Thursday, August 27, 2020

यह मोड...







कभी लगा ही नहीं,

फासला-ए-मोहब्बत,

शब्दों की मोहताज रही हो,

प्रेम सदा ही प्रबल रहा, 

बात वो कल की हो, 

या फिर आज रही हो।

तुम्हीं बताओ, बीच हमारे

दूरियों के दरमियाँ,

कुछ गलत एहसास तुमको

होने दिया हो हमने,

बावजूद इसके कि कभी 

तबीयत भी नासाज रही हो।।

6 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२९-०८-२०२०) को 'कैक्टस जैसी होती हैं औरतें' (चर्चा अंक-३८०८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
  2. वाह !!बहुत खूब ,सादर नमन आपको

    ReplyDelete

वक्त की परछाइयां !

उस हवेली में भी कभी, वाशिंदों की दमक हुआ करती थी, हर शय मुसाफ़िर वहां,हर चीज की चमक हुआ करती थी, अतिथि,आगंतुक,अभ्यागत, हर जमवाडे का क्या कहन...