Thursday, July 30, 2009

लघु व्यंग्य- अरहर महादेव !


सावन का महीना है, इस पूरे मास में हिन्दू महिलाए प्रत्येक सोमवार को शिव भगवान् का व्रत रखती है, शिव मंदिरों में पूजा-अर्चना करती है तथा उन्हें श्रदा-पूर्वक ताजे पकवानों का भोग चढाती है।    पिछले सोमवार को थोडा जल्दी उठा गया था, और बरामदे में बैठ धर्मपत्नी के साथ चाय की चुस्कियाँ लेते हुए अच्छे मूड में होने का इजहार उनपर कर चुका था।   अतः ब्लैकमेलिंग में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल मेरी धर्मपत्नी ने मुझे जल्दी नहा -धोकर तैयार होने को कहा।  मैंने कारण उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि मुझे भी आज उनके साथ मोहल्ले के बाहर, सरकारी जमीन को  कब्जाकर बने-बैठे शिवजी के मंदिर में पूजा-अर्चना करने और भोग लगाने चलना है।  

स्नानकर तैयार हुआ तो धर्मपत्नी भी किचन में जरूरी भोग सामग्री बनाकर तैयार बैठी थी।   अतः हम चल पड़े मंदिर की और।   मंदिर पहुंचकर कुछ देर तक पुजारी द्वारा आचमन और अन्य शुद्धि विधाये निपटाने के बाद हम दोनों ने मंदिर के बगल में स्थित भगवान् शिव की करीब दो मीटर ऊँची प्रतिमा को दंडवत प्रणाम किया।   इस बीच धर्मपत्नी थाली पर भगवान् शिव को चढाने के वास्ते साथ लाये पकवान सजा रही थी कि मैंने थोड़ा  जोश में आकर भगवान् शिव का जयघोष करते हुए कहा; "हर-हर महादेव !" यह जय-घोष किया तो मैंने पूरे जोश के साथ था, किन्तु  चूँकि पहाडी मूल का हूँ, आवाज में  भरीपन  न होने की वजह से कभी-कभार सुनने वाला उलटा-सीधा भी सुन लेता है।   अतः जैसे ही मेरा हर-हर महादेव कहना था कि अमूमन आँखे मूँद कर अंतर्ध्यान रहने वाले शिवजी ने तुंरत आँखे खोल दी, और बोले, "ला यार, कहाँ है अरहर की दाल , पिछले एक महीने से किसी भक्तगण ने भी यहां दाल नहीं परोसी।   अरहर की दाल खाने का मेरा भी बहुत जी कर रहा है।  " मगर ज्यों ही मेरी धर्मपत्नी ने भोग की थाली आगे की, शिवजी थाली पर नजर डालकर  क्रोधित होते हुए बोले, "तुम लोग नहीं सुधरोगे, टिंडे की सब्जी पका कर लाया है और मोहल्ले के लोगो को सुनाने और गुमराह करने के लिए अरहर की दाल बता रहा है ?

बकरे की भांति मै-मै करते हुए मैंने सफाई दी, भगवन आप नाराज न हो, मेरा किसी को भी गुमराह करने का कोई इरादा नहीं है।   दरह्सल आपके सुनने में ही कुछ गलती हो गई, मैंने तो आपकी महिमा का जय-घोष करते हुए हर-हर महादेव कहा था, आपने अरहर सुन लिया।   अब आप ही बताएं प्रभु कि इस कमरतोड़ महंगाई में आप तो बड़े लोगो के खान-पान वाली बात कर रहे है, हम चिकन रोटी खाने वाले लोग भला आपको १०५ रूपये किलो वाली अरहर की दाल कहाँ से परोश सकते है? यहाँ तो बाजार की मुर्गी घर की दाल बराबर हो रखी है, आजकल एक 'लेग पीस' में ही पूरा परिवार काम चला रहा है ! और हाँ, ये जो आप टिंडे की सब्जी की बात कर रहे है तो इसे भी आप तुच्छ भोग न समझे प्रभु, ४५/- रूपये किलो मिल रहे है टिंडे भी।  इतना सुनने के बाद भगवान शिव ने थोडा सा अपनी मुंडी हिलाई, कुछ बडबडाये, मानो कह रहे हो कि इडियट,पता नहीं कहाँ-कहाँ  से सुबह-सुबह चले आते है, मूड ख़राब करने ...........और फिर से अंतर्ध्यान हो गए।  

Tuesday, July 28, 2009

इन्द्रदेव मेहरबान हुए भी तो...!



झमाझम बारिश,
सावन की मस्ती है,
दिखा दिया,
इन्द्रदेव  ने
वो क्या हस्ती है।

पानी-पानी
हुई राजधानी,
बारिश की चर्चा
हर एक ज़ुबानी।

जहां चला करती थी
कलतक बस, कारे,
चल रही आज
वहाँ कश्ती है।
दिखा दिया,
इन्द्रदेव  ने
वो क्या हस्ती है।।

बारिश दिन-रैन,
सब के सब बेचैन,
एक  ही दिन में ये हाल,
हर बाशिंदा बेहाल ,

कीचड का सैलाब,
डूबी सारी बस्ती है।
दिखा दिया,
इन्द्रदेव  ने
वो क्या हस्ती है।।


Monday, July 27, 2009

लघु कथा- सुजाता

सुजाता के पिता शहर मे बिजली विभाग के दफ़्तर मे वरिष्ठ कलर्क थे ! सुजाता के दादा जी की मृत्यु के तुरन्त बाद ही गांव की जमीन-जायदाद बेचकर उन्होने उसी शहर मे एक घर खरीद लिया था ! परिवार मे कुल ६ सदस्य थे, दादी मा, सुजाता के माता-पिता और तीन भाई-बहन, यानि सुजाता और उसके दो भाई ! पिता बडे ही निठुर और स्वार्थी स्वभाव के इन्सान है, लिहाजा उनकी इस निठुरता का ही परिणाम था कि सुजाता की मां को समय पर उचित चिकित्सकीय सहायता न मिल पाने की वजह से करीब सात साल पहले उनका निधन हो चुका था ! मां की मृत्यु के बाद घरेलू कामों का बोझ नन्ही सुजाता, जो तीनो भाई-बहनो मे सबसे बडी थी,के कन्धो पर आन पडा था, किन्तु जब तक दादी मां थी, उसे घर पर थोडा सा सहारा था, और वह अपनी पढाई जारी रखे थी, एवम जैसे-तैसे कर उसने दसवीं पास कर ली थी! किन्तु दो साल पहले दादी मां भी चल बसी, और तब से सम्पूर्ण घर की जिम्मेदारी उसी को सम्भालनी पड रही थी! पिता ने उसे दसवी से आगे पढाने से साफ़ इन्कार कर दिया था !

