Friday, January 6, 2012

(कु)खुश-वाह-वाह मानसिकता और आरएसएस !

अपने इस गौरवशाली महान और प्राचीनतम हिन्दू सनातन धर्म ( जिसका संस्कृत वाक्यांश है 'चिरकालिक आचार' / 'अनंत धर्म' ) का एक प्रबल समर्थक होने के नाते मेरी हमेशा यही कोशिश रहती है कि हर उस बात, स्थान, व्यक्ति और संस्था का समर्थन करू जो इसके पक्ष में हो, और हर उसका विरोध करू जो इसे किसी भी किसी तरह से ठेस पहुंचाने की कोशिश करता हो! और शायद यही वजह थी कि मैं आरएसएस का शुभचिंतक रहा हूँ ! यही नहीं वक्त-वेवक्त जब भी किसी ने किसी मंच पर इसके ऊपर कीचड उछालने की कोशिश की हो, मैंने हमेशा अपने ढंग से उसका पुरजोर विरोध भी किया !



जहाँ तक बीजेपी का सवाल है, यह शायद नामुमकिन ही है कि कहीं पर इस नाम का जिक्र आये और लोग भाजपाइयों की तारीफ़ में निम्न दो बातों का उल्लेख न करें; एक तो इनका बड़बोलापन और दूसरा इसकी 'कथनी और करनी' में जमीन आसमान का फर्क (दोगलापन) ! और अपने देश में खासकर मैंने यह देखा है कि इन विशेषताओं वाले प्राणी अगर कभी लग्न और ईमानदारी से भी कोई प्रयास कर रहे हो तो देखने वाले को अक्सर वह भी " ड्रामेबाजी " ही नज़र आती है! हाँ, इसमें दोष देखने वाले का नहीं अपितु इस किस्म के प्राणियों का ही है, क्योंकि अपनी साख बनानी तो दूर, अपने प्रति संदेह का धरातल भी वह खुद ही तैयार करता है ! और यह स्थिति विशेषकर तब पैदा होती है जब यह पता न लगे कि इनका सुप्रीम कमांडर है कौन और इनकी जबाबदेही है किसके प्रति ? इस तरह के सिपय-सालार जहां मौक़ा मिले, कुछ भी बोल देते हैं, क्या करना है, क्या बोलना है क्या नही, कोई बंधन ही नही! और यही ताजा-ताजा दृश्य उत्तरप्रदेश में देखने को मिल रहा है! एक समय था जब मै भी यह मानकर चलता था कि इस पार्टी में आगे चलकर देश को नई ऊँचाइयों, नए आयामों पर ले जाने की क्षमता है, लेकिन लगता है मेरा यह भ्रम भी श्री आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने के ख्वाबो की तरह निरंतर क्षुब्दता की परतों तले दफ़न हो जाएगा ! ऐंसा नही कि इनमे पढ़े लिखे , समझदार, ईमानदार और कर्मठ लोगो की कमी है, कमी है तो बस एक सुदृढ नेतृत्व की, पारदर्शिता की , दृड़ संकल्प की, कमी है अपने संकीर्ण दृष्टिकोण और निजी स्वार्थो को छोड़कर एक व्यापक परिदृश्य में सोचने की !



निश्चित तौर पर आज इन्होने मेरे जैसे ऐसे उन अनेकों शुभचिंतकों का दिल दुखाया है जो अपने हिन्दू धर्म के प्रति सजग हैं, लेकिन जिस बात का मुझे सबसे बड़ा अफ़सोस है, और आश्चर्य भी है, वह है आरएसएस की ढुलमुल और दोहरी नीति ! बीजेपी की अच्छी चीजों की वाह-वाही का सेहरा अपने सिर और गलतियों का ठीकरा उसके सिर ! बीजेपी का हालिया कदम नि:संदेह ही एक अविवेकपूर्ण निर्णय कहा जा सकता है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह एक राजनैतिक दल है, और अपने अन्य राजनैतिक दलों के विरादारों से ख़ास भिन्न नहीं है! किन्तु सवाल यह उठता है कि क्या आरएसएस भी एक राजनैतिक संघठन है? यदि हाँ, तो वह भी बीजेपी के हालिया कदम का बराबर का हिस्सेदार है, और यदि नहीं तो फिर क्यों नहीं वह खुद को बीजेपी से पूर्णतया अलग-थलग कर देता है? यदि राजनीति को इस्तेमाल करने का इतना ही शौक है तो क्यों नहीं श्रीमती सोनिया गांधी की तरह बीजेपी को एक मजबूत और निर्णायक नेतृत्व प्रदान करते हो? गडकरी साहब को किसने अध्यक्ष के तौर पर प्रतिस्थापित किया? जबसे वे अध्यक्ष बने, क्या कोई एक वाकया हो, जहां पर समय रहते उचित और विवेकपूर्ण निर्णय लिया गया हो? हाँ, उत्तरप्रदेश जैसे विवादास्पद निर्णय किसी को कानो-कान खबर हुए बिना ही ले लिए जाते है ! यदि बीजेपी की राजनीति में हस्तक्षेप की गुंजाइश रखते हो तो फिर क्यों नहीं इस अकुशल नेतृत्व के मुद्दे पर अभी तक कोई निर्णय लिया गया? सीधी बात है कि या तो साफ़-साफ़ अपने को राजनीति से अलग कर दो या फिर एक जिम्मेदार बडेभाई की भूमिका निभाओ !



