बडी चर्चा है, क्या यहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हुआ ?
4)क्या मां बेटे को क्वारनटाइन किया गया ?
5) क्या लॉकडाउन का उल्लंघन नहीं हुआ?
मेरा भारत महान!

2 comments:

  1. बहुत वाज़िब सवाल उठाए हैं आपने।

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संशय!

इतना तो न बहक पप्पू ,  बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,  नादानियां तेरी, कहर  बनकर।