सुजाता की हार्दिक इच्च्छा थी कि वह पढ-लिखकर अध्यापिका बनेगी, लेकिन निष्ठुर पिता के आगे उसकी इतनी भी हिम्मत नही हुई कि वह इस बात की जिद कर सके कि वह आगे पढ्ना चाहती है ! पिता दफ़्तर तथा दोनो भाई जब स्कूल चले जाते थे तो घर का सारा काम-काज निपटाकर, वह लिखने बैठ जाती थी ! उसे कविता लिखने का बडा शौक था, वह अपनी डायरी मे कवितायें एवम गजल लिखती और फिर बार बार उसे पढ़ती! एक दिन पडोस की एक आन्टी, जो कि मोहल्ले के ही एक स्कूल मे अध्यापिका थी, उससे मिलने आई! वह उस समय भी अपनी डायरी मे एक कविता लिख रही थी, छुपाने की कोशिश करते-करते भी आन्टी ने डायरी देख ली थी, और बातों ही बातों मे उसने उसे वह डायरी दिखाने को कहा ! उसकी कवितायें एवं गजल पढ्कर उस आंटी ने कहा, अरे तू तो बहुत सुन्दर लिखती है, इन्टर्नेट पर अपना ब्लोग क्यों नही खोल लेती ? उसने कहा, आंटी मुझे इन्टर्नेट के बारे मे खास जानकारी नही है, और आप तो जानती ही है कि ……, इतना कहकर वह खामोश हो गई! आंटी ने कहा, एक काम क्यों नही कर लेती, रोज शाम को चार बजे के आस-पास एक घन्टे के लिये मेरे घर आ जाया कर, मेरे घर मे कम्प्युटर और नेट दोनो है, मै तुझे सब कुछ सिखा दूंगी! उसने उत्साहित होकर कहा, ठीक है आन्टी, वैसे भी मै कम्प्युटर चलाना अपने स्कूल के दिनो मे सीख चुकी हूं!

बस फिर क्या था, उस दिन के बाद से उसका वह इन्टर्नेट पर ब्लॉग लिखना एक रुटीन सा बन गया था ! साथ ही उसे रोजाना थोडी देर के लिये मन बह्लाने का भी एक अच्छा खिलोना मिल गया था ! उसे यह मालूम नही था कि जो कुछ वह अपने ब्लोग पर डालती है, वह चिठठा जगत के माध्यम से ब्लोगर विरादरी की दुनियां मे तथा आम पाठको तक पहुंच जाता है! उस दिन तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहा, जब उसे टिप्पणी के रूप मे उसकी कवितावों की तारीफ़ का एक जबाब मिला ! घर आकर वह रात भर यही सोचती रही कि आखिर उस शख्स को उसके ब्लोग के बारे मे पता कहां से चला? और फिर तो उसकी हर कविता और गजल पर उस शख्स की प्रतिक्रियाऒ का सिलसिला लगातार चलने लगा था!


शरद ऋतु की एक सुहाने भोर को उसकी संयोग से हुई वह पहली भेंट, जिसे उसने उस वक्त कोई खास तबज्जो नही दी थी, वो पल आज अचानक, उस नई सेज पर औंधे मुह लेटी सुजाता की आखों मे किसी हसींन सपने की भांति तैरने लगे थे ! वह हर उस पल को बारिकी से याद करने की कोशिश कर रही थी, जब वह अपने छोटे भाई को स्कूल-बस मे चढाने के उपरान्त, ज्यों ही अपने घर के लिये मुडी थी,तो सामने उसके ठीक दो फूट दूरी पर एक सिल्वर कलर की सैन्त्रो कार रुकी थी ! कार की ड्राइविंग सीट की खिड्की का काला शीशा जब धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा, तो सुबह-सुबह अपने मोहल्ले के बाहर की उस निर्जन सडक पर अकेली सुजाता एकदम चौकन्नी हो गई थी ! कार की खिड्की का शीशा जब पूरा खुल चुका तो उसमे से करीब २६-२७ साल के सुन्दर-सजीले युवक ने खिड्की से गर्दन बाहर निकालते हुए सुजाता से पूछा: ए़क्सक्युज मी, ये मेन हाईवे पर पहुंचने के लिये कहां से जाना होगा? उस युवक के पूछ्ने पर सुजाता उसके थोडा और निकट जाकर उसे दिशा समझाने लगी कि आगे टी प्वाइंट पर पहुचकर दाई तरफ़.............. सीधी हाइवे पर पहुंचती है ! यह सब बताने के बाद उस युवक ने सुजाता के खुबसूरत चेहरे पर नजरें गडाते हुए, अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेरी और थैंक्यु सो मच, आइ एम संयोग पालीवाल, कहते हुए अपना दायां हाथ खिड्की से बाहर निकाल सुजाता की ओर बढाया! अप्रत्याशित इस पेशकश पर सुजाता सकपका सी गई और चेहरे पर शुन्यता लिये ही, एक बार आगे पीछे देखने के उपरांत उसने भी अपना हाथ युवक के हाथ की तरफ़ बढाते हुए धीरे से कहा, सुजाता ! उस युवक ने उसे मुस्कुराते हुए ’थैक्स अलौट’ कहकर गाडी आगे बढा दी थी, मगर सुजाता उसके इस अचानक हाथ पकडने से खुद को कुछ असहज सी मह्सूस कर रही थी! क्षणिक खडे रहने के बाद वह अपने घर की दिशा मे यह बड्बडाते हुए मुडी कि कमीना, होगा बिग्डैल किसी बडे बाप की औलाद, मुझे अकेला देख छेडने के लिये जानबूझ कर अनजान बन, रास्ता पूछ्ने का यह बहाना कर रहा होगा !

मगर फिर घर आकर वह उस घट्ना को एकदम भुला बैठी थी, और अपने घर के काम-काज मे जुट गई ! शाम को जब पुन: वह आन्टी के घर नॆट पर अपना ब्लौग चेक करने गई, तो उसके दिलो-दिमाग पर एक हल्का झट्का सा उस नई आई प्रतिक्रिया को पढ कर लगा, जिसमे उस शख्स ने दो शेर लिखे थे, शेर कुछ इस तरह के थे ;

हमारे आवारा दिल को राह चलते सरेआम, आज कोई ठग गया ,
यादों के किसी कोने मे हमारे भी, ख्वाब आशिकी का जग गया !
पता नही ये उनकी खुबसूरती का जादू है या मेरे दिल की लगी,
इसी कशमकश में हूँ कि अचानक मुझे ये रोग कैसा लग गया !!
XXXXXX
सुर्ख ख्वाबो को ऐ काश ! बहार मिल जाये,
टुकडो मे सही मगर सच्चा प्यार मिल जाये,
मै फिर दुआ मांगने लगू खुदा से कि हे खुदा,
मुझे थोडी सी और जिन्दगी उधार मिल जाये !

