लॉकडाउन ऐक्सटेंशन !
चित्र गुगल से साभार। |
क्यों हो रहा है तू इसकदर, खफा़ जिन्दगी से,
यार,करके तो देख थोड़ी सी, वफ़ा जिन्दगी से।
अंदर ही रह बाहर मत जा, कोरोना के दर पे,
अंदर ही रह बाहर मत जा, कोरोना के दर पे,
थोडी सी मोहब्बत फरमा, इक दफा़ जिन्दगी से।
यूं बिगड़ने न दे दस्तूर, तू जमाने का जालिम,
अच्छा नहीं हर वक्त खोजना, नफ़ा जिन्दगी से।
छुपा के रख हरेक राज, अपनी बेतकल्लुफी का,
करके मिलेगा भी क्या तुझको, जफा़ जिन्दगी से।
ये ऐतबार तेरा बनने न पाये, बेऐतबारी का सबब,
जिंदा है,जोड़े रख 'परचेत',फलसफा़ जिन्दगी से।
यूं बिगड़ने न दे दस्तूर, तू जमाने का जालिम,
अच्छा नहीं हर वक्त खोजना, नफ़ा जिन्दगी से।
छुपा के रख हरेक राज, अपनी बेतकल्लुफी का,
करके मिलेगा भी क्या तुझको, जफा़ जिन्दगी से।
ये ऐतबार तेरा बनने न पाये, बेऐतबारी का सबब,
जिंदा है,जोड़े रख 'परचेत',फलसफा़ जिन्दगी से।
बहुत ही गजब गोदियाल जी एकदम सटीक
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए आभार अजय जी।
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 12 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आपका।
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ReplyDeleteयूं बिगड़ने न दे दस्तूर, तू जमाने का जालिम,
अच्छा नहीं हर वक्त खोजना, नफ़ा जिन्दगी से।
लॉकडाउन के वक्त में अच्छी एवं सटीक सीख। सादर।
आभार मीना जी🙏
ReplyDeleteबढिया लिखा है आपने।
ReplyDeleteआभार आपका।
ReplyDeleteछुपा के रख हरेक राज, अपनी बेतकल्लुफी का,
ReplyDeleteकरके मिलेगा भी क्या तुझको, जफा़ जिन्दगी से।
बहुत खूब आदरणीय परचेत जी | सुंदर रचना और सटीक भाव | सादर
आभार रेणू जी।
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