साफगोई की भी तहज़ीब होती है,
डूबने वालों की भी यह सदा आई,
आखिरी उम्मीद थी मेरी तुम मगर,
बुलाने पर भी मेरे शहर नहीं आई।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
साफगोई की भी तहज़ीब होती है,
डूबने वालों की भी यह सदा आई,
आखिरी उम्मीद थी मेरी तुम मगर,
बुलाने पर भी मेरे शहर नहीं आई।
सुन, प्यार क्या है,
तेरी समझ में न आए तो,
अपने ही प्यारेलाल को काट खा,
किंतु, ऐ धोबी के कुत्ते!
औकात में रहना, ऐसा न हो,
न तू घर का रहे, न घाट का।
इस मुकाम पे लाकर मुझे, तू बता ऐ जिन्दगी!
दरमियां तेरे-मेरे, अचानक ऐंसी क्या ठन गई,
जिन्हें समझा था अपनी अच्छाइयां अब तक,
वो सबकी सब पलभर मे बुराइयां क्यों बन गई।
दगा किस्मत ने दिया, दोष तेरा नहीं, जानता हू,
जीने का तेरा तर्क़ मुझसे भी बेहतर है, मानता हूं,
मगर, इसे कुदरत का आशिर्वाद समझूं कि बद्दुआ
मुखबिर मेरे खिलाफ़, मेरी ही परछाईं जन गई।
हिन्दुस्तान हमारा विकास की राह पर है,
बस, अब आप अपनी गुजर-बसर देखना,
मैंने भी आप सबके लिए दुआएं मांगी हैं,
अब, तुम मेरी दुआओं का असर देखना।
थोडी सी बेरुखी से हमसे जो
उन्होंने पूछा था कि वफा क्या है,
हंसकर हमने भी कह दिया कि
मुक्तसर सी जिंदगी मे रखा क्या है!!
सुना न पाऊंगा मैं, कोई कहानी रस भरी,
जुबां पे दास्तां तो है मगर, वो भी दर्द भरी,
सर्द हवाएं, वयां करने को बचा ही क्या है?
यह जाड़े का मौसम है , दिसम्बर-जनवरी।
सोचा था कर दूंगा आज, इश्क तुम्हारे नाम,
बर्फ से ढकी हुई पहाड़ी ठिठुरन भरी शाम,
दिल कहता था, छलकागें इश्कही-विश्कही,
मगर, "बूढ़े साधू" ने बिगाड़ दिया सारा काम।
जिंदगी पल-पल हमसे ओझल होती गई,
साथ बिताए पलों ने हमें इसतरह रुलाया,
व्यथा भरी थी हर इक हमारी जो हकीकत ,
इस बेदर्द जगत ने उसे इत्तेफ़ाक बताया।
कभी दिल किसी और का न हमने दुखाया,
दर्द को अपने हमेशा हमने, सीने मे छुपाया,
रुला देना ही शायद फितरत है इस ज़हां की,
बोझ दुनियां का यही सोच, कांधे पे उठाया।
साफगोई की भी तहज़ीब होती है, डूबने वालों की भी यह सदा आई, आखिरी उम्मीद थी मेरी तुम मगर, बुलाने पर भी मेरे शहर नहीं आई।