प्रतिक्रिया को पढकर न जाने उसे क्यों लग रहा था कि हो न हो, यह वही शख्स है, जो उसे सुबह रास्ते मे मिला था ! वह इन्हीं विचारों मे खोई अपने घर लौटी, तो अमूमन शाम छह बजे के बाद लौटने वाले उसके पिता, आज पांच बजे से पहले ही घर लौट आये थे ! और उसे घर मे न पाकर आग-बबूला हुए जा रहे थे ! जब वह घर के अन्दर पहुची तो लगे उसे खरी खोटी सुनाने, कि मै देख रहा हूं कि आजकल तेरे बहुत पंख लग गये है ! कल से तू घर से बाहर नही जायेगी, मैने तेरे लिये एक बडे घर का लड्का ढूंढ लिया है, और अब जल्दी तेरी शादी होने वाली है! पिता की बातें सुनकर वह एकदम घबरा गई थी, बहुत रोई, गिडगिडाई कि मै अभी बहुत छोटी हू, उस रात उसने खाना भी नही खाया, लेकिन पिता पर उसका कोई फर्क नही पडा ! उसके बाद से वह बस यही सोचती कि आखिर एक बडा घराना क्यों उनके घर से रिश्ता जोडना चाहता है जबकि वह पढी-लिखी भी खास नही है, जरूर कोई ऐसी-वैसी बात होगी, जो वे लोग उसका रिश्ता मांग रहे है ! मगर उसके पिता थे कि उसकी कोई भी बात सुनने को राजी न थे !

और फिर एक महिने बाद एक सादे समारोह मे उनके ८-१० रिश्तेदारो और जान-पह्चान वाले लोगो के सामने मन्दिर मे उसका हाथ एक अजनबी को थमा दिया गया, यह देखकर वह हैरान थी कि वह अजनबी और कोई नही बल्कि वही संयोग नाम का व्यक्ति था, जो उस दिन उसे कार मे से रास्ता पूछ रहा था ! संयोग की तरफ़ से भी शादी मे सिर्फ़ उसके चार दोस्त ही आये थे और कोई नही था! किसी अनहोनी की आशंका के बीच सुजाता अपने घर से विदा हुई ! वहां से सीधे अपने घर न ले जाकर संयोग उसे एक होटल मे ले गया जो उसने पहले से बूक करवाया हुआ था ! दुल्हा-दुल्हन को होटल मे छोड, संयोग के साथ आये दोस्त भी शाम को पार्टी में मिलने की बात कहकर विदा हो गये ! गाडी पार्क कर संयोग, सुजाता को होटल के एक कमरे मे ले गया, सुजाता अन्दर से बहुत डरी हुई थी और हो भी क्यों न, किसी ने भी अब तक उसे यह नही बताया था कि परम्परा से हटकर आखिर यह सब कुछ हो क्या रहा है ? कमरे मे पहुच संयोग ने सुजाता को बेड पर बिठाया और खुद सामने टेबल के ऊपर रखी पानी की बोतल को दो गिलासों मे उडेल कर एक गिलास सुजाता की तरफ़ बढाते हुए बोला, मुझे मालूम है कि तुम इस तरह खुद को बडा अनकम्फ़ोर्टेबल मह्सूस कर रही हो, वैसे तो मेरे बारे मे आपको आपके पिताजी ने थोडा बहुत बता ही दिया होगा फिर भी पानी पीकर थोडा रेले़क्स हो लो, फिर मै पूरी बात समझाता हू !

थोडी देर तक कमरे मे सन्नाटा छाया रहने के बाद सुजाता के बगल मे बैठे संयोग ने खामोशी को तोडते हुए बोलना शुरु किया ! तुम सोच रही होंगी कि यह किस तरह की शादी है ? न कोई बैन्ड, न कोई धूम धडाका, न कोई घर, न परिवार और न कोई नाते-रिश्तेदार ! मै पेशे से इन्जीनियर हूं और यहां बिजली विभाग मे एग्जीक्युटिव इंजीनियर के पद पर कार्यरत हू ! पहले मेरी पोस्टिंग दूसरे शहर मे थी, लेकिन अभी दो महिने पहले ही मैने अपनी पोस्टिंग यहां करवाई ! मेरा परिवार एक पहाडी कस्बे मे ही रह्ता है और हालांकि मेरे पिता वहां के एक प्रमुख बिजनेस मैन है मगर वे लोग बहुत ही पुराने खयालातो के लोग है ! मेरी जन्मपत्री के हिसाब से पंड्त लोगो ने मेरे परिवार को बताया कि मेरे ग्रह उनके लिये ठीक नही है और अगर वे लोग मेरी शादी करेंगे तो मेरे पिता की जल्दी ही मौत हो जायेगी ! लेकिन अगर मैं अपनी मर्जी से खुद कहीं अलग जाकर शादी करता हूं तो फिर उनके लिये इसमे कोई अपशगून नही है ! इसी के चलते मेरे परिवार वालों ने मुझे खुली छूट दे रखी है कि मै अपनी पसन्द और मर्जी से शादी कर सकता हूं ! हालांकि पहले मैने यह तय किया था कि मै जिन्दगी भर कुंवारा ही रहुगा, मगर यहाँ सब अपनी मर्जी का कहाँ होता है, तुम मिली तो ख्यालात ही बदल गये !

अब आशंकित सुजाता ने, जो अब तक खामोश बैठकर ध्यान से संयोग की बातें सुन रही थी, चुप्पी तोडते हुए पूछा कि आपने उस दिन सड्क पर मुश्किल से दो मिनट की मुलाकात मे मुझमे ऐसा क्या देख लिया कि आपके ख्यालात ही बदल कर रह गये? संयोग थोडा सा मुस्कराया और फिर उसने उसे ब्लॉग की वह सारी कहानी बताते हुए कहा कि दरसहल मुझे भी लेखन का शौक है, और जब मैने चिठ्ठा जगत पर तुम्हारा ब्लोग पढा तो मै तुम्हारी लेखनी का दीवाना हो गया था, और उस दिन जब मै ब्लोग पर मिले तुम्हारे पते को ढूढ्ते हुए तुम्हारे इलाके मे एक दोस्त के यहां रात को रुका था, और उसके यह बताने पर कि तुम रोज सुबह अपने भाई को स्कूलबस मे चढाने अमूक स्थान पर जाती हो, तो मैने तुम्हारी एक झलक पाने के लिए वह सारा नाट्क किया था, मुझे तब अपनी मंजिल और आसान नजर आने लगी, जब मुझे मालूम पडा कि तुम्हारे पिता भी हमारे ही विभाग मे कार्यरत है ! मैने जब उन्हे सारी स्थिति समझाई तो वे तुरन्त तैयार हो गये! संयोग की बाते सुनकर मानो सुजाता की खुशी का ठिकाना न था, उसके मन मे संयोग के लिये प्यार किसी सितार के एक-एक तार की तरह बज उठे थे! उसे लग रहा था कि मानो उसके पखं उग आये हो और वह अभी उड जायेगी! उसे विस्वास नहीं हो रहा था कि सचमुच उसकी किस्मत ने इतनी ख़ूबसूरत करवट बदली है अथवा वह महज एक सपना देख रही है! उसने तो सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि उसे जीवन साथी के तौर पर इतना सुन्दर और सर्वगुण संपन्न साथी मिल जाएगा! उसकी अंतरात्मा इस उपलब्धि के लिए बार-बार एक ही वाक्य दोहरा रही थी, 'थैंक्यू आंटी, थैंक्यू ब्लॉग, थैंक्यू चिठ्ठा-जगत' !

