Monday, October 12, 2009

ये सरकारे दोस्त है या फिर दुश्मन ?

आज के अखबारों में प्रमुखता से छपी यह खबर आपने भी पढी होगी कि केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री कपिल सिब्बल ने कहा है कि भविष्य की और टकटकी लगाए युवाओं को यदि नौकरी चाहिए तो वे शिक्षक बने, क्योंकि इस वक्त देश में करीब बारह लाख से अधिक शिक्षको के पद रिक्त है! अभी कुछ दिन पहले आपने यह भी खबर अखबारों में पढी होगी कि देश भर के पुलिस महकमे में इस वक्त लाखो पद खाली पड़े है ! अब सवाल यह है कि जब एक तरफ देश का युवा वर्ग बुरी तरह बेरोजगारी की मार से जूझ रहा है, वहाँ दूसरी तरफ ये सरकारे यह कहकर क्या जतलाना चाहती है कि इस वक्त देश में इतने रोजगार के साधन उपलब्ध है? ये इतने सारे पद रातो-रात तो खाली नहीं हुए, सालो से यह रिक्तता चली आ रही है, और मंदी भी तो पिछले एक-डेड साल पहले ही आयी थी! और क्या मंदी में इन सरकारों के धर्ता-कर्ता अपने शानो-शौकत के खर्चो में कमी लाये ? यदि देश के पास प्रयाप्त धन उपलब्ध नहीं था, इन पदों के अभ्यर्थियों को वेतन देने के लिए तो क्या इन्होने अरबो रूपये अपनी मूर्तियों और अन्य तरह के बेफजूल बातो पर नहीं खर्च किया ? फिर क्यों नहीं, इन सरकारों ने इस और ध्यान दिया कि इस देश के हर एक शिक्षित युवा को अपने पालन पोषण के लिए एक नौकरी की जरुरत है? अगर इतने पद शिक्षको के खाली है तो देश के सरकारी स्कूलों में इन्होने आजतक हमारे बच्चो को पढाया क्या, सिवाय लोगो की आँखों में धूल झोकने के? और अब अगर ये इन पदों पर हमारी वर्तमान युवा पीढी को नियुक्त होने का अवसर देते भी है तो इतने सालो तक पदों को खाली रखकर क्या इन्होने उस शिक्षित युवा पीढी के साथ अन्याय नहीं किया, जिनकी अब इन पदों के लिए आवेदन भरने की उम्र गुजर चुकी ? मै पूछता हूँ कि उस पढ़े-लिखे युवा का क्या कसूर था, जिसे आपने उसका हुनर दिखाने का मौका ही नहीं दिया ? क्या ये उन हजारो माता-पिताओं की संतान लौटा सकते है जिनके मासूम युवाओं ने बेरोजगारी से तंग आकर इन सालो में अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर दी ?

अभी कुछ दिनों पहले झारखंड में जब एक पुलिस इंसपेक्टर को नक्सलियों ने सर कलम कर उसकी ह्त्या की तो टीवी चैनलों पर आपने भी यह खबर देखी होगी, जिसमे दिवंगत इस्पेक्टर का मासूम बेटा यह कहते बताया गया था कि वह पिता की अर्थी पर रोते हुए नक्सलियों को सन्देश दे रहा था कि बड़ा होकर मैं तुमसे अपने पिता की मौत का बदला लूंगा ! अब उस मासूम को कौन समझाए कि ये नक्सली तो एक नंबर के कायर है, यदि ये कायर नहीं होते तो जंगलो में छुपकर इस तरह निहत्थो को अपना शिकार बनाते? अतः इन कायरो को मारकर तुम भी सिर्फ पेड़ की शाखाओं को ही काटोगे, पेड़ की जड़ नहीं ! अगर तुमने बदला लेने की ठानी ही है तो देश की राजधानी और राज्यों की राजधानियों में बैठे और पसरे पड़े इनकी जड़ो को काटने की कोशिश करना !

8 comments:

  1. विचारणीय मुद्दा है. शिक्षा तो आज माखौल बनी हुई है. आँकडे और सरकारी दावे तो कागज के फूल के सिवा और कुछ नही है. हकीकत तो कुछ और ही है.
    बेहतरीन ढंग से आपने अपनी चिंता रखी है.

