विपक्ष के कटौती प्रस्तावों के मामले में मायावती ने केंद्र सरकार को अपना समर्थन देकर कह लो या फिर यों कह लो कि केंद्र द्वारा मायावती का समर्थन लेकर, मौजूदा सरकार ने यह जतला दिया है कि वह कितनी वेवश और लाचार है! राजनीतिवाजों द्वारा हमारे इस लोकतंत्र का मजाक बना के रख दिया गया है ! फर्ज कीजिये कि देश के विभिन्न भागों के दस्यु गैंग , तस्कर, माफिया अपने छोटे-छोटे राजनैतिक दल बनाकर, अपने-अपने इलाकों में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर प्रत्येक गैंग अपने दस-दस सदस्यों को जिताकर लोकसभा में भेजते है, और वहाँ पहुंचकर सभी गैंग मिलकर एक मिली-जुली सरकार बना डालते है, तो बन गई न दस्यु, डाकुओ की सरकार, होगया न लोकतंत्र का बंटाधार ! इसके बाद कोई भला कुछ कर सकता है ? कुछ नहीं, बड़े शान से, रौब और अधिकार के साथ ये गैंग देश के खजाने की चाबी लेकर माल पर आराम से हाथ साफ़ कर सकते है, बिना किसी रोकटोक के! यही है आज के इस दौर में लोकतंत्र की सच्चाई! जिनका अपना खुद का कोई ईमान न हो, वो भला देशवासियों को ईमान पर चलने की सलाह किस मुह दे सकते है? २० से २२ जुलाई २००८ को दिल्ली में यूपीए सरकार के पिछले दौर में अमेरिका से परमाणु करार के बहाने सरकार बचाने के लिए जो कुछ हुआ, वह किसी से छुपा नहीं था, और वही आज फिर संसद में विपक्ष के कटौती प्रस्तावों को लेकर हो रहा है ! कटौती प्रस्ताव लोक सभा के सदस्यों के हाथ में एक वीटो पावर है, जिसका इस्तेमाल कर वे वित्त विधेयक अथवा बिल पर चर्चा में हस्तक्षेप कर सकते है और इस कटौती प्रस्ताव को सदन में सरकार के शक्ति परीक्षण के औजार के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते है ! अगर सरकार इस पर बहुमत नहीं जुटा पाती है तो उसे इस्तीफ़ा देने के लिए बाध्य किया जा सकता है! और इस बात से यह साफ़ जाहिर होता है कि यह सरकार कितनी दिशा और सिद्धांतविहीन है, और उसे डर है कि कहीं वे बहुमत का समर्थन न जुटा पाए तो ? इसीलिए जो मिल जाए उसे गले लगा लो, कभी मुलायम सिंह दोस्त बन जाते है, वही मुलायम सिंह जिनके शासन काल में इनके युवराज उत्तर प्रदेश में घूम-घूमकर उनकी खामियां बता रहे थे ! और आज फिर वही सब मायावती के साथ भी दोहराया जा रहा है! क्या यही इनकी उच्चकोटि की राजनीति के मापदंड रह गए है?
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
Tuesday, April 27, 2010
राजनीति का गड़बड़ झाला !
