सुजाता के पिता शहर मे बिजली विभाग के दफ़्तर मे वरिष्ठ कलर्क थे ! सुजाता के दादा जी की मृत्यु के तुरन्त बाद ही गांव की जमीन-जायदाद बेचकर उन्होने उसी शहर मे एक घर खरीद लिया था ! परिवार मे कुल ६ सदस्य थे, दादी मा, सुजाता के माता-पिता और तीन भाई-बहन, यानि सुजाता और उसके दो भाई ! पिता बडे ही निठुर और स्वार्थी स्वभाव के इन्सान है, लिहाजा उनकी इस निठुरता का ही परिणाम था कि सुजाता की मां को समय पर उचित चिकित्सकीय सहायता न मिल पाने की वजह से करीब सात साल पहले उनका निधन हो चुका था ! मां की मृत्यु के बाद घरेलू कामों का बोझ नन्ही सुजाता, जो तीनो भाई-बहनो मे सबसे बडी थी,के कन्धो पर आन पडा था, किन्तु जब तक दादी मां थी, उसे घर पर थोडा सा सहारा था, और वह अपनी पढाई जारी रखे थी, एवम जैसे-तैसे कर उसने दसवीं पास कर ली थी! किन्तु दो साल पहले दादी मां भी चल बसी, और तब से सम्पूर्ण घर की जिम्मेदारी उसी को सम्भालनी पड रही थी! पिता ने उसे दसवी से आगे पढाने से साफ़ इन्कार कर दिया था !
सुजाता की हार्दिक इच्च्छा थी कि वह पढ-लिखकर अध्यापिका बनेगी, लेकिन निष्ठुर पिता के आगे उसकी इतनी भी हिम्मत नही हुई कि वह इस बात की जिद कर सके कि वह आगे पढ्ना चाहती है ! पिता दफ़्तर तथा दोनो भाई जब स्कूल चले जाते थे तो घर का सारा काम-काज निपटाकर, वह लिखने बैठ जाती थी ! उसे कविता लिखने का बडा शौक था, वह अपनी डायरी मे कवितायें एवम गजल लिखती और फिर बार बार उसे पढ़ती! एक दिन पडोस की एक आन्टी, जो कि मोहल्ले के ही एक स्कूल मे अध्यापिका थी, उससे मिलने आई! वह उस समय भी अपनी डायरी मे एक कविता लिख रही थी, छुपाने की कोशिश करते-करते भी आन्टी ने डायरी देख ली थी, और बातों ही बातों मे उसने उसे वह डायरी दिखाने को कहा ! उसकी कवितायें एवं गजल पढ्कर उस आंटी ने कहा, अरे तू तो बहुत सुन्दर लिखती है, इन्टर्नेट पर अपना ब्लोग क्यों नही खोल लेती ? उसने कहा, आंटी मुझे इन्टर्नेट के बारे मे खास जानकारी नही है, और आप तो जानती ही है कि ……, इतना कहकर वह खामोश हो गई! आंटी ने कहा, एक काम क्यों नही कर लेती, रोज शाम को चार बजे के आस-पास एक घन्टे के लिये मेरे घर आ जाया कर, मेरे घर मे कम्प्युटर और नेट दोनो है, मै तुझे सब कुछ सिखा दूंगी! उसने उत्साहित होकर कहा, ठीक है आन्टी, वैसे भी मै कम्प्युटर चलाना अपने स्कूल के दिनो मे सीख चुकी हूं!
बस फिर क्या था, उस दिन के बाद से उसका वह इन्टर्नेट पर ब्लॉग लिखना एक रुटीन सा बन गया था ! साथ ही उसे रोजाना थोडी देर के लिये मन बह्लाने का भी एक अच्छा खिलोना मिल गया था ! उसे यह मालूम नही था कि जो कुछ वह अपने ब्लोग पर डालती है, वह चिठठा जगत के माध्यम से ब्लोगर विरादरी की दुनियां मे तथा आम पाठको तक पहुंच जाता है! उस दिन तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहा, जब उसे टिप्पणी के रूप मे उसकी कवितावों की तारीफ़ का एक जबाब मिला ! घर आकर वह रात भर यही सोचती रही कि आखिर उस शख्स को उसके ब्लोग के बारे मे पता कहां से चला? और फिर तो उसकी हर कविता और गजल पर उस शख्स की प्रतिक्रियाऒ का सिलसिला लगातार चलने लगा था!
