सलीके से न खुशहाली जी पाया, न फटेहाल में,
बबाल-ए-दुनियांदारी फंसी रही,जी के जंजाल में,
बहुत झेला है अब तक, खेल ये लुका-छिपी का,
मस्ती में जीयूंगा तुझे अब ऐ जिंदगी, नए साल में।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
सलीके से न खुशहाली जी पाया, न फटेहाल में, बबाल-ए-दुनियांदारी फंसी रही,जी के जंजाल में, बहुत झेला है अब तक, खेल ये लुका-छिपी का, मस्ती में ...
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