विपक्ष के कटौती प्रस्तावों के मामले में मायावती ने केंद्र सरकार को अपना समर्थन देकर कह लो या फिर यों कह लो कि केंद्र द्वारा मायावती का समर्थन लेकर, मौजूदा सरकार ने यह जतला दिया है कि वह कितनी वेवश और लाचार है! राजनीतिवाजों द्वारा हमारे इस लोकतंत्र का मजाक बना के रख दिया गया है ! फर्ज कीजिये कि देश के विभिन्न भागों के दस्यु गैंग , तस्कर, माफिया अपने छोटे-छोटे राजनैतिक दल बनाकर, अपने-अपने इलाकों में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर प्रत्येक गैंग अपने दस-दस सदस्यों को जिताकर लोकसभा में भेजते है, और वहाँ पहुंचकर सभी गैंग मिलकर एक मिली-जुली सरकार बना डालते है, तो बन गई न दस्यु, डाकुओ की सरकार, होगया न लोकतंत्र का बंटाधार ! इसके बाद कोई भला कुछ कर सकता है ? कुछ नहीं, बड़े शान से, रौब और अधिकार के साथ ये गैंग देश के खजाने की चाबी लेकर माल पर आराम से हाथ साफ़ कर सकते है, बिना किसी रोकटोक के! यही है आज के इस दौर में लोकतंत्र की सच्चाई! जिनका अपना खुद का कोई ईमान न हो, वो भला देशवासियों को ईमान पर चलने की सलाह किस मुह दे सकते है? २० से २२ जुलाई २००८ को दिल्ली में यूपीए सरकार के पिछले दौर में अमेरिका से परमाणु करार के बहाने सरकार बचाने के लिए जो कुछ हुआ, वह किसी से छुपा नहीं था, और वही आज फिर संसद में विपक्ष के कटौती प्रस्तावों को लेकर हो रहा है ! कटौती प्रस्ताव लोक सभा के सदस्यों के हाथ में एक वीटो पावर है, जिसका इस्तेमाल कर वे वित्त विधेयक अथवा बिल पर चर्चा में हस्तक्षेप कर सकते है और इस कटौती प्रस्ताव को सदन में सरकार के शक्ति परीक्षण के औजार के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते है ! अगर सरकार इस पर बहुमत नहीं जुटा पाती है तो उसे इस्तीफ़ा देने के लिए बाध्य किया जा सकता है! और इस बात से यह साफ़ जाहिर होता है कि यह सरकार कितनी दिशा और सिद्धांतविहीन है, और उसे डर है कि कहीं वे बहुमत का समर्थन न जुटा पाए तो ? इसीलिए जो मिल जाए उसे गले लगा लो, कभी मुलायम सिंह दोस्त बन जाते है, वही मुलायम सिंह जिनके शासन काल में इनके युवराज उत्तर प्रदेश में घूम-घूमकर उनकी खामियां बता रहे थे ! और आज फिर वही सब मायावती के साथ भी दोहराया जा रहा है! क्या यही इनकी उच्चकोटि की राजनीति के मापदंड रह गए है?
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यह तो साफ़ है कि यह सरकार कितनी साफ़ सुधरी है.... लेकिन लोग फ़िर बार बार इसे ही क्यो चुनती है.....जब हम बार बार चोर लुटेरो को ही पहरेदार रखेगे ओर फ़िर अन्याय की दुहाई दे कुछ जचतां नही.
ReplyDeleteगोदियाल जी क्यों आप झमेले पे पड़ रहे जो जी!कल अगर ऐसा सच में हो गया तो कोई ये नहीं सोचेगा कि ऐसा होने के असली कारण क्या रहे होगे,बोलेंगे गोदियाल जी इसके "मास्टर माइंड" है!उनके ब्लॉग से ही प्रेरणा ल गयीथी!
ReplyDeleteकुंवर जी,
राजनीति और जंग में सब ज़ायज़ है!
ReplyDeleteकभी भी समीकरण बदल सकते हैं!
शास्त्री जी से सहमत।
ReplyDeleteराजनीति है ही ऐसी।
ReplyDeletekunwar ji ki rai se sahmat hu
ReplyDeleteaap kyo is gandi cheez(poltics )ko apne naye ideas de rahe h
tension free ho jao godial sahab
ye india h yaha kuch bhi ho sakta hain
यही तो राजनीति है...चुनाव प्रक्रिया भी इन सबसे प्रभावित रहती है...कोई पारदर्शिता नहीं होती
ReplyDeleteआजकल इसी तरह कि मिली जुली सरकारें ही ज्यादा चलती हैं।
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