शरद ऋतु की एक सुहाने भोर को उसकी संयोग से हुई वह पहली भेंट, जिसे उसने उस वक्त कोई खास तबज्जो नही दी थी, वो पल आज अचानक, उस नई सेज पर औंधे मुह लेटी सुजाता की आखों मे किसी हसींन सपने की भांति तैरने लगे थे ! वह हर उस पल को बारिकी से याद करने की कोशिश कर रही थी, जब वह अपने छोटे भाई को स्कूल-बस मे चढाने के उपरान्त, ज्यों ही अपने घर के लिये मुडी थी,तो सामने उसके ठीक दो फूट दूरी पर एक सिल्वर कलर की सैन्त्रो कार रुकी थी ! कार की ड्राइविंग सीट की खिड्की का काला शीशा जब धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा, तो सुबह-सुबह अपने मोहल्ले के बाहर की उस निर्जन सडक पर अकेली सुजाता एकदम चौकन्नी हो गई थी ! कार की खिड्की का शीशा जब पूरा खुल चुका तो उसमे से करीब २६-२७ साल के सुन्दर-सजीले युवक ने खिड्की से गर्दन बाहर निकालते हुए सुजाता से पूछा: ए़क्सक्युज मी, ये मेन हाईवे पर पहुंचने के लिये कहां से जाना होगा? उस युवक के पूछ्ने पर सुजाता उसके थोडा और निकट जाकर उसे दिशा समझाने लगी कि आगे टी प्वाइंट पर पहुचकर दाई तरफ़.............. सीधी हाइवे पर पहुंचती है ! यह सब बताने के बाद उस युवक ने सुजाता के खुबसूरत चेहरे पर नजरें गडाते हुए, अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेरी और थैंक्यु सो मच, आइ एम संयोग पालीवाल, कहते हुए अपना दायां हाथ खिड्की से बाहर निकाल सुजाता की ओर बढाया! अप्रत्याशित इस पेशकश पर सुजाता सकपका सी गई और चेहरे पर शुन्यता लिये ही, एक बार आगे पीछे देखने के उपरांत उसने भी अपना हाथ युवक के हाथ की तरफ़ बढाते हुए धीरे से कहा, सुजाता ! उस युवक ने उसे मुस्कुराते हुए ’थैक्स अलौट’ कहकर गाडी आगे बढा दी थी, मगर सुजाता उसके इस अचानक हाथ पकडने से खुद को कुछ असहज सी मह्सूस कर रही थी! क्षणिक खडे रहने के बाद वह अपने घर की दिशा मे यह बड्बडाते हुए मुडी कि कमीना, होगा बिग्डैल किसी बडे बाप की औलाद, मुझे अकेला देख छेडने के लिये जानबूझ कर अनजान बन, रास्ता पूछ्ने का यह बहाना कर रहा होगा !
मगर फिर घर आकर वह उस घट्ना को एकदम भुला बैठी थी, और अपने घर के काम-काज मे जुट गई ! शाम को जब पुन: वह आन्टी के घर नॆट पर अपना ब्लौग चेक करने गई, तो उसके दिलो-दिमाग पर एक हल्का झट्का सा उस नई आई प्रतिक्रिया को पढ कर लगा, जिसमे उस शख्स ने दो शेर लिखे थे, शेर कुछ इस तरह के थे ;
हमारे आवारा दिल को राह चलते सरेआम, आज कोई ठग गया ,
यादों के किसी कोने मे हमारे भी, ख्वाब आशिकी का जग गया !
पता नही ये उनकी खुबसूरती का जादू है या मेरे दिल की लगी,
इसी कशमकश में हूँ कि अचानक मुझे ये रोग कैसा लग गया !!