अजीब बिडम्बना है !

कल कारगिल युद्द की दसवीं सालगिरह पर टीवी पर प्रोग्राम देखते-देखते बस यूं ही विचार-मग्न था, कि तभी कुछ ख्यालात दिलो-दिमाग मे आये, और उन्हे मैने कुछ इस तरह भावो मे पिरोया: तमाम समस्यायें जैसे जम्मु-कश्मीर की समस्या, मावो और नक्सली समस्या, आतंक की समस्या इत्यादि, इत्यादि जिनको सुलझाने के नाम पर ये आम जनता और सुरक्षाकर्मियों को मरवाते है , किसने खडी की रहती है ?

जिन गरीबो का ये, करते आये है शोषण,
वही इन्हे जिताकर, सत्ता तक पहुंचाते है !
जिनकी वजह से, मरते है ये सुरक्षा कर्मी,
वही इन्हे जानपर खेल, खतरों से बचाते है !!

(वीवीआईपी सुरक्षा के नाम पर)

आज हम जब किस्से कहानियों मे पढ्ते है कि पुराने जमाने मे राजा महाराजा लोग, मुस्लिम आक्रमणकारी और अंग्रेज अपने ऐशो-आराम के लिये उस गरीब किसान पर जो दिन-रात मेह्नत करके खेतों मे अनाज उगाता था, टै़क्स लगाकर अपनी तिजोरी भरते थे और मजे करते थे ! अथवा जब हम लोग कोई बॉलीवुड फिल्म देखते है जिसमे कि एक मजदूर दिन-रात अपना खून-पसीना बहाकर कोयले की खदान मे काम करता है , और जब वह अपने खून-पसीने की पगार लेकर घर को निकलता है तो गेट पर भाई (हराम की खाने वाला) के लोग लठ्ठ लिये अपना हिस्सा वसूलने के लिये खडे रहते है ! यह सब देख-पढ़ कर हमारा खून खौल जाता है, लेकिन शायद कभी आपका इन्कम टैक्स के दफ़्तर मे किसी बाबू या अधिकारी से अपने इन्कम टैक्स असेस्मेन्ट के बाबत पाला पडा हो, तो आपने भी महसूस किया होगा कि आपकी हालत भी कमोबेश उसी किसान अथवा कोयला खदान मजदूर की ही तरह है, या यूं कहू कि उससे भी बद्तर है !

मिलती है जिनसे इनको शासन की कुन्जी,
उन्हीं लोगो पर शासन ये अपना चलाते है !
खुले-आम लूटते-लुटाते है जिनकी ये धन-दौलत,
वही इनको फिर से धन अपना दे जाते है !!

(टैक्स के नाम पर)

तो क्या इसी का नाम सच्चा लोकतन्त्र है ? क्या जो आज हम देख रहे है, इन्ही सब बातों के लिये हमारे पूर्वजों ने कुर्वानियां दी थी ? क्या कोई इन तथाकथित साम्यवादियों और समाजवादियों से पूछ सकता है कि जिस सामाजिक न्याय के नाम पर ये अपना घर भरते आये है, आजादी के इतने सालो बाद भी इन्होने इस क्षेत्र में क्या किया ?

छद्म-निर्पेक्षता और साम्प्रदायिक्ता की खूनी,
बुनियाद पर ये अपने, महलों के नींव सजाते है !
जिनके उजाड्ते है ये घर, वही मजदूर ,
एक-एक ईंट जोड्कर घर इनका बनाते है !!

(देश भक्ति और राष्ट्रीय एकता के नाम पर)

Saturday, July 25, 2009

किसे जिम्मेदार ठहराएं ?

अपने बचाव और जनता की नजरों में धूल झोंकने के लिए सत्ता में बैठे हमारे इन कुटिल राजनीतिज्ञों ने अनेको उपाय ढूंढ निकाले है ! अगर कुछ हो जाए तो बस पुलिस जांच, सीबीआई जांच, न्यायिक जांच, ये आयोग, वो आयोग, ये अंकेक्षक, वो परीक्षक ! मगर अंत में नतीजा क्या, वही ढाक के तीन पात ! ये लोग बखूबी इस बात को समझते है कि हिन्दुस्तानियों की याददास्त बड़ी कमजोर है, उन्हें सुबह का खाया हुआ शाम को याद नहीं रहता, तो कई सालो बाद जब तक किसी आयोग की रिपोर्ट इनको मिलेगी और ये उसे सार्वजनिक करेंगे, तब तक तो हिन्दुस्तानी जनता उस घटना को भुला चुकी होंगी ! जो एक-आदा भूलेंगे नहीं, उन्हें रोजी रोटी और रोजमर्रा की मुसीबतों में ही इस तरह से उलझा के रखो कि वह लीक से परे हटकर और कोई बात सोच ही न पाए !

हाल में प्रकाशित अंकेक्षक और महालेखापरीक्षक, जो कि सरकारी खर्च का ऑडिट करता है, ने अपनी आडिट रिपोर्ट में सरकारी खर्च और रक्षा सौदों में गंभीर अनियमितताओ के जो आरोप लगाए है, उनकी सुनवाई कहाँ होगी और कौन करेगा ? महालेखापरीक्षक का मानना है कि जितने में (नौ हजार एक सौ करोड़ रूपये) हमारी सरकार रूस से पुराना विमान बाहक पोत खरीद रही है, उतनी कीमत में तो नया पोत आ जाता ! साथ ही १८७९८ करोड़ रूपये में जो फ्रांस की कंपनी से ६ पंडूब्बियाँ खरीदने का सौदा हुआ, वह भी किसी बड़े घोटाले की ओर इशारा करता है !

