Monday, October 5, 2009

डूब मरो बेव्डो कहीं चुल्लू भर दारू मे !

पव्वे पर पंद्रह रुपये, अद्धे पर बीस  रुपये और पूरी बोतल पर तीस  रुपये अतिरिक्त वसूला जा रहा है, पिछले एक अर्से से उत्तम  प्रदेश के फुट्कर शराब बिक्रेताओ द्वारा इन बेव्डो से  मगर अब तक किसी भी माई के लाल की इतनी हिम्मत नही हुई कि जरा सा चूं भी कर सके इस हो रहे अन्याय के प्रति, इसे कहते है प्रशासन का खौप। बात सिर्फ़ दस-बीस अथवा तीस रुपये की नही, बात है इस देश के कायदे- कानूनों की , जो कहते है कि आप किसी भी ग्राहक से वस्तु पर प्रिन्टेड रेट; खुदरा अधिकतम मूल्य (MRP ) से अधिक नही वसूल सकते। वहाँ  के शराब विक्रेताओं से इस बात पर विरोध दर्ज करो तो उनका टका सा जबाब होता है “हम क्या करे, ऊपर से आदेश हैं !” !

८५ रूपये एम् आर पी छपा है, मगर बोतल  सौ  रूपये की बिक रही है !

ऐसा अनुमान है कि उत्तम परदेश मे प्रतिदिन तीन लाख शराब की बोतलों की खपत होती है, और पव्वे, अद्धे और पूरी बोतल के औसतन  के हिसाब से दस रुपये प्रति बोतल भी अतिरिक्त वसूली का सीधा मतलब हुआ कि प्रतिदिन तीस लाख रुपये और साल के करीब सवा अरब रुपये की वसूली ! और भगवान के सिवाय शायद ही और कोई बता पाए कि यह अन्धी कमाई आखिर जा कहां रही है ? बेव्डो को तो सरकार और दारू  एजेंट, कम्पनियां वैसे ही पागल समझती है, तभी तो सिर्फ़ इनके लिये परोसी जाने वाली खुराक १७५ मिलीलीटर की बोतल को पौवा (जबकि होना चाहिए था २५० मिली लीटर ) , ३५० मिली लीटर की बोतल को अद्धा(होना चाहिए था ५०० मिली लीटर) और ७५० मिली लीटर की बोतल को लीटर (लीटर मतलब १००० मिली ळीटर) बताकर बेचा जाता है और आज तक किसी बेव्डे ने यह नही पूछा कि उनके साथ यह भेदभाव क्यों ? और तो और, बेवजहो की बातों पर बेफालतू उछलने वाले इस देश के तमाम तथाकथित सामाजिक संघठनो और मानवाधिकार संस्थाओ  एवम हर जगह अपने स्टिंग आपरेशन  का कैमरा घुमाने को तत्पर रहने वाले हमारे खोजी पत्रकारों ने भी इन बेव्डों के दुख-दर्द को जरा सी भी अहमियत नही दी ।

जागो बेव्डो जागो !!! वरना डूब मरो, कहीं चुल्लू भर दारू मे !


दुनियादारी मे  दिल को

जब कुछ भी न भाने लगे,
जिन्दगी मौत को गले

लगाने को उकसाने लगे,
अन्दर से जज्बाती

तूफ़ानो का शोर बडा हो,
दिल  टूटकर सारा का सारा 

इधर-उधर बिखरा पडा हो,
ख्वाईशें सिमटकर किसी

संदूकची में  पडी  हों ,
मुसीबतें दर पर हरवक्त 

मुह-बाये  खडी  हों ,
लेनदार उगाही को रोज

घर पर आने लगे,
घर-मालिक घर खाली

कराने को धमकाने लगे,
तब तुम  झूमते हुए 

मेरे पास आ जाना बेव्डो,
मै धर्मार्थ मयखाना खोलने की

सोच रहा हू, तुम्हारे लिये !! :) :)

20 comments:

  1. गोदियाल जी,

    अधिक दाम लेकर मुनाफाखोरी करना तो हमारे देश में आम बात हो गई है। अब आपको क्या बताऊँ, कभी हमारे यहाँ आप रायपुर आयेंगे तो आपको एक रुपये से कम वाली रेजगारी अर्थात् अठन्नी, चवन्नी आदि के कहीं भी दर्शन नहीं होंगे, यहाँ तो ये चलते ही नहीं हैं। यदि आपको माचिस भी लेनी है तो एक नहीं ले सकते, आपको दो ही लेने होंगे क्योंकि रेजगारी का चलन नहीं है। सिगरेट लेना हो तो दो लीजिए या फिर रेजगारी के बदले में जबरदस्ती एक टॉफी लीजिए। जबरन माल बेचने का जबरदस्त तरीका है रेजगारी का चलन बन्द कर दो। रेजगारी का चलन रायपुर में आज नहीं बल्कि आठ दस साल पहले से ही बन्द हो चुका है। छत्तीसगढ़ शासन का कभी इस ओर ध्यान ही नहीं जाता। मीडिया को भी ये नजर नहीं आती।

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  2. आपकी बार सच है गोदियाल साहब लेकिन क्या करेगे ऐसे हीबहुत जगह है जहा पैसे ज्यादे लिए जाते है हमें इनका कडा विरोध करना चाहिए .