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सुर्ख ख्वाबो को ऐ काश ! बहार मिल जाये,
टुकडो मे सही मगर सच्चा प्यार मिल जाये,
मै फिर दुआ मांगने लगू खुदा से कि हे खुदा,
मुझे थोडी सी और जिन्दगी उधार मिल जाये !
प्रतिक्रिया को पढकर न जाने उसे क्यों लग रहा था कि हो न हो, यह वही शख्स है, जो उसे सुबह रास्ते मे मिला था ! वह इन्हीं विचारों मे खोई अपने घर लौटी, तो अमूमन शाम छह बजे के बाद लौटने वाले उसके पिता, आज पांच बजे से पहले ही घर लौट आये थे ! और उसे घर मे न पाकर आग-बबूला हुए जा रहे थे ! जब वह घर के अन्दर पहुची तो लगे उसे खरी खोटी सुनाने, कि मै देख रहा हूं कि आजकल तेरे बहुत पंख लग गये है ! कल से तू घर से बाहर नही जायेगी, मैने तेरे लिये एक बडे घर का लड्का ढूंढ लिया है, और अब जल्दी तेरी शादी होने वाली है! पिता की बातें सुनकर वह एकदम घबरा गई थी, बहुत रोई, गिडगिडाई कि मै अभी बहुत छोटी हू, उस रात उसने खाना भी नही खाया, लेकिन पिता पर उसका कोई फर्क नही पडा ! उसके बाद से वह बस यही सोचती कि आखिर एक बडा घराना क्यों उनके घर से रिश्ता जोडना चाहता है जबकि वह पढी-लिखी भी खास नही है, जरूर कोई ऐसी-वैसी बात होगी, जो वे लोग उसका रिश्ता मांग रहे है ! मगर उसके पिता थे कि उसकी कोई भी बात सुनने को राजी न थे !
और फिर एक महिने बाद एक सादे समारोह मे उनके ८-१० रिश्तेदारो और जान-पह्चान वाले लोगो के सामने मन्दिर मे उसका हाथ एक अजनबी को थमा दिया गया, यह देखकर वह हैरान थी कि वह अजनबी और कोई नही बल्कि वही संयोग नाम का व्यक्ति था, जो उस दिन उसे कार मे से रास्ता पूछ रहा था ! संयोग की तरफ़ से भी शादी मे सिर्फ़ उसके चार दोस्त ही आये थे और कोई नही था! किसी अनहोनी की आशंका के बीच सुजाता अपने घर से विदा हुई ! वहां से सीधे अपने घर न ले जाकर संयोग उसे एक होटल मे ले गया जो उसने पहले से बूक करवाया हुआ था ! दुल्हा-दुल्हन को होटल मे छोड, संयोग के साथ आये दोस्त भी शाम को पार्टी में मिलने की बात कहकर विदा हो गये ! गाडी पार्क कर संयोग, सुजाता को होटल के एक कमरे मे ले गया, सुजाता अन्दर से बहुत डरी हुई थी और हो भी क्यों न, किसी ने भी अब तक उसे यह नही बताया था कि परम्परा से हटकर आखिर यह सब कुछ हो क्या रहा है ? कमरे मे पहुच संयोग ने सुजाता को बेड पर बिठाया और खुद सामने टेबल के ऊपर रखी पानी की बोतल को दो गिलासों मे उडेल कर एक गिलास सुजाता की तरफ़ बढाते हुए बोला, मुझे मालूम है कि तुम इस तरह खुद को बडा अनकम्फ़ोर्टेबल मह्सूस कर रही हो, वैसे तो मेरे बारे मे आपको आपके पिताजी ने थोडा बहुत बता ही दिया होगा फिर भी पानी पीकर थोडा रेले़क्स हो लो, फिर मै पूरी बात समझाता हू !