हम अगर तनिक अतीत में झाँककर देखे, तो हमने मिग श्रेणी के लडाकू विमानों की दुर्घटना में अपने अनेक होनहार युवा सैनिको को खोया है, और यह सिलसिला अब तक चला आ रहा है, ऐसा क्यों हुआ, सीधा सा जबाब है, हमारे नेताओ और लाल फीताशाही ने कमीशन और घूस खाने के चक्कर में निम्न किस्म के सैनिक उपकरण खरीदे, और खामियाजा भुगता सैनिक ने, आम जनता ने, और ये खरीददार अपना घर भरते रहे !

अब सवाल यह उठता है कि क्या लोकतंत्र के मायने सिर्फ यही रह गए है कि हम आमचुनाव का नाटक रचाकर, चंद उन लोगो को जो भ्रष्ट है, अयोग्य है और अक्षम है, उन्हें अपना और इस देश का भाग्य लिखने की आजादी दे, उसे लिखने के लिए इनके हाथों में कलम-दवात पकडा दे ? क्या ये इसी तरह निरंकुश होकर इस देश को लूटते रहेंगे, देश की गरीब जनता जो आज सरकार द्बारा उपलब्ध कराई जाने वाली हर सेवा, वस्तु अथवा उत्पादन पर अपने खून पसीने की गाडी कमाई से इनकी तिजोरी में टैक्स जमा कर रहा है, क्या ये उस पैसे को इसी तरह लुटाते रहेंगे? हमें किसी बाहरी दुश्मन की जरुरत है, जब हमने अपने यहाँ ही ये पाले हुए है ?

Friday, July 24, 2009

फिर आज नया उल्फ़त का तराना है




आओ, फिर आज नया उल्फ़त का तराना है,
मेह की रिमझिम फुहार, मौसम वो पुराना है।

किये थी कबसे हमें बेचैन , दिल की हसरत,
लम्बी सैर पे जाने  का, उम्दा सा बहाना है।

लिए संग चलेंगे चंद अल्फाज, प्रेम के अपने,
जिगर पे लिखने को, इक नया अफसाना  है।

दिल खोल के खर्च करेंगे, वक्त का हर लम्हा,
समर्पण का  हमारे पास  अनमोल खज़ाना है।

मुल्तवी पल 'परचेत', जुल्फों की घनेरी छाँव,
बीत जाए सफ़र सकूँ से, महफूज ठिकाना है।  

पाक-अमेरिकी सांठ-गाँठ और हमारी नादानियाँ !

कितनी हास्यास्पद बात है कि २६/११ के शर्मनाक आतंकवादी मुंबई हमले, और उसके बाद की कार्यवाही में यह स्पष्ट हो जाने के बाद कि यह हमला पाकिस्तान की सरकारी तंत्र के द्वारा नियोजित था, जिस भारत को आक्रामक होना चाहिए था, वह कोने में बचाव की मुद्रा में खडा है, और जिस देश को इस घटिया हरकत के लिए शर्मशार होना चाहिए था, वह आक्रामक है ! अगर थोड़ी देर के लिए यह मान भी लिया जाए कि बलूचिस्तान में भारत अपनी खुफिया एजेन्सी के मार्फ़त हस्तक्षेप कर रहा है, तो क्या हम पाकिस्तान को इतना भी टका सा जबाब नहीं दे सकते कि तुम अगर हमारे देश में पिछले ६० सालो से खून खराबा करते आ रहे हो, तो हम क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे ? हाल के शर्म-अल-शेख की बैठक के नतीजे और उसके बाद की पाकिस्तानी प्रतिक्रियाओं और वहाँ के अखबारों की मन-गढ़ंत कहानियो से यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान इस क्षेत्र में वास्तविक शान्ति स्थापित करने के प्रति कितना गंभीर है !

हम शायद यह जानते नहीं, या फिर जान-बूझकर नादान बने रहते है कि अमेरिका एक ऐंसा स्वार्थी दूकानदार है जो मोहल्ले में सिर्फ उसे सलाम करता है, जो उसकी दुकान पर सामान खरीदने जाता है! आखिर अमेरिकी विदेश मंत्री को बार-बार यह सफाई देने की क्यों जरुरत पड़ती है कि वह पाकिस्तान से बातचीत शुरू करने के लिए भारत पर कोई दबाब नहीं डाल रहे ! एक सार्वभौमिक राष्ट्र के रूप में कब हम बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के अपने निर्णय स्वयं ले पाने में समर्थ होंगे? क्योंकि इस बारे में अनेको बार अमेरिका को सवाल झेलने पड़ते है कि जब वे भारत दौरे पर जाते है, तो फिर उसी दौरान पाकिस्तान क्यों जाते है? इसलिए अभी हाल की भारत यात्रा पर आने से पूर्व श्रीमती क्लिंटन ने यह स्पष्ठीकरण दिया कि वह पाकिस्तान नहीं जा रही, मगर साथ ही भेंट के लिए पाकिस्तानी विदेशमंत्री को फुकेट, थाईलैंड में बुला लिया, यह क्या दर्शाता है ?

हमे यह भली प्रकार से जान लेना होगा कि चाहे अमेरिका को हम जितना मर्जी चिकना करने के लिए घी के घडे में रख ले, वह खुरदुरा ही रहेगा, और भारत का कभी भी एक सच्चा मित्र नहीं बन सकता ! हमें मित्रता की कसौटी पर अमेरिका को रूस के समतुल्य रखने की भूल कभी नहीं करनी चाहिए ! रही बात पकिस्तान की, तो हमें यह समझना होगा कि एक मायने में समूची पाकिस्तान समस्या ही हमारी नादानियों का परिणाम है, वह बस एक समस्या की बुनियाद पर खडा झूठ का पुलिंदा मात्र है, और कुछ नहीं ! भूतकाल में हमने जितने भी प्रयास उसके साथ शान्ति के लिए किये, उसके क्या नतीजे अब तक निकले ? कुछ महीनो पहले इसी झूठ पर मैंने एक कविता लिखी थी, आपके मनोरंजनार्थ एक बार फिर से यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ :

हद-ए-झूठ !

रंगों की महफिल में सिर्फ़ हरा रंग तीखा,बाकी सब फीके !
सच तो खैर, इस युग में कम ही लोग बोलते है ,मगर
झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे !!

झूठ भी ऐंसा कि एक पल को, सच लगने लगे !
दिमाग सफाई के धंदे में,इन्होने न जाने कितने युवा ठगे,
गुनाहों को ढकने के लिए, खोजते है नित नए-नए तरीके !
सच तो खैर, इस युग में कम ही लोग बोलते है,मगर
झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे !!

जुर्म का अपने ये रखते नही कोई हिसाब !
भटक गए राह से अपनी,पता नही कितने कसाब,
पाने की चाह है उस जन्नत को मरके,जो पा न सके जीके !
सच तो खैर, इस युग में कम ही लोग बोलते है,मगर
झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे !!

