Friday, October 9, 2009

हे खुदा, चलो आपने किसी को तो अक्ल बख्शी !


खबर :Burqas banned at al-Azhar University CAIRO: Egypt’s top Islamic cleric said Thursday that students and teachers will not be allowed to wear face veils in classrooms and dormitories of Sunni Islam’s premier institute of learning, al-Azhar, part of a government effort to curb radical Islamic practices.The decision announced by Sheik of al-Azhar Mohammed Sayyed Tantawi came days after he said the face veil, or niqab, ‘has nothing to do with Islam.’

तंतावी जहां अपना पक्ष इस तरह रखते है कि ‘face of a woman is not a shame.’

वहीं मुस्लिम जमात के ठेकेदार भी तैयारी करने लगे है " The media arm of the group accused Tantawi of ‘declaring war on the niqab, and facilitating matters of vice’ in a statement posted on its Web site,".


एक और खबर : Canadian Muslim group calls for burqa ban OTTAWA: A Muslim group on Thursday called for a ban on the wearing of burqas in public in Canada, saying it ‘marginalizes women.’
The burqa has absolutely no place in Canada,’ said Farzana Hassan of the Muslim Canadian Congress.
‘In Canada we recognize the equality of men and women. We want to recognize gender equality as an absolute. The burqa marginalizes women.’
Many Muslim women in this country are being forced to wear the loose robe and veil by their husbands and family, setting them apart from other Canadian women who are living freely, she claimed.

यही कहूँगा कि हे खुदा, चलो आपने किसी को तो अक्ल बख्शी, इनको भी बख्शना !
और अंत में :
पक्के तौर पर तो नहीं कह सकता, मगर शायद इस लेख के बाद मेरे इस ब्लॉग पर कुछ "ख़ास मेहमान" भी आएँगे, तो उनको अपनी तारीफ़ में पहले से ही कुछ कहना चाहता हूँ !
क्या करू, मुझे अपनी तारीफ़ ठीक से करनी भी नहीं आती, जब करने लगता हूँ तो कुछ भी उटपटांग बोल जाता हूँ अब इस शेर को ही देख लीजिये:

हूँ तो बहुत कुछ, मगर जो हूँ वो मैं दिखता नहीं,
खूब लिखना भी जानता हूँ, मगर मैं लिखता नहीं !


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28 comments:

  1. देर आयद,
    दुरुस्त आयद।
    मगर पता नही कब इस बात से फिर जायें।

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  2. भय्या अच्‍छा किया, उचित समय पर लाये हो, मैंने इस युनिवर्सिटि को कुरआन का मजाक उडाने वाला साबित किया था, अब मेरी बात में और दम पड जायेगा, फिर मैं अपनी बिरादरी का महान बन जाउंगा, खुश कर दिया अब मैं खा पी के नेट की गोदी में रात को आउंगा, मैं अभी से लग जाता हूं, चलकर इ मामले को सही से संभालूंगा
    यह केवल इन्‍तजामिया में गडबड है, होती रहती हैं संभाल ली जाती हैं, इधर नहीं देख रहे हो सब कुछ under control है
    धन्‍यवाद

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  3. सही फ़ैसला है !

    क्या धर्म कपडों से संबद्ध है ?

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  4. बहुत गलत है। कोई सातवीं शताब्दी में जीना चाहता/चाहती है तो उसे इसका अधिकार मिलना चाहिये।

    कनाडा की क्यों सोचते हैं? ठण्डा देश है। यदि वहाँ कोई नख से सिर ढ़का रहे तो कोई बहुत बुरी बात नहीं। किन्तु भारत जैसे गरम देश में क्या हो रहा है?

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  5. बहुत सुंदर लिखा आप ने, हे खुदा, चलो आपने किसी को तो अक्ल बख्शी, इनको भी बख्शना !अजी जरुर बख्सेगा... लेकिन यह ही ना ले तो???

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  6. @अनुनाद जी. आपने एक तीर से बहुत सारे कबूतर मार डाले, बहुत बढिया :-)

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  7. राज भाटिया जी से सहमत

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  8. चलिए कुछ तो अक्ल आई !!

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  9. "इस लेख के बाद मेरे इस ब्लॉग पर कुछ "ख़ास मेहमान" भी आएँगे, तो उनको अपनी तारीफ़ में पहले से ही कुछ कहना चाहता हूँ !
    क्या करू, मुझे अपनी तारीफ़ ठीक से करनी भी नहीं आती, जब करने लगता हूँ तो कुछ भी उटपटांग बोल जाता हूँ अब इस शेर को ही देख लीजिये:

    हूँ तो बहुत कुछ, मगर जो हूँ वो मैं दिखता नहीं,
    खूब लिखना भी जानता हूँ, मगर मैं लिखता नहीं !"


    ये हुई ना बात!!!

