Thursday, December 4, 2025

दास्तां!

जिंदगी पल-पल हमसे ओझल होती गई,

साथ बिताए पलों ने हमें इसतरह रुलाया,

व्यथा भरी थी हर इक हमारी जो हकीकत ,

इस बेदर्द जगत ने उसे इत्तेफ़ाक बताया।


कभी दिल किसी और का न हमने दुखाया,

दर्द को अपने हमेशा हमने, सीने मे छुपाया,

रुला देना ही शायद फितरत है इस ज़हां की,

बोझ दुनियां का यही सोच, कांधे पे उठाया।


2 comments:

मलाल

साफगोई की भी तहज़ीब होती है, डूबने वालों की भी यह सदा आई, आखिरी उम्मीद थी मेरी तुम मगर, बुलाने पर भी मेरे शहर नहीं आई।