इस युग में सत्य का दामन, यूँ तो छोड़ दिया सभी ने !
असत्य के बल पर उछल रहे है,आज लुचे और कमीने,
देखे तो है बड़े-बड़े झूठे, मगर देखे न इन सरीखे !
सच तो खैर, इस युग में कम ही लोग बोलते है ,मगर
झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे !!

दहशतगर्दी के इस खेल में मत फंसो मिंया जरदारी !
पड़ ना जाए कंही तुम्ही पर तुम्हारी यह करतूत भारी,
करो इस तरह कि कथनी और करनी में, न फर्क दीखे !
सच तो खैर, इस युग में कम ही लोग बोलते है,मगर
झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे !!
-पी.सी. गोदियाल

Wednesday, July 22, 2009

सूरज चाँद से मिला !



आज तडके,
दूर गगन में,
एक अरसे के बाद,
फुरसत से,
सूरज अपनी महबूबा,
चाँद से मिला,
और कुछ पलों तक
दोनों एक दूसरे को
निहारते रहे, जी भर के !

भले ही उनका
यह मधुर मिलन,
देखने वालो को,
खूब भा गया !
मगर सोचता हूँ कि,
वो मिले तो आसमां में थे,
फिर धरा पर क्यों,
अँधेरा छा गया ?

फिर सोचता हूँ कि हो न हो,
ये आशिक अभी भी
पुराने ख्यालातों के है,
इनपर अभी तक,
पश्चिम का जादू नहीं चला !
वरना इसतरह,
रोशनी बुझाकर क्यों
अँधेरे मे एक दूसरे को,
प्यार करते भला ?

Tuesday, July 21, 2009

हर एक आम आदमी रोता है

जनतंत्र की शय्या पे हर रहनुमा ,
कलुषता की चादर ओढ़ के सोता है,
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में,  
आज हर एक आम आदमी रोता है।  

हुआ कर्तव्य गौण, प्रमुख आसन,
निकम्मा, सुप्त पडा वृथा-प्रशासन,
लाज बचाती फिर रही द्रोपदी,
चीर-हरण  में  है मग्न  दुश्शासन।  

धोये थे पग मर्यादा पुरुषोतम के ,
वही केवट अब दुष्ट-धूमिल पग धोता है,
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में,
आज हर एक आम आदमी रोता है।  

चुनाव  के नाम पर गड़बड़झाला,
परिवारवाद का है  बोलबाला,
इंसाफ़  न पाता  निश्शक्त मुद्दई ,
फरियाद न कोई सुनने वाला !

घोटालों  की परिक्रामी कुर्सी पर, 
अलसाया दफ़्तरशाह सोता है, 
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में,
आज हर एक आम आदमी रोता है। 

शर्मशार हो रही पतित नैतिकता,
शरमो-हया निगल गई नग्नता,
संस्कृति नाच रही रात पबो में,
सभ्यता बन गई समलैंगिकता !

जहां सब कुछ मंहगा, मौत है सस्ती,
मुफ़लिस निज-शव काँधे रख ढोता है,
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में,
आज हर एक आम आदमी रोता है। 




Monday, July 20, 2009

फालतू लोग बहुत है !

आज श्रावण मास का पहला सोमवार है, और सुबह से ही शिव मंदिरों में लोगो का तांता लगा है ! दूसरी ओर कांवड़ यात्रा, या यूँ कहूं कि शिव भगवान की महिमा का सड़क-प्रदर्शन अपने चरम पर है! कहीं लंबा ट्रको का जत्था शिव भगवान् का रथ बनकर, फिल्मी अंदाज़ में नाच-गान करता हुआ, समूचे यातायात को बाधित कर अपनी मस्त चाल में आगे बढ़ रहा है तो कहीं मोटर साइकिलों पर कुछ युवा कावडीये इस तरह उस जल कलश को ले जा रहे है कि उनमे से बारी-बारी से एक कावडिया कलश लेकर सड़क पर दौड़ता है, और उसके पीछे वो चार-पांच मोटरसाइकिल सवार दौड़ते है, सारे यातायात के नियम कानूनों को ताक पर रखकर ! चालान काटने में मुस्तैद दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के जवान भी आजकल किसी कोने पर बैठ सुर्ती फाँक रहे है ! यह सब देखकर मुझे अपने उस कुलगुरु पर बड़ा क्रोध आ रहा था, जिन्होंने मुझे बचपन में इस तरह के उटपटांग उपदेश सुनाये थे कि इंसान होने के नाते हमारा फर्ज है अपने कर्तव्य का उचित निर्वहन ! इस दुनियां में आजतक इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले, जिसमे कोई भगवान् अथवा परमात्मा इंसानों से यह कहता पाया गया हो कि तुम अपना कर्तव्य छोड़कर, मुझे खुश करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाओ ! अगर मेरे वो कुलगुरु आज जिंदा होते तो उन्हें यह सब जरूर दिखाता और पूछता कि केवल आप ही एक विद्वान हो, क्या ये इतने सारे लोग सब मूर्ख है ?

इस चिट्ठाजगत मंच पर कुछ सज्जनों के विद्वता पूर्ण लेख कुछ दिन पूर्व पढ़े थे, जिसमे उन्होंने कावड़ के समर्थन में काफी तर्क पूर्ण विवेचन प्रस्तुत किये थे! उन सज्जनों को मैं एक छोटी सी सच्ची कहानी सुनाना चाहता हूँ : एक था नेगी, ३० साल का नौजवान ! सुदूर चमोली गढ़वाल का रहने वाला! चमोली में पीडब्लूडी में नौकरी करता था, उसकी माँ कुछ दिनों से उसके बड़े भाई के पास विजय नगर गाजियाबाद में रह रही थी, उसे वापस गाँव ले जाने के लिए वह तीन दिन पहले चमोली से तडके निकला था, इस बात से बेखबर कि इन दिनों दिल्ली- हरिद्वार मार्ग पर कितनी अराजकता फैली हुई है ! पहले से तय कार्यक्रम के हिसाब से उसने अनुमान लगाया था कि वह करीब सात बजे मोहन नगर पहुँच जाएगा और वहाँ से ऑटो रिक्शा पकड़ साड़े सात बजे तक भाई के घर पहुँच जाएगा, लेकिन भला हो उस कावडीये का जो भरी दोपहर में भांग पीकर एक बिजली के ट्रांसफार्मर के पोल पर चढ़ गया और घंटो यातायात वाधित किये रहा ! कई घंटो बाद जब पुलिस ने क्रेन की मदद से उसे उतारा तो तब जाकर यातायात सामान्य हुआ ! अतः जिस बस से नेगी दिल्ली आ रहा था वह पूरे सात घंटे देरी से, यानी २ बजे सुबह मोहन नगर पहुँची ! मोहन नगर पहुँच नेगी ने चिंतित घरवालो को फोन कर बताया कि कावड़ की वजह से बस लेट थी, अतः अब जाकर वह मोहन नगर पहुंचा है और ऑटो-रिक्शा कर थोड़ी देर में घर पहुँच जाएगा ! लेकिन भाग्य में कुछ और ही लिखा था, सो सुबह उसकी लाश वसुंधरा पुलिस चौकी के बगल पर पडी मिली !

