Friday, October 30, 2009

तेल का खेल !

एक झटके में करीब पांच सौ करोड़ की भैंस गई पानी में, जिनको जीवन की हानि हुई वह अलग ! जब हादसा हो जाता है अधिकारीगण तब पूछते है कि अब क्या करना है ? मंत्री जी झट से जांच कमेटी बिठा देते है, अपने कंधे का भार उतारने के लिए ! और बस, हो गई इनके कर्तव्य की इत्श्री ! जांच करने वाले भी दो-चार करोड़ का बिल बिठा देंगे, सो अलग !

२०२० तक एक विकसित राष्ट्र बनने को छटपटा रहे इस देश के नेता और अफसरगण इतनी भी सम्बेदंशीलता नहीं रखते कि यह सोच पाए कि आपातकाल के लिए हमारे पास क्या प्रावधान है ? आज दुनिया तरक्की कर कहाँ से कहाँ पहुँच गई, विकसित देशों में रोबोट सैनिक युद्घ लड़ने को तैयार हो रहे है, और हमारे इस देश के ये कर्णधार इतनी सामान्य सी व्यवस्था नहीं कर पाते कि जहां पर इस तरह के भण्डारण की व्यवस्था की गई है वहाँ पर पहले तो ऐसी घटना ही न हो, अगर पूरी सजगता बरती जाए, लेकिन, यहाँ तो सब चलता है, हर कोई ड्यूटी के वक्त पर भी सो रहा होता है, या फिर पैसा कमाने का वैकल्पिक जुगाड़ तलाशने में लगा रहता है!

बहुत सामान्य से बात है कि जहां पर इस तरह के संवेदनशील भण्डारण की व्यवस्था है उससे कुछ दूर हटकर जमीन के अन्दर उतनी ही क्षमता के और टैंक बनाके रखे जाए, जो हर दम खाली रहे, और ज्यों ही ऐसी कोई आपातकालीन घटना मुख्य भंडारण की जगह पर होती है, स्वचालित स्विच उन पाइप लाईनों के सील खोल दे जो खाली टैंको की और जाते है, ताकि दुर्घटना वाली जगह से तेल को यथा शीघ्र दुसरे भण्डारण में पहुंचा दिया जाए और कम से कम नुकशान हो ! लेकिन उसके लिए तो कुछ करोड़ रूपये खर्च करने के लिए इनके पास धन उपलब्ध नहीं रहता, हाँ ऐसी घटना हो जाए तो ५०० करोड़ तो क्या, ये हजारो करोड़ का नुकशान सहने के लिए तैयार है !


और अंत में : आदरणीय अवधिया साहब की शैली से प्रेरित हो दो फुट नोट आज मैं भी प्रस्तुत कर रहा हूँ ;
१. शायद आपने भी सूना हो,चींटियों का सम्मेलन चल रहा था, आपसी परिचय के बाद तीन चींटियों, लाल, काली और सफ़ेद में खुसुर-फुसुर शुरू हुई ! लाल चींटी को पुछा गया की भाई तुम इतनी लाल क्यों हो ? वह बोली, मैं लोगो का खून चूसती हूँ इसलिए लाल हूँ ! काली को पुछा गया कि तू काली क्यों है ? वह बोली, भाई मै ठहरी काम-काजी, सो धूप में मेहनत करती हूँ, इसलिए काली हूँ ! अब सफ़ेद की बारी आई, उससे पूछा गया कि तू सफ़ेद कैसे है ? तो वह बोली, मैं हराम का खाती हूँ, इसलिए सफ़ेद हूँ !
२. सुबह सबेरे दफ्तर पहुंचा तो चपरासी परेशान सा दिखा, कभी टेबल पर कपडा मरता, कभी कुर्सी पर, कभी फाइले साफ़ करता तो कभी किताब ! मैंने पानी मंगाया तो जल्दी-जल्दी गिलास रखकर जाने लगा, मैंने उसे रोककर उसकी परेशानी का कारण पूछा तो वह बोला, साब मिस कॉल आ रही है ! मैंने कहा, तो इसमें परेशान होने की क्या बात है ? अगर बार-बार आ रही है तो थोड़ी देर के लिए मोबाईल स्विच ऑफ कर दे ! वह बोला, नहीं साहब, मिस कॉल आ रही है, बड़े साहब( ए.के. कौल) की बेटी !

10 comments:

  1. भैस पानी मे जाती रही है और तब चेतेंगे जब कुछ न बचेगा.
    जाँच कमीशन तो बिठा ही दिया गया होगा.

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  2. यही बात आज मै किसी ओर लेख की टिपण्णी मै कहने वाला था, लेकिन पुरी टिपण्णी लिख कर फ़िर से हटा दी आप की बात से सहमत हुं, लेकिन हमारे जहां मेने देखा है कि जब तक चलता है चलाओ की नीति चलती है, सब जगह....
    ओर वो तीन चींटियां बहुत मजे दार रही .
    धन्यवद

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  3. वाह भाई साहेब

    गज़ब की बात कह दी अपने.......

    सार्थक भी और रोचक भी

    ----बधाई !

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  4. ab is jaanch kameti se hoga kya ...... jo hona tha wo to ho chuka.....


    abhi abhi mere mobile pe bhi miss kaul sorry miss call ayi hai...hehehhee....

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. भारतीयों की सुरक्षा के प्रति लापरवाही , 'चलता है' रवैया......... भोपाल गैस काण्ड भी कुछ ऐसे ही हुआ था. और हम तीस चालीस परमाणु भट्टियाँ लगाने की बात कर रहे है कहीं वहां भी............. बस एक छोटी सी लापरवाही तबाही लाने के लिए काफी है. हम भारतीय रातों रात तो बदल नहीं जायेंगे

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  7. इन का क्या जाता है भुगतना तो जनता को पड़ता है।...इस नुकसान का खामियाजा जनता भुगतेगी..आग कैसे लगी भगवान जानें।भैसं एक बार थ्द़्ए ही कई बार कई तरह से पानी मे जा चुकी है और जाती रहेगी.....

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  8. हम आम जनों को जब आपदा से निपटने का उपाय सूझ जाता है तो ... ये बड़े बड़े विशेषग्य क्या करते हैं ?

    बात है की भारत की आजादी और उसके बाद हमारे नीव मैं ही इतना कचरा भरा गया है की .... अब सारी अच्छाइयां जाती रही है ...

    मिस कॉल ... मजेदार रही ...

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  9. "...मत बनाना मेरा बुत, मेरी मौत के बाद...."

    plz isey dekhiyega

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  10. प्यास लगने पर कुआँ खोदने और फिर भैंस समेत उसमें कूद पडने की ये आदत हम हिन्दूस्तानियों को एक दिन ले ही डूबेगी......
    हम नहीं सुधरेंगें !!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।