इस पावन धरती ने कितने ,
भांति-भांति के जीव जने,
कुछ गुल्फामों ने चमन उजाडे ,
कुछ गुलशन की नींव बने।
राम,कृष्ण और बुद्ध की भूमि,
बाह्य-धावों,जुल्मों ने चूमी ,
कहीं पोषे जयचंद बहुतेरे,
कहीं वीर पृथ्वी जैसे वक्ष तने।
कहीं बहती है प्यार की गंगा ,
कहीं नफरत करती है नंगा ,
कहीं खाप-पंच के पहरे होते ,
और कहीं रांझा -हीर घने।
यह ऐसा अद्धभुत देश हमारा ,
हर बेबस को मिले सहारा ,
कहीं रंगों,कही खून की होली,
कहीं दीवाली और ईद मने।
वाह.. वाह.... अच्छी कविता के लिये साधुवाद स्वीकारें...
ReplyDeleteकविता के माध्यम से अनमोल मोती प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी शब्द रचना ।
ReplyDeleteवाह क्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteएक तरफ दिन है तो दुसरी ओर रात है.
ReplyDeleteबिल्कुल सही है कई मायनो मे हमारा देश ऐसा ही है ......खुबसूरत रचना!
ReplyDeletebilkul sahi .....aisa desh hai mera........
ReplyDeleteआजाद हुई यह धरती जब गुलामी से तो,
ReplyDeleteनेता मिला इसे ऐसा कमीना !
बहुत सुन्दर
गोदियाल जी,
ReplyDeleteयह एक सार्थक कविता है...या फिर यों कहें एक पूर्ण कविता है ..
अच्छाइयों के साथ बुराइयों को भी आपने अपनाया है..
बहुत सही...
बधाई...
पीना का यह सुन्दर प्रयोग पसन्द आया ।
ReplyDeleteपहले नेता की ताकत 'दे' थी
ReplyDeleteअब नेता की ताकत 'ले' है।
ने ता के पास 'ता' है बस 'ने' गायब हो गया है।
गोदियाल साहब नमस्कार, देरी से आया माफी .....सुन्दर लगी आपकी ये कविता
ReplyDeleteविविधता से भरे देश की सुंदर व्याख्या की है .. तभी तो हमारा देश महान है .. बढिया रचना !!
ReplyDeleteजबरदस्त ....
ReplyDeleteदेखिये ...एक तरह बाबा रामदेव जैसे समाज सुधारक तो दूसरी तरफ डॉ. जाकिर नायक जैसे समाज कंटक भी यहीं हुए हैं ....
जिन्हें नाज़ है हिंद पर...
ReplyDeleteकहां हैं, कहां हैं, कहां हैं...
जय हिंद...
आजाद हुई यह धरती जब गुलामी से तो,
ReplyDeleteनेता मिला इसे ऐसा कमीना !
जो लूट रहा दोनों हाथो से, जनता को
दिखाता गुड है और खिलाता पीना !
wah! kya baat hai, sundar rachna..
EK SHASHAKT AUR ACHHE KAVITA HAI .... DESH KA CHARITR KITNA VIVIDH HAI .... AAPNE IS RACHNA MEIN BAAKHOOBI UTAARA HAI ...
ReplyDeleteअच्छा और बुरा साथ-साथ ही रहते हैं, बस अच्छे को पहचानकर बढाने की आवश्यकता है। बधाई।
ReplyDeleteजहाँ थोडी-बहुत झुंझलाहट, उग्रता दिखी, वहीँ ओजस्विता के भी दर्शन मिले,
ReplyDeleteउस नक्सलवाद की चिंगारी भी तो नज़र आ रही है जो सोद्देश्य होता है, चाहे इसे क्रांति का नाम दें, आन्दोलन का नाम दें, विद्रोह का नाम दे, अवसाद का नाम दें..............
अति सुन्दर प्रस्तुति, समसामयिक........
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
yah kese ho gayaa? itana achha blog mujhse kese chhoot gayaa. ynha to rachnaaye apne poore rang me khili hui he,jisase saraabor hone se me ab tak vanchit tha/ kher..der aayad, durust aayad../
ReplyDeleteaapki rachnaye desh, dharm, peeda aour kuchh kasak me lipati hui insaan ko disha de rahi he/ aankhe khol rahi he/ wah, gazab ../ prabhaavit hua../ abhi to aapke poore blog ko padhhnaa he.../ pahle padhhunga...
हमारे देश की इस पावन धरती ने भी,
ReplyDeleteभांति-भांति के जीव जने !
कुछ ने अपने हाथो ही चमन उजाडा तो,
कुछ गुलिस्तां की नींव बने !
jo neeंव डाआळ घाय़ै थे आज उसी नींव को दीमक की तरह कुछ लोग खा रहे हैं। अच्छी रचना है
कभी बनी राम-कृष्ण, बुद्ध व गांधी की भूमि,
ReplyDeleteतो कभी क्रूर मुगलों के तीर सहे !
कहीं पाला कायर-जयचंदों को तो,
कहीं पृथ्वी-भगत सिंह जैसे वीर हुए !
सुंदर रचना..धन्यवाद!!!
पुराने वक्त को याद करने के अलावा बचा ही क्या है ? फिर भी उम्मीद की किरण के लिए सदा खिड़की खोलकर रखनी चाहिए .राजनीति में भले लोगों को आना चाहिए .कविता सटीक है .
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