खैर यह तो एक छोटी सी सच्ची कहानी थी,अगर बस ठीक टाइम पर पहुँचती तो शायद वह जिंदा होता लेकिन न जाने कितनी और सच्ची झूटी कहानियां इस कावड़ के बाबत गढी जाती होंगी ! मुझे भी करीब २५ साल दिल्ली में रहते हो गए लेकिन ठीक से याद नहीं कि आज से १०-१२ साल पहले तक मैंने कावड़ के बारे में ज्यादा कुछ सूना था ! ज्यादा सिर्फ पिछले ८-१० सालो से ही सुन रहा हूँ ! हो सकता है तब पानी की समस्या इतनी बिकराल नहीं थी और शिवजी स्थानीय उपलब्ध पानी से ही काम चला लेते हो, इसलिए उस जमाने में कावड़ इतनी फेमस नहीं थी ! बस, एक बात अंत में अपने कावड़ बन्धुवों से कहना चाहूँगा कि;

स्वर्ग पाने की फितरत में, कुछ करो ऐसा,
कि यहाँ पाप के लिए कोई मुकाम न हो !
संभल के डालना ठंडा गंगाजल उनपर दोस्तों,
बदलते मौसम में कहीं उनको जुकाम न हो !

Saturday, July 18, 2009

शर्म-अल-शेख का 'शर्म' !

मेरे ब्लॉग के प्रिय पाठक गण:

ब्लॉग के उचित नियंत्रण और पाठको की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मैंने अपने दो अन्य ब्लॉग My Lyrics और Tirchhi Nazar को आज से इसी ब्लॉग में समावेशित कर दिया है !
साभार !
Godiyal


हर जगह अपने को एक भला व्यक्ति शाबित करने की कवायद में, हमारे प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी यह भी भूल गए कि देश के अन्दर भले ही एक व्यक्ति का अपना निजी गौरव ज्यादा अहमियत नहीं रखता हो, किन्तु विदेश में राष्ट्र के गौरव का तो हम कम से कम थोडा बहुत ख्याल रख सकते है! यह हमारे लिए बड़े शर्म की बात है कि हम शर्म-अल-शेख में अपने उस दुश्मन देश के आगे झुके, जो अपनी घिनौनी हरकतों से पिछले ६०- ६२ सालो से इस देश के लाखों मासुमो का खून बहाने के लिए जिम्मेदार है, जिसने लाखो माताओं की गोदे सूनी की, जिसने लाखो महिलाओं का सिन्दूर उजाडा, वह भी तब जब हमारे पास इस बात के पुख्ता सबूत थे, कि वह पूरा देश ही, उस देश की सरकार ही तथा उस देश की सेना और खुफिया तंत्र ही २६/११ के मुंबई काण्ड का दोषी है ! सिर्फ २६/११ ही इन्होने किया होता तो एक बारी माफ़ भी किया जा सकता था, किन्तु हमारे पास तो पूरे ६० सालो का इतिहास पडा है, लेकिन इससे हमारे राजनीतिज्ञो को भला क्या फर्क पड़ता है! उनकी नजर तो सिर्फ किसी शान्ति पुरुष्कार पर है, जिसे पाकर वे अजर और अमर हो जायेंगे !

अमेरिका तो अपना उल्लू सीधा कर रहा है, उसे तो हर तरफ सिर्फ अपना ही हित दिखाई देता है, भारत दौरे पर आई हिलेरी किलींटन जितना मर्जी मनमोहन सिंह जी की तारीफ़ के पुल बाँध ले, लेकिन उनकी इस तारीफ में स्वार्थ की बू साफ़ महसूस की जा सकती है ! हमें पाकिस्तान के साथ बातचीत की नसीहत देने वाले और ०९/११ के नाम पर लाखो निर्दोष लोगो को मौत की नींद सुलाने वाले अमेरिका से, क्या हममें यह पूछ पाने की हिम्मत है कि उसने ०९/११ के बाद अफगानिस्तान पर हमला करने की वजाए मुल्ला उमर और बिन लादेन से बातचीत क्यों नहीं की थी ?

आया फिर सावन !

गूँज उठी खनखनाती घंटियाँ,
जल उठे मंदिरों में दीप पावन।  
घुमड़-घुमड़, गरज-गरजकर,
आया चौखटों पर उदार सावन। 

लग रहा तय समय खेतिहर की ,
इन्द्रदेव ने सुन ली  गुजारिश। 
हो रही जरुरत के मुताविक,
कही थोड़ी, कही अधिक बारिश। 

जहां मुरझा गई थी कुसुम-कलियाँ,
वहाँ आ गई अब रुत सुहानी।
बाग़- बगीचे, खेत-खलिहान,
हो गए  हैं सब पानी-पानी। 

संचित नीर  ताल-पोखरों के ,
परिंदे पर फड़फड़ाकर नहाए। 
मेढकी भी किसी हौद-कुण्ड से
गीत, मधुर नया इक गुनगुनाए।  

किसलिए ?

पंक अद्भव हो रहा चित,
व्यग्र तुम्हारे किसलिए,
वक्ष पर लिए फिर रहा 
विद्वेष प्यारे किसलिए।

छोड़ जाना है यहीं सब,
द्रव्य संचय जितना करे ,
लगा घूमता पैबंद झूठ के
फिर ढेर सारे किसलिए।      

हर मर्ज का उपचार गर, 
सिर्फ यह बाहुल्य होता, 
अंततः सूरमा भी बड़े 
होते बेचारे किसलिए।  

धन का हर मुहताज को,  
नि:संदेह आसरा यथेष्ठ हैं,
सिर्फ वैषभ्य की वजह से 
वो रहें बेसहारे किसलिए।  

खुदगर्जी की हद हमें क्यों, 
नींद से महरूम कर दे ,
दिवस को  तममय बनायें 
तजकर उजारे किसलिए।  

Tuesday, July 14, 2009

लघु कथा- अच्छी खबरों वाला चैनल !

