अति सम्मोहित ख्वाब
कैफियत तलब करने
आज भी गए थे वहां,
उस जगह, जहां कलतक
रंगविरंगे कुसुम लेकर
वसंत आया करता था ।
कुछ ख़याल यह देखकर
अतिविस्मित थे कि
उन्मत्त दरख्त की ख्वाईशें,
उम्मीद की टहनियों से
झर-झर उद्वत
हुए जा रही थी।
क्या पतझड़ फिर से
दस्तक दे गया है?
या फिर, वसंत के
पुलकित एहसास ही
क्षण-भंगूर थे?
आशंकित मन के सवालों का
जबाब क्या होगा,
आशंकित मन के सवालों का
जबाब क्या होगा,
नहीं मालूम !!
निरुत्तर हूँ।
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