थोडी देर तक कमरे मे सन्नाटा छाया रहने के बाद सुजाता के बगल मे बैठे संयोग ने खामोशी को तोडते हुए बोलना शुरु किया ! तुम सोच रही होंगी कि यह किस तरह की शादी है ? न कोई बैन्ड, न कोई धूम धडाका, न कोई घर, न परिवार और न कोई नाते-रिश्तेदार ! मै पेशे से इन्जीनियर हूं और यहां बिजली विभाग मे एग्जीक्युटिव इंजीनियर के पद पर कार्यरत हू ! पहले मेरी पोस्टिंग दूसरे शहर मे थी, लेकिन अभी दो महिने पहले ही मैने अपनी पोस्टिंग यहां करवाई ! मेरा परिवार एक पहाडी कस्बे मे ही रह्ता है और हालांकि मेरे पिता वहां के एक प्रमुख बिजनेस मैन है मगर वे लोग बहुत ही पुराने खयालातो के लोग है ! मेरी जन्मपत्री के हिसाब से पंड्त लोगो ने मेरे परिवार को बताया कि मेरे ग्रह उनके लिये ठीक नही है और अगर वे लोग मेरी शादी करेंगे तो मेरे पिता की जल्दी ही मौत हो जायेगी ! लेकिन अगर मैं अपनी मर्जी से खुद कहीं अलग जाकर शादी करता हूं तो फिर उनके लिये इसमे कोई अपशगून नही है ! इसी के चलते मेरे परिवार वालों ने मुझे खुली छूट दे रखी है कि मै अपनी पसन्द और मर्जी से शादी कर सकता हूं ! हालांकि पहले मैने यह तय किया था कि मै जिन्दगी भर कुंवारा ही रहुगा, मगर यहाँ सब अपनी मर्जी का कहाँ होता है, तुम मिली तो ख्यालात ही बदल गये !
अब आशंकित सुजाता ने, जो अब तक खामोश बैठकर ध्यान से संयोग की बातें सुन रही थी, चुप्पी तोडते हुए पूछा कि आपने उस दिन सड्क पर मुश्किल से दो मिनट की मुलाकात मे मुझमे ऐसा क्या देख लिया कि आपके ख्यालात ही बदल कर रह गये? संयोग थोडा सा मुस्कराया और फिर उसने उसे ब्लॉग की वह सारी कहानी बताते हुए कहा कि दरसहल मुझे भी लेखन का शौक है, और जब मैने चिठ्ठा जगत पर तुम्हारा ब्लोग पढा तो मै तुम्हारी लेखनी का दीवाना हो गया था, और उस दिन जब मै ब्लोग पर मिले तुम्हारे पते को ढूढ्ते हुए तुम्हारे इलाके मे एक दोस्त के यहां रात को रुका था, और उसके यह बताने पर कि तुम रोज सुबह अपने भाई को स्कूलबस मे चढाने अमूक स्थान पर जाती हो, तो मैने तुम्हारी एक झलक पाने के लिए वह सारा नाट्क किया था, मुझे तब अपनी मंजिल और आसान नजर आने लगी, जब मुझे मालूम पडा कि तुम्हारे पिता भी हमारे ही विभाग मे कार्यरत है ! मैने जब उन्हे सारी स्थिति समझाई तो वे तुरन्त तैयार हो गये! संयोग की बाते सुनकर मानो सुजाता की खुशी का ठिकाना न था, उसके मन मे संयोग के लिये प्यार किसी सितार के एक-एक तार की तरह बज उठे थे! उसे लग रहा था कि मानो उसके पखं उग आये हो और वह अभी उड जायेगी! उसे विस्वास नहीं हो रहा था कि सचमुच उसकी किस्मत ने इतनी ख़ूबसूरत करवट बदली है अथवा वह महज एक सपना देख रही है! उसने तो सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि उसे जीवन साथी के तौर पर इतना सुन्दर और सर्वगुण संपन्न साथी मिल जाएगा! उसकी अंतरात्मा इस उपलब्धि के लिए बार-बार एक ही वाक्य दोहरा रही थी, 'थैंक्यू आंटी, थैंक्यू ब्लॉग, थैंक्यू चिठ्ठा-जगत' !