    वैसे वेब्डो का क्या मतलब होता है ?

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  3. मिश्रा जी, बेवडे का मतलब पियक्कड़ ! ;)

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  4. मुनाफाखोरी, सरकारी टैक्स ज्यादा दाम
    फिर भी नहीं छूटता क्यूँ लबों से ये जाम.

    यह एक ऐसी चीज़ है जिसे बुरा सब कहते हैं पर इसका निर्माण न तो बंद करने की हिमाकत दिखा पाते हैं, न बिक्री पूरी तरह बंद कर पाते है, जब तक लूटने वाला तैयार खडा है, कोई चिल्ल-पों नहीं मचनी चाहिए.......
    नहीं समझ में आता तो लाइन लगा कर लेने क्यों आता है, पीकर गिरेगा हर तरह से फिर औकात क्या दिखाने का.....

    शायद हमें यही सब सोंच कर इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहना चाहिए.....

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  5. यहाँ अपने पाठको से एक बात स्पष्ट करना चाहूँगा कि मेरा मकसद सिर्फ दारू की बात करने का नहीं है, सब जानते है कि यह भी समाज पर एक अभिशाप है ! मगर जब यह अभिशाप समाज में मौजूद है तो उसे आधार बनाकर नाजायज वसूली क्यों,? वह मुख्य मुद्दा है ! और यह किसके इशारों पर हो रहा है ? यह जानना जनता के हित में है, लोगो के लिए भले ही यह ५-१० रूपये तक की बात है मगर यह इतना पैसा जा कहाँ रहा है किन्ही समाज विरोधी गतिविधियों के लिए तो इस्तेमाल नहीं हो रहा? आखिर जो किया जा रहा है वो है तो गैर कानूनी चाहे वह किसी एक के ही खाते में क्यों न जा रहा हो !

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  6. "तब तुम सीधे चलकर
    मेरे पास आ जाना बेव्डो,
    मै धर्मार्थ मयखाना खोलने की सोच रहा हू,
    तुम्हारे लिये !!"

    वाह....गोदियाल जी।
    क्या माठी मार मारी है।
    जोरदार आवाज में सुन्दर व्यंग्य कसा है।
    बधाई हो।

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  7. “हम क्या करे, ऊपर से आदेश हैं !”
    यही तो विडम्बना है।
    इन्हे कहते हैं- "घूसखोरी के प्रतिमान"

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  8. सच लिखा आपने!!!शराबी है तो क्या हुआ?उपभोक्ता तो है ही ,तो क्या उसे लूट लिया जाए?लेकिन पीने वाले कहाँ बोलते है ,साहब?

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  9. सरल सा उपाय है....इस गंदी चीज़ को हाथ न लगाएं:)

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  10. टीआरपी और एमआरपी का खेल है, कुछ चीजे एमआरपी को भी पार कर जाती है। दवा और दारू दोनो इसके उदाहरण है

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  11. गोदियाल जी, अधिकतर बेवडे MRP नहीं "मार के पी" में ज्यादा विश्वाश रखते हैं. जब धन भी इधर उधर से मारा हुआ हो तो फिर MRP की फिकर किसे है.

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  12. एक विचारणीय टिपण्णी, निशाचर जी ! :)

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  13. माया की बेकार माया है कब तक लूटेगी?? क्या साथ ले कर जायेगी,शर्म नाम की भी कोई चीज है,शायद उसे नही मालुम,लेकिन कब तक...
    ओर इस देश का कानून कहां सो रहा है, जो किसी भुखे को एक रोटी के लिये मारता है इतना कि उस का दम निकल जाये, ओर इन्हे.....

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  14. ये तो उपभोक्ता कानून का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन है | वैसे भारत मैं आम उपभोक्ता के लिए बने किसी कानून का बड़ों की नजर मैं क्या मोल ?

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  15. मन मे हर वक्त इक अजीब सी उलझन बडी हो,
    लेनदार उगाही को रोज दरवाजे पे आने लगे,
    घर-मालिक घर खाली कराने को धमकाने लगे,
    तब तुम सीधे चलकर मेरे पास आ जाना बेव्डो,
    मै धर्मार्थ मयखाना खोलने की सोच रहा हू, तुम्हारे लिये !!

    yeh bahut achcha laga.......

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  16. गोदियाल जी
    बेव्डो के माध्यम से आपने जो बात उठाई है वह कमोबेश इस देश के लिये बिडम्बना बनती जा रही है.
    नमकीन (बे)खबरो को खबर बनाने वाले इन मुद्दो को नज़रअन्दाज करते जा रहे है, टी आर पी जो नही है इन खबरो मे.
    सुन्दर आलेख

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  17. अब नारा लगना ही चाहिये " दुनिया के बेवड़ो एक हो "

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  18. श्रीमती अमर भारती की टिप्पणी मेरी समझिएगा!

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  19. भाई वो तो पूरी बोतल में ही मर रहे हैं.... :)

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।