Saturday, October 3, 2009

आके तो देख, साबरमती के संत !




चौक-चौराहों पे लटका के तेरा बुत,
बनाते  उसे अपने तिजारत की ढाल !
आके तो देख साबरमती के संत,
तेरे ये भक्त, क्या-क्या कर रहे कमाल !!

पब्लिक को सरे-आम मूर्ख बनाते, 
थोक ,फुटकर दोनों ही में कमाते ,
बदन पर अपने ओढ़कर खादी,
इन्होने देश की तिजोरी खा दी ,

अपने लिए क्या-क्या नहीं जोड़ा,
मवेशियों का चारा भी नहीं छोडा,
खेल, टूजी ,कोलगेट सब  छा गए ,
तोपे, शहीदों के कफ़न भी खा गए,

रोडपति से चलकर करोड़पति की चाल !
गए कई क्वात्रोक्की होकर माला-माल,
आके तो देख साबरमती के संत,
तेरे ये भक्त, क्या-क्या कर रहे कमाल !!

कुछ इस तरह भी ;

लूट खा गए देश तिजोरी, 
मिलकर राजा रंक दे नाल,
साबरमती के संत देख, 
तेरे पूतों ने क्या किया कमाल !

मंदी में भी खूब लहराया, 
२जी,सीडब्ल्यूजी मायाजाल,
साबरमती के संत देख, 
तेरे पूतों ने क्या किया कमाल !


लोकतंत्र की आड़ में, 
राजनीति इन्होने अजब चलाई,
प्रजा को  दे दी दरिद्रता,
और खुद खा रहे है रस-मलाई !

लुच्चे-लफंगे, चोर-उचक्के, 
हो गए हैं सबके सब मालामाल,
साबरमती के संत देख, 
तेरे पूतों ने क्या किया कमाल !

शतरंज बिछाकर बैठा है , 
वर्षों से इक बाहुबली घराना,
मुश्किल सा लगता है, 
उस कुटिल फिरंगी को हराना !

सोची-समझी होती है, 
उसके चमचों की हर  चाल,
साबरमती के संत देख, 
तेरे पूतों ने क्या किया कमाल !

मन शठता से भरा  है,  
तन पर पहने रहते है खादी,
निहित स्वार्थ पूर्ति हेतु। 
लिख रहे हैं ये देश बर्बादी !

कुत्सित कृत्य देखकर इनके, 
मुंह फेरे इनसे  महाकाल,
साबरमती के संत देख, 
तेरे पूतों ने क्या किया कमाल !!

10 comments:

  1. भक्त यहाँ गजब का कमाल कर रहे है , धोती को फाड़कर रुमाल कर रहे है

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  2. दो अक्टूबर के दिन शास्त्री जी की भी जयंती होती है,कितने जानते है ??

    भारत माता के सच्चे 'लाल', लाल बहादुर शास्त्री जी को मेरा शत शत नमन !

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  3. मिश्रा जी एकदम सही कहा आपने, हम लोग उन्हें इसलिए भूल जाते है कि बेचारे एक सरीफ इन्सान थे और आजके युग में सरीफो को कौन पूछता है !, खैर मेरी भी उनको शर्धाजली !

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  4. बहुत ही लाजवाब रचना। शानदार व सशक्त लेखन। बहुत-बहुत बधाई

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  5. बहुत सुंदर कविता, कमाल कर दिया आप ने.धन्यवाद

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  6. बिलेटेड पर धमाके दार कविता बापू को समर्पित..
    बहुत सुंदर धन्यवाद!!!

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  7. सादगी के नाम पर पिछले साठ-बासठ सालो में,
    इन्होने यहाँ अपने लिए क्या-क्या नहीं है जोड़ा !
    तोपे हजम कर ली, शहीदों के कफ़न खा गए,
    और तो और पशुओ का चारा भी नहीं छोडा !!

    वाह...!
    क्या खुलकर लपेटा है।
    गजब का कमाल है।

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  8. godiyaal ji
    namaskaar ;

    aapki is kavita ke baare me main kya kahun .. aaj ki vyavastha ki khoob khilli udhayi hai ..

    ise kahin print me dijiyenga ..

    meri badhai sweekar kare..

    dhanywad

    vijay
    www.poemofvijay.blogspot.com

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  9. तोपे हजम कर ली, शहीदों के कफ़न खा गए,
    और तो और पशुओ का चारा भी नहीं छोडा ....

    sahi kaha .. baapoo ke naam par ... abhi kya kya hona baaki hai ... sach likha hai

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।