Tuesday, August 4, 2020

मैं क्या बोलूं ?

धर्म-ईमान,
मालूम है, 
यहां सबकुछ,
टके-सेर बिकता है,
और जो खरीददार,
वो वैंसा है नहीं, 
जैंसा दिखता है।

2 comments:

मौन-सून!

ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई,  गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...