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  10. मैं एक बार कि बात बता रहा हूँ........ उस वक़्त मैं M. Com में था..... किसी काम से गोरखपुर से कानपूर जा रहा था...... उस वक़्त इस लायक तो थे नहीं कि AC में चलें........ तो मैं साधारण टिकेट लेकर स्लीपर डिब्बे में चढ़ गया.;.... सोचा कि टी.टी.इ. को कुछ पैसे थमा दूंगा.... तो स्लीपर में बैठने कि जगह खोज रहा था..... दिन-दिन का सफ़र था..... तो एक बर्थ पे थोडी सी जगह दिखी ....मैं वहीँ किसी तरह बैठ गया..... उस बर्थ पे ५/६ लोग बैठे हुए.... ३ मर्द और दो औरत.... वो भी कोई मुस्लिम फॅमिली थी..... उन तीनों मर्दों कि उम्र ३० से लेकर ५० के बीच कि थी........
    बहुत प्रचंड गर्मी थी............ डिब्बा greenhouse बना हुआ था ...... और वो दो औरतों कि उम्र का पाता नहीं क्यूंकि दोनों ने बुर्का पहना हुआ था..... उनमें से एक औरत बहुत परेशां थी...... बार बार बुर्का कभी यहाँ खींचती कभी वहां........ कभी बुर्के का पर्दा उठा कर खिड़की कि ओर मुहँ कर के जोर जोर से सांस लेती.......... फिर पर्दा ढँक देती........ मैं यह सब देख रहा था..........

    तभी कोई स्टेशन आया...... और वो तीनों मर्द निचे उतर गए......... मैं थोडा सा खिसक गया ....... आराम से बैठने के लिए.......... मैंने देखा कि वो बुर्के वाली औरत ........... गर्मी से बहुत परेशां थी............ और बहुत बदबू मार रही थी पसीने वाली................मैं खैर..... आराम से पैर फैलाने को मिला था तो सोचा कि जब तक वे तीनों आते हैं ..... मैं पैर फैला लूं........... इसी पैर फैलाने के चक्कर में .......... मेरा पैर उस औरत के पैर से टकरा गया........... वो मेरे ऊपर चिल्लाने लगी..........

    मैं माफ़ी मांग कर थोडा खिसक लिया........... खैर.... वे तीनों वापस चाय लेकर आ गए........ लेकिन अबकी बार जब वो आये........ तो मैं अपनी जगह बैठा रहा .... और एक नर्द जहाँ मैं पहले बैठा था...... वहीँ बैठ गया......... उसने उस औरत को चाय को चाय दी ..... वो औरत एक ओर मुहँ कर के चाय पीने लगी...... और जैसे ही चाय पिया उसने ............. और पीते ही भकाभक उल्टियाँ करने लगी....
    मैंने देखा और शिष्टाचार वश कहा कि बुर्का उतार दें..... वो लोग नहीं माने....... खैर....वो औरत भी जिद करने लगी.... कि बुर्का उतार दे रहें हैं......
    तो उसने बुर्का उतार दिया.........

    अब मैं क्या देखता हूँ......... कि वो औरत जिसने बुर्का उतारा............ उसकी उम्र कोई 60 से लेकर 80 बरस के बीच रही होगी...... और वो आदमी जो उसकी मदद कर रहा था...... वो ४०-४५ का रहा होगा और उसको दादी बुला रहा था..... और वो मेरा पैर टकराने पे चिल्ल रही थी.... जबकि वो अस्सी साल कि थी और मैं कोई २०/२१ साल का.........

    मैं बड़ा परेशां और सोचने लगा कि इस गर्मी में एक अस्सी साल कि औरत को बुर्का पेहेन्ने कि क्या ज़रुरत है?

    कौन उसको LINE मारेगा? या कौन उसको छेड़ेगा? या कौन सी उसकी इज्ज़त पर आंच आ जायेगी...... और सबसे बड़ी बात उस काले बुर्काए में उसका क्या हाल हो रहा होगा? उलटी नहीं होगी तो क्या होगा? मैंने समझाने कि कोशिश कि...... तो लगा कि मामला बिगड़ जायेगा...... तो बेहतर है कि चुप रहो..... बस यही सब देख कर मैं सोचता रहा ...इसके अलावा और कर भी क्या सकता था?

    बुर्के का कांसेप्ट ....... यहाँ इंडिया में नहीं है........ वो साउदी अरब में ही ठीक है..... जहाँ का हर मर्द औरत को खाने कि निगाह से ही देखता है.... जहाँ बिना धर्म को समझे लोग शादियाँ करते हैं? और तो और आज भी वहां औरतों को इज्ज़त नहीं है..... वहां ....औरत का मतलब है..... use and throw........ यहाँ भारत में बुर्के का कोई चलन होना ही नहीं चाहिए..... क्यूंकि यहाँ पुरुष कितना ही खराब क्यूँ न हो...... औरत से सामाजिक रूप से डरता ही है..........बुर्के का कांसेप्ट.... साउदी में ही डेवेलोप हुआ...... जिसको यहाँ के मुसलामानों ने भी बिना सोचे समझे अपना लिया...........

