Sunday, August 16, 2020

सरकारों की नासमझी और प्रशासन की अकर्मण्यता का खामियाजा भुगतने को मजबूर पहाड़ी।

 01 अप्रैल 1973 को बंगाल टाइगर्स को बचाने की मुहिम के तहत तत्कालीन इंदिरा सरकार ने टाइगर प्रोजेक्ट शुरू किया था। मकसद यही था कि तेजी से लुप्त होती जा रही बंगाल टाइगर की आबादी को संरक्षित किया जाये, किंतु भ्रष्टाचार से ग्रसित सिस्टम के तहत कोई खास सफलता हासिल न हुई।

परिणाम स्वरूप, २००६ मे, जब श्रीमती सोनिया गांधी की सरकार सत्ता मे थी , टाइगर्स की की गई गिनती मे टाइगर्स की आवादी मात्र १४११ रह गई। 

फिर शुरू हुआ सरकार, नौकरशाहों और तथाकथित पर्यावणविदों द्वारा अपनी अक्षम्यताऔं पर पर्दा डालने का सिलसिला। विभिन्न स्थानों से बाघ, तेंदुए इत्यादि मांसाहारी प्राणी एक वन से दूसरे वनों को स्थानांतरित किये गये और ऐसे ही बहुत से हिंसक प्राणी उत्तराखंड के जंगलों मे छोड दिए गये।

मगर, बुद्धि से पैदल ये ज्ञानी लोग यह भूल गये कि जिन मांसाहारी प्राणियों को वे उत्तराखंड के जंगलों मे छोड रहे हैं,उनके पोषण की इन्होंने क्या व्यवस्था की है। होना ये चाहिए था जिस वक्त एक निश्चित संख्या मे हिंसक जन्तुओं को उत्तराखंड के जंगलों मे छोडा गया था, उसके छह गुना तादाद मे अहिंसक जीवों जैसे पहाड़ी हिरन और अन्य पहाड़ी जीवों को भी इन वनों मे छोडा जाता ताकि ये हिसंक प्राणी अपने उपभोग का म़ांंस इन जीवों से प्राप्त कर सकें मगर बडा सवाल ये कि अपना घर भरने से फुर्सत किस सर

कारी महकमे को थी?

नतीजन, वनों मे जो भी अहिंसक प्राणी सीमित संख्या मे थे, वो सब हिंंसक प्राणियों का निवाला बन चुके और अब सारे हिंसक प्राणी जैसे, बाघ तेन्दुए गांवो की ओर रुख करने को मजबूर हो गये। यही कारण है कि जिस बाघ ने ११ अगस्त को श्रीनगर के समीप मलेथा गांव मे तीन बहनों मे से एक को अपना निवाला बनाया था, वही, सुप्त प्रसाशन का लाभ उठाते हुए.१५ अगस्त को मलेथा गाँव के ही एक स्कूल मे झंडारोहण को भी पहुंच गया और ग्राम प्रधान सहित कई को घायल कर गया।

-पीसी गोदियाल


6 comments:

  1. बुद्धि से पैदल ये ज्ञानी लोग
    हर शाख पै :)
    हमारे पहाड में आज के दिन दर्जन भर तेंदुए सक्रिय हैं। शहर की बाजार में से कुत्ते ले जा रहे हैं ।

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  2. राजनीति की भेंट चढ़ गई है इंसानियत आज तो....

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-08-2020) को    "हिन्दी में भावहीन अंग्रेजी शब्द"  (चर्चा अंक-3798)     पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  4. हृदय विदारक तथ्य हैं, सत्य, पर आँख खुलने तक कितना कुछ स्वाह होगा।

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  5. जी सही कहा आपने.... काम अफसरों के होते हैं जो बिना सोचे निर्णय ले लेते हैं लेकिन खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ता है....

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।