करीब दस साल पहले मेरी मिश्रा जी से पहली बार तब मुलाक़ात हुई थी, जब मैं अपने नए मकान में प्रवेश से पूर्व पुताई करवा रहा था, और वे मेरे मकान से कुछ दूरी पर स्थित एक प्लाट को खरीदने के विचार से उसे देखने वहाँ आये थे ! लघु परिचय में उन्होंने बताया कि वे एनआरआई है, और अमेरिका में रहते है! फिर मैंने उनसे पूछा था कि आप इनवेस्टमेंट पॉइंट आफ व्ह्यु से प्लाट खरीद रहे होंगे, तो उनका जबाब था नहीं, बुढापे के लिए खरीद रहा हूँ ! लेकिन आपने तो बताया कि आप अमेरिका में सेटल्ड है? मैंने फिर सवाल किया ! वे बोले, सो तो है, मगर वह हम जैसे लोगो के लिए बुढापे में रहने लायक जगह नहीं है, सोचता हूँ कि एक कुटिया इंडिया में बनाकर अपना बुढापा शांति से काटूं !

कुछ दिनों बाद उन्होंने वह प्लाट खरीद लिया था, और फिर वे मेरे घर पर आये थे, यह बताने कि उन्होंने वह प्लाट खरीद लिया है, और परसों वे वापस अमेरिका जा रहे है, अतः हम लोग उनके प्लाट का भी ध्यान रखे! मैंने उन्हें आस्वस्थ किया कि जब तक हम लोग यहाँ पर है, आप लोग बिलकुल भी चिंता न करे ! चाय की चुस्किया लेते-लेते उन्होंने अपने कुछ खट्टे-मीठे अनुभव भी हमे सुनाये, जो कि अकसर विदेश में रहकर आया हर भारतीय लौटने पर यहाँ के हालात की तुलना विदेश से कर, सुनाता है ! लेकिन उनका एक अनुभव मुझे और मेरी पत्नी को काफी रोमांचित कर देने वाला लगा था, और तब से अक्सर उनकी उस बात को याद कर हम फुरसत के पलों में खूब हंसते थे ! हुआ यह था कि बहुत साल पहले जब वे अपनी पत्नी और दस वर्षीय बेटे के साथ भारत भ्रमण पर आये तो मुंबई उतरे थे ! वहाँ एक दिन घूमते वक्त वे लोग सी एस टी स्टेशन पर पहुंचे तो लोगो की भारी भीड़ में उनकी पत्नी उनके बेटे का हाथ, अपने हाथो में पकडे चल रही थी, कि कब बेटा, माँ से हाथ छुडा, बगल से चल रहे अपने पिता का हाथ पकड़कर चलने लगा, उनकी पत्नी को पता भी न चला ! बात यहीं तक सीमित रहती तो अलग बात थी, किन्तु हद तो तब हो गई जब उनकी पत्नी ने अपनी ही धुन में बगल में चल रहे एक ठिगने से व्यक्ति का मजबूती से हाथ पकड़ लिया और खींचते हुए उसे अपने साथ ले जाने लगी! वह व्यक्ति गुहार लगाए जा रहा था कि दीदी आप मुझे कहाँ ले जा रही है.... दीदी मेरा हाथ छोड़ दो आप मुझे कहाँ ले जा रही है ! और दीदी थी कि उसे अपने बेटे का हाथ समझ खींचे जा रही थी ! काफी देर बाद जब मिश्रा जी का ध्यान उस और गया और उन्होंने पत्नी को बताया तो सभी वह देखकर खिसियाये से रह गए, और फिर उस व्यक्ति को सॉरी बोलने के बाद एक साथ जोर से हंस पड़े !

अभी छः महीने पहले एक दिन शाम को मै जब दफ्तर से घर लौटा तो मेरी पत्नी ने मुझे बताया कि आज मिश्राजी आये थे, और जल्दी अपने मकान का काम शुरू करवा रहे है! फिर करीब चार महीने में उनका मकान बनकर तैयार हो गया था! इस बीच वे मुझसे चार-पांच बार मिल चुके थे! वे शायद किसी गेस्ट हाउस में रह रहे थे और फिर एक दिन वे और उनकी पत्नी अपने नए मकान में शिफ्ट हो गए!

अपने इस नए मकान में शिफ्ट होने के बाद कल जब मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई तो उनके चेहरे से असंतुष्टी साफ़ झलक रही थी! मैंने पूछा, मिश्राजी, नए घर में आप संतुष्ट तो हो न, कोई दिक्कत, परेशानी तो नहीं है? उन्होंने अपने दाहिने हाथ कि उंगली से अपने कान के ऊपर के बालो को थोडा सा खुजलाया और फिर बोले, गोदियाल जी, अब आप से क्या छुपाये, बस ये समझो कि दिक्कत ही दिक्कत है ! सोचा कुछ और था, मिला कुछ और! बस, यूँ समझिये, शकुन कही भी नहीं है ! आज बिजली का बिल भरने बिजली के दफ्तर गया तो वे कहने लगे कि आपका मीटर कम कैपसिटी का लगा है जबकि आप बिजली अधिक खर्च कर रहे है, अतः आपको मीटर की कैपसिटी बढ़वानी होगी ! फिर थोडा रूककर वे बोले, अच्छा एक बात बताइये गोदियाल जी, आपने अपने टीवी पर कनेक्सन कौन सा लिया है ? मैंने कहा, केबल का कनेक्सन है, लेकिन यह बात आप क्यों पूछ रहे है ? वे बोले, मैंने भी केबल का ही कनेक्सन लगाया हुआ है लेकिन कोई भी अच्छी खबरे देने वाला चेनल उस पर नहीं आता! जिस भी न्यूज़ चैनल पर जावो, जिस भी अखबार को पढो, बस मार-धाड़, लूट, ह्त्या, दुर्घटना और घोटालो की ही खबरे सुनने और पढने को मिलती है! मैं यह जानना चाहता था कि कोई ऐसा चैनल अथवा अखबार भी है जो सिर्फ अच्छी खबरे देता हो ?

मैंने उनके अन्दर के दर्द को भाँपते हुए उन्हें समझाया, मिश्राजी, आप तो जानते ही है कि हमारे देश ने सदियों से सिर्फ लूट-खसोट, मार-धाड़ और कत्ल के सीन ही अधिक देखे है, इसलिए यहाँ के लोग यही सब देखने-सुनने के आदी हो चुके है, अब आप ही बताइये कि जहां सिर्फ ऐसे दर्शक और पाठक हों जिन्हें बस अप्रिय देखना और सुनना ही भाता हो, वहां भला सिर्फ अच्छी खबरे दिखाने वाला चैनल सर्वाविव कैसे करेगा ? अमूमन हर बात पर थैंक्यू बोलने वाले मिश्राजी, मेरी बात सुनकर थैंक्यू गोदियालजी कहकर धीमे कदमो से अपने घर को चल दिए, और मैं यही सोचता रहा कि काश, क्या सच में कभी ऐसा वक्त आयेगा, जब इस देश में सभी खबरी संचार माध्यम, अच्छी और सिर्फ अच्छी खबरे ही लोगो को दे रहे हो ??!!

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।