    भारत में पर्दा सिस्टम मुग़ल आताताइयों से.......... हमारी औरतों को बचाने के लिए शुरू हुआ............हमारे यहाँ .........हमारे संस्कार ऐसे हैं.......... कि ......... बुर्के कि ज़रुरत नहीं है......... हम में से कितने लोग सरे आम औरतों को छेड़ते हैं? शायद न के बराबर.......... और जो करते हैं........ वो हम में से नहीं हैं........... वो मानसिक रूप से विकृत लोग हैं...... यही मुसलामानों को समझना चाहिए......... कि बुर्के से कुछ नहीं होना है.......... अगर बुर्का ही सॉल्यूशन होता......... तो साउदी अरब , पाकिस्तान, इंडोनेशिया इत्यादि.......... इतने बिगडे हुए......... और अनैतिक देश नहीं होते............

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  11. बुर्का कोई इस्लामिक बाध्यता नहीं है....... बुर्का का description कहीं नहीं मिलेगा..... और जो मुसलमाँ मुझे यह description लाकर दे देगा..... तो मैं वो जो बोलेगा .... मैं हार जाऊंगा..... हाँ! पर डाटा authentic होना चाहिए .... बुर्का से वाकई में औरत का status हम marginalize कर देते हैं....... यह सच है...........HINDUSTANI MUSALMAANON KO BHI JALDI AQAL AAYE..

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  12. कैरानवी भाई से पूर्णतया सहमत.

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  13. महफूज भाई, आपकी तारीफ़ के लिए मेरे पास सच में शब्द नहीं है ! वाकई में आपने एक सच्ची तालीम हासिल कर रखी है और देश को आप जैसे युवाओ की शक्त जरुरत है आज !

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  14. महफ़ूज़ भाई, आपने तो एक ही झटके में सभी को चित कर दिया… (जोर का झटका धीरे से)… आपको सलाम…

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  15. महफूज भाई से बिल्कुल सहमत हूँ।

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  16. महफूज जी के विचार जानकर अच्छा लगा कि ऎसे लोग भी है जो कि मजहब के दिखावे, आडम्बरों से कोसो दूर हैं........

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  17. महफूज़ भाई.. ने सब कुछ कह दिया है!अब बाकी क्या रहा?

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  18. महफूज़ भाई से पूरी तरह सहमत हूँ. हम हिन्दुस्तान मे रहते हैं.... तालिबान मे नही....


    सलीम मियाँ, महफूज़ भाई के लिए कुछ नही कहोगे ?... बगले झाँक रहे होगे तुम.... या हो सकता है आओगे कुछ समय मे अपनी एक और वाहियात पोस्ट लेकर... और मुबारक आज आपका एक और अनुयायी आ गया....

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  19. ये हुई न बात...!!!
    महफूज़ साहब, आपकी बातें हमेशा ही एक ताज़ी हवा का झोंका होते हैं...आप अपनी बात तथ्यों के साथ कहते हैं...बहुत ख़ुशी होती है जब ऐसे सलीकेदार युवाओं को देखते हैं....मन में एक आशा जागती है कि चलो भारत का भविष्य उज्जवल है.......
    और मुझे नहीं लगता है कि सलीम जी के पास अब कोई जवाब होगा...
    काश सलीम जी थोडी सी बुद्धि महफूज़ जी से ले पाते ......
    अब कृपा कर के महफूज़ साहब पर कोई आक्षेप मत लगाइयेगा .....Please...!!!
    सईद जी आपकी बातों से मैं भी शत-प्रतिशत सहमत हूँ......
    ये हिन्दुस्तान है तालेबान नहीं.....

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  20. महफूज भाई से बिल्कुल सहमत|

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  21. आपको और महफ़ूज़ भाई को प्रणाम।

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  22. Saleem bhai kabhi to sachchai aur imaandari se aur asal Islaam se sahmat ho liya kijiye, kab tak sirf Sri Kairanwi bhai se sahmat rahenge, Mahfooz bhai se sahmat kyon nahin batayenge plzzzz?

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  23. mujhe dar hai ki hindutva aur Islaam ko galat paribhashit karne wale kuchh nasamajh, jo sirf samne likhe ko samajhte hain unke beech chhipe goodh arth nahin samajh pate ve kisi doosre godhra ko paida na kar den.
    Khuda khair kare, Ishwar raksha kare aur aise logon ko sadbuddhi de warna apne nazdeek bula le.

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  24. aap ne daal diyaa isko bhi blog par daekh kar khushi hui

    kapdae aur dharm ki rajneete aur aurto ki durdasha pataa nahin kab band hogee

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  25. जनाब मैं आपकी तरह बुर्के पर रोटियां सेंकने गया था परन्‍तु उधर तो पता चला अल्‍लाह एक ही ही वह दो नहीं होगये, इस्लाम धर्म नहीं बदला, उसका अंतिम ग्रंथ सदैव के लिये वही है, अर्थात अजहर युनिवर्सिटि के केवल एक मास्‍टरजी ने कहा कि अपनी क्‍लास में जब लडकियां अकेली हों तो वह अपने चेहरे से नकाब हटा लिया करें,दूसरे को उतना भी मन्‍जूर नही, समझे गोदियाल सा‍हब मैं इस खबर से कोई लाभ ना उठा सका, अफसोस केवल आपने उठा लिया,

    अफवाह फैलाने का धन्‍यवाद,

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।