Sunday, April 18, 2010

कुदरत और इंसान !

शुरू करने से पहले आप सभी मित्रों से अनुरोध करूंगा कि इस गोगूल अनुवाद की सुविधा के बारे में आप गोगुल को सूचित करें कि यह एक निहायत घटिया किस्म की सेवा गूगुल द्वारा प्रदत है , क्योंकि यह अक्सर एक पूरे लिखे लेख की भी ऐंसी-तैंसी कर देता है ;
there is a probleM
send or don't send option दिखाकर !

मेरा आज एक लंबा-चौड़ा आलेख इस ट्रांसलिटरेशन ने मिट्टी में मिला दिया, अगर ये गूगुल वाले ठीक से कोई सर्विस प्रोवाइड नहीं कर सकते तो दूकान क्यों खोले बैठे है ?

अब मुख्य बात पर आता हूँ ; आज जब सुबह-सबेरे "अपनत्व ब्लॉग" पर एक ख़ूबसूरत सी कविता पढी ज्वालामुखी विस्फोट के बारे में , तो दिल किया कि अपने कटु अनुभवों को भी आप के साथ शेयर करूँ ! यूँ तो आज इंसान बहुत बड़ी-बड़ी बाते करता है, अमेरिका अपने को सुपर पावर कहता है, मगर हकीकत है, आइस लैंड का ज्वालामुखी ! सब बेबस !!!! मेरे एक करीबी जानने वाले जो कि कनाडा के नागरिक है(एन आर आई ), ओंटोरियो प्रांत के मिस्सिस्सुगा में रहते है और भारत में अपना बिजनेस करते है , उनकी बेटी , जो कि लन्दन में नौकरी करती है और अकेली रहती है , की शादी २३ अप्रेल को तय थी ! माता-पिता अपना जरूरी काम पिछली विजिट में निपटा आये थे , अत:: इस बार १८ अप्रेल की टिकिट वर्जिन अटलांटिक से बुक की थी ! मगर अपने एक असभ्य मेल के मार्फत वर्जिन अटलांटिक ने अपने यात्रियों को सूचित किया कि १९ अप्रैल तक की उनकी सारी फलाईट आइसलैंड ज्वालामुखी के धुंए की वजह से अवरुद्ध हो चुकी हैं ! इस खबर के बाद उन बेचारे माँ-बाप का दुःख देखते ही बनता था ! इस बाबत जो अनुभव अपना रहा, वह यह है कि विदेश से पर्यटन के लिए आये नागरिकों के पास से पैसा ख़त्म हो गया, वे होटल छोड़ एयर पोर्ट पर रात गुजारने को मजबूर है ! यह बात किसी से छुपी नहीं कि पिछले पांच दिनों से लाचार यात्री परेशान है , मगर अपना एक विमान उन दिनों की फ्लाईट के भी फर्स्ट क्लास के कीमत यात्रितों से वसूलने में लगा है , जिन दिनों की सारी फ्लाइटें केंसल हो चुकी ? एक दूसरी खबर की ओर रुख करें, तो पाते है कि यूरोप में फलाईटों की दिक्कत के बाद लोग अधिकांशतः इरो ट्रेन से यूरोप में सफ़र कर रहे है , साथ ही ठण्ड में मुफ्त में यात्रियों को कॉफ़ी मुहैया करा रहे है , यही है फर्क !!!!!!!

12 comments:

  1. इंसान बहुत बड़ी-बड़ी बाते करता है

    ye to insaan ki fitrat hai..
    aur kuch nahi to badi badi baten to kar hi sakta hai....

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  2. प्रकृति के आगे सभी बेबस हैं।

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  3. इस कूदत की चेतावनी को हम कब समझेंगे ... बाकी जहाँ तक सर्वीस की बात है जिसका जैसा ज़ोर चल रहा है वो वैसा कर रहा है ... अमीरात एरलाइन्स सुना है होटल दे रही है ट्रॅन्सिट यात्रियों को दुबई में ... वहीं दूसरी कुछ भी नही कर रहीं ...

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  4. एक दूसरी खबर की ओर रुख करें, तो पाते है कि यूरोप में फलाईटों की दिक्कत के बाद लोग अधिकांशतः इरो ट्रेन से यूरोप में सफ़र कर रहे है , साथ ही ठण्ड में मुफ्त में यात्रियों को कॉफ़ी मुहैया करा रहे है , यही है फर्क !!!!!!


    सही है, मानवीयता इसी को कहते हैं...

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  5. सचमुच बहुत दुखद हालात हैं। सोच कर ही सिरहन सी होती है ।

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  6. बहुत से लोग फंसे हैं फ्लाईट केन्सिलेशन में..स्थितियाँ परेशानी वाली हैं.

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  7. स्थिति चिन्ताजनक है मगर ऐसे हालातों मे भी कुछ असमाजिक तत्व मानवीयता को शर्मसार कर देते हैं …………॥सच यही फ़र्क है।

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  8. कुदरत के कहर के आगे क्या अमरीका क्या रूस क्या इंग्लैंड और क्या चीन । मगर इनके प्रभाव से उत्पन्न परिस्थितियों में ही असली परख होती है है कई बातों की । जैसे कि ये जो घटियापन कर रही हैं एयलाईंस कंपंनियां जिनके बारे में बताया आपने । अफ़सोसनाक है सब कुछ
    अजय कुमार झा

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  9. kudrat ke aage insaan kuch nahi ker sakta...ye sach hai.

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  10. मगर अपना एक विमान उन दिनों की फ्लाईट के भी फर्स्ट क्लास के कीमत यात्रितों से वसूलने में लगा है लेकिन यह उडेगा केसे ओर युरोप मै उतारेगा कहां?
    वेसे ब्लांग जगत ओर कोई भारतीया या भारतीया परिवार मुनिख ऎयर पोर्ट पर फ़ंसा हो तो मुझे बताये... मै उन्हे बाइज्जत अपने घर पर एयर पोर्ट से लाऊगां ओर रखुंगा जब तक सब नार्मल नही हो जाता, ओर फ़िर उन्हे एयर पोर्ट भी छोड आंऊगा सब मुफ़्त मै.
    अगर किसी को जरुरत हो तो मुझे मेल करे मै अपना फ़ोन ना० ओर अपना पता जल्द ही पोस्ट कर दुंगा.

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  11. आपकी इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा यहाँ भी तो है!
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_19.html

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  12. गूगल ट्रांसलेट सुविधा बहुत ही उपयोगी सुविधा है। बस यह समझने की जