Wednesday, April 29, 2020

सुरा-पतझड!


अति सम्मोहित ख्वाब
कैफियत तलब करने
आज भी गए थे वहां,
उस जगह, जहां कलतक
रंगविरंगे कुसुम लेकर
वसंत आया करता था ।

कुछ ख़याल यह देखकर
अतिविस्मित थे कि 
उन्मत्त दरख्त की ख्वाईशें,
उम्मीद की टहनियों से
झर-झर उद्वत
हुए जा रही थी।

क्या पतझड़ फिर से 
दस्तक दे गया है?  
या फिर, वसंत के
पुलकित एहसास ही
क्षण-भंगूर थे? 
आशंकित मन के सवालों का
जबाब क्या होगा,
नहीं मालूम !!

1 comment:

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...