Saturday, April 11, 2020

इस रात की सुबह... कब ?

       लॉकडाउन ऐक्सटेंशन !
चित्र गुगल से साभार।
अपनी एक पुरानी रचना की "तोड"मोड" प्रस्तुति:

 क्यों हो रहा है तू इसकदर, खफा़ जिन्दगी से, 
यार,करके तो देख थोड़ी सी, वफ़ा जिन्दगी से।


अंदर ही रह बाहर मत जा, कोरोना के दर पे,
थोडी सी मोहब्बत फरमा, इक दफा़ जिन्दगी से।  

 यूं बिगड़ने न दे दस्तूर, तू जमाने का जालिम,
अच्छा नहीं हर वक्त खोजना, नफ़ा जिन्दगी से।  

छुपा के रख हरेक राज, अपनी बेतकल्लुफी का,
करके मिलेगा भी क्या तुझको, जफा़ जिन्दगी से।   

ये ऐतबार तेरा बनने न पाये, बेऐतबारी का सबब,
जिंदा है,जोड़े रख 'परचेत',फलसफा़ जिन्दगी से।    

11 comments:

  1. बहुत ही गजब गोदियाल जी एकदम सटीक

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  2. उत्साहवर्धन के लिए आभार अजय जी।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 12 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. यूं बिगड़ने न दे दस्तूर, तू जमाने का जालिम,
    अच्छा नहीं हर वक्त खोजना, नफ़ा जिन्दगी से।
    लॉकडाउन के वक्त में अच्छी एवं सटीक सीख। सादर।

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  5. बढिया लिखा है आपने।

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  6. छुपा के रख हरेक राज, अपनी बेतकल्लुफी का,
    करके मिलेगा भी क्या तुझको, जफा़ जिन्दगी से।
    बहुत खूब आदरणीय परचेत जी | सुंदर रचना और सटीक भाव | सादर

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।