कह न पाऊंगा कोई कहानी रस भरी,
जुबां पे इक दास्तां है, वो भी दर्द भरी,
हमारे वयां करने को अब बचा ही क्या?
जाड़े का मौसम है , दिसम्बर-जनवरी।
चलो, आज कर दूं इश्क में, तुम्हारे नाम,
गली- मैदां, बर्फ से ढकी इक और शाम।
ठिठुरती देह है प्रभु, हाथ दोनों जाम हैं,
ठंड भगाने में "बूढ़े साधू" का अनोखा काम है।
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