Sunday, April 4, 2010

जनगणना मे यह जानकारी भी ली जानी चाहिये थी…

जैसा कि सभी जानते है कि देश में जनगणना का काम एक अप्रैल से शुरु हो चुका है। इस बार इस जनगणना मे भरे जाने वाले फ़ार्म मे एक आम नागरिक के जीवन से समबन्धित बहुत सी बातों की जानकारी लेने का प्रयासकिया जा रहा है। साथ ही मगर मेरा यह भी मानना था कि क्या ही अच्छा होता कि सरकार यह भी इस जन गणना के माध्यम से जानने का प्रयास करती कि दूसरों को बडे-बडे उपदेश देने वाले हमारे इन भ्रष्ठ प्रजाति के प्राणि की मलीन बस्तियों से देश रक्षा का जज्बा लेकर राजनीतिक नेतावों के कितने बच्चे पिछले दस सालों मे सेना मे गए?



मातृ-रुंधन
चाहे गुहार समझो मेरी,
या समझ लो इसे दृढ ऐलान,
न दूंगी अब एक भी सपूत अपना
तुम्हें करने को देश पर बलिदान ।

एक तरफ़ तो सेना मे
अफ़सरों की कमी का रोना रो रहे,
दूसरी तरफ़ उन्हे घटिया हथियार और
निरन्तर मिग दुर्घटनाओं मे खो रहे।

देश मे व्याप्त लूट-भ्रष्ठाचारी का
कर न दोगे जब तक निदान ,
न दूंगी तब तक एक भी सपूत अपना
तुम्हें करने को देश पर बलिदान ।

अपना तो तुम्हारा कुटिल,कपटी, कपूत
नित हर रहा द्रोपदी के चीर को,
और पेंशन को भी मोह्ताज कर दिया,
देश रक्षा करने वाले वीर को ।

सीख न लो जब तक करना
सह्रदय से वीरों का सम्मान,
मैं न दूंगी एक भी सपूत अपना
करने को तुम्हें देश पर बलिदान ।

8 comments:

  1. आप सही कह रहे हैं। इन भ्रष्‍ट नेताओं के वारिसों के पेशे और उनकी आय की सच्‍ची गणना हो तो इनका नकाब ही उतर जाए।

    ReplyDelete
  2. सच कह रहे हैं ... नेता लोग सेवा नही अपनी सेवा करने के लिए राजनीति में आते हैं ... राष्ट्र की सेवा के नाम पर भी बस खाना ही जानते हैं ... ये तो बलिडानों पर भी राजनीति करने में नही पीछे रहता ....

    ReplyDelete
  3. बड़े बाप के बेटे भला कहाँ कष्ट उठाया करते हैं।
    शहीद होने के लिए तो जनता है ना।

    ReplyDelete
  4. कविता की भावना वंदनीय है
    सही बिंदु पकड़ा है आपने

    ReplyDelete
  5. जनगणना में

    गिने जाएंगे जन

    न कि दुर्जन ?

    ReplyDelete
  6. पोस्ट के साथ मातृ-रुदन भी बहुत सटीक रहा!

    ReplyDelete

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।