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  2. यह नेता अब जनता को बेवकुफ़ नही बना सकते, क्योकि जनता अब उलटा इन से सवाल पुछती है, लेकिन कोई नेता हो तब ना सब तो गुंडे ओर बदमाश है राज नीति मै.... ओर इन का बदला भी इन्हे इन्ही तरीको से देना होगा

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  3. yeh baat to sahi hai ki shikshakon ki shortage hai....... yeh main apne University mein dekhta hoon...... aur isiliye kai colleges mein bhi main Visiting or Guest faculty ke roop mein padhaane jata hooon...... sarkaari nitiyon ke tahat....... shikshak bhi nahin mil lpa rahe hain........

    अब सवाल यह है कि जब एक तरफ देश का युवा वर्ग बुरी तरह बेरोजगारी की मार से जूझ रहा है, वहाँ दूसरी तरफ ये सरकारे यह कहकर क्या जतलाना चाहती है कि इस वक्त देश में इतने रोजगार के साधन उपलब्ध है?

    asli yuva varg jo hai unki umr 36 se 45 saal hai......... aur sarkaari policy ki wajah se ki inki umr sarkaari naukri aur pvt bhi....ke liye expire kar chuki hai..... sarkaar ko is umr walon ki or dhyaaan dena chahiye....

    khud UP sarkar mein 2 lakh naukriyan hain,....... lekin har post ka rate fix hai......... ab kaun 25 lakh rupye de.......... yeh sarkaar ko sochna hai........... UPPSC mein kai vacancies hain.............. lekin sarkaari policy ki wajah se bhar nahin paayin hain..... aur hamare MAYAWATI raj mein......... savarnon ko naukri milna bahut mushkil hai....... jab tak tak ke sarkaar zaat-paat, dharm se upar nahi uthegi......... tab tak ke yuvaon ka utthaan nahin hone wala........ moortiyan kya de dengi....... ?

    mera yeh maan na hai ki iske liye yuvaon ko ek hona padega......... aur ek kraantikari aandolan karna padega jaisa ki 1986 mein CHINA mein hua tha..........

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    Aur ek baat aur kahunga ki aajkal ka yuva degree ikaththi karne mein vishvaas rakhta hai......... knowledge gain karne mein nahi....... aur phir baad mein kahta hai ki hum to itne padhe likhe hain......... lekin naukri nahin hai....... jab knowledge hi nahin hogi to exam kya pass honge.... aur interview bhi kya? sarkaari niti ki wajah se yahan har koi degree le leta hai..... aur phir baad mein complexed ho jata hai........

    education policy mein bhi badlaav laana hoga...... nahi to aap dekhiye na ki INDIA ki prime job CIVIL SERVICES hai.....uske liye kyun sirf bachelors degree hi maangte hain........? qki bachelors degree kaafi hotihai.....

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  4. Aadarniya godiyal ji........... maine ek lekh OK par likha hai......... plz dekhiyega zarooor........

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  5. जिसमे दिवंगत इस्पेक्टर का मासूम बेटा यह कहते बताया गया था कि वह पिता की अर्थी पर रोते हुए नक्सलियों को सन्देश दे रहा था कि बड़ा होकर मैं तुमसे अपने पिता की मौत का बदला लूंगा ! अब उस मासूम को कौन समझाए कि ये नक्सली तो एक नंबर के कायर है, यदि ये कायर नहीं होते तो जंगलो में छुपकर इस तरह निहत्थो को अपना शिकार बनाते?

    बिल्कुल सही पोस्ट लगाई है आपने।

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  6. इसमे छुपा हुआ सन्देश यह भी था कि आपके बेटे तो शिक्शक बने पुलिसवाले बने(और मारे जायें) लेकिन हमारे बेटे उद्योगपति बने , नेता बने , फिल्म्स्टार बने । एक तबका और है जो अपने बच्चो को डॉक्टर,इंजीनीयर , आइटी प्रोफेशनल्स बनाना चाहता है , इस मध्यवर्गीय तबके के लिये कुछ नही है ।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।