बड़े अफ़सोस के साथ यह सब लिख रहा हूँ, और यह कहते हुए अत्यंत खेद है कि पिछले कुछ सालों में जो मैंने अवलोकित किया उससे ऐसा लगता है कि आरएसएस साठ पार कर गए कुछ बुजुर्ग सज्जनों की चौपाल मात्र बनकर रह गई है! जो अपने उस लक्ष्य से भटक गई है जो स्वर्गीय डा० हेडगेवार ने सोची थी! समय की मांग है कि हम जागें और पुन: अपनी वह साख स्थापित करें जो पिछले ७०-७५ सालों में हमने बरकरार रखी थी, अन्यथा, हमारे दिग्विजय जी जो कहते आयें है, लोगो को उसपर मजबूरन विश्वास करना ही पडेगा !



8 comments:

  1. गडकरी जी को पार्टी में प्राण फूंकने के लिए ही लाया गया था और वे कर्मठ भी हैं और समर्पित भी। एक दो ग़लत फ़ैसले लेने मात्र से आपको इतना ज़्यादा निराश नहीं हो जाना चाहिए। जल्दी ही मोदी जी को सामने लाया जाएगा।

    राजनीति अवसर के हिसाब से की जाती है। इसमें नैतिकता आदि की ज़्यादा आवश्यकता चाणक्य ने तो समझी नहीं।

    हिंदू धर्म के प्रति आपका समर्पण देखकर अच्छा लगा लेकिन इसकी एक आचार संहिता भी है।
    उसके पालन से ही आप इसे बल दे पाएंगे और उसके अनुसार चार आश्रम हैं।
    बच्चे का 8 वें वर्ष में उपनयन संस्कार कराके उसे वेद पढ़ने के लिए गुरूकुल भेजना आवश्यक है।
    वेद न आपने पढ़े होंगे और न ही आप अपने बच्चों को पढ़ा रहे होंगे।
    आप अपने बच्चों को किसी कॉन्वेंट में सह शिक्षा दिला रहे होंगे।
    हमारे शहर का संस्कृत महाविद्यालय ख़ाली पड़ा है और कॉन्वेंट स्कूल आप जैसे हिंदूवादियों के बच्चों से पटा पड़ा है।
    क्या ऐसे ही बल मिलेगा हिंदू धर्म को ?

    हिंदू धर्म की शक्ति के लिए राजनीतिक प्रयासों के साथ साथ सामाजिक प्रयास भी किए जाने चाहिएं।
    आपका क्या विचार है ?

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  2. अभी तो उन्हें अच्छा विपक्ष बनना भी नहीं आया ।
    इससे आगे क्या आशा रखें ।

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  3. भाजपा को चार मज़बूत कंधे चाहिए... गडकारी का एक कंधा मिल गया है, दूसरे कुशवाह .... और दो की ज़रूरत है :)

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  4. अनवर जमाल को समाप्त होते नष्ट होता इस्लाम की चिंता करनी चाहिए हम हिन्दू धर्म की चिंता कर लेगे मुस्लमान इतने मरे जा रहे है तब भी इनको समझ में नहीं आ रहा है .
    बीजेपी तो राजनैतिक पार्टी है संघ तो सांस्कृतिक संगठन है
    हा मोदी जरुर आयेगे नहीं तो देश ऐसा नेतृत्व जरुर देगा.

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  5. वाकई बेहद खेदपूर्ण है भाजपा का यह कदम... इस समय उससे उम्मीद की जा रही है.. कुछ बेहतर आचरण प्रस्तुत करने की लेकिन ये फैसला तो उल्टा ही है... हालाँकि संघ ने इसका पुरजोर विरोध किया है... थोड़ी और सख्ती दिखानी चाहिए...

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  6. अनुभव की कसौटी पर कसा हुआ बहुत सटीक आलेख!

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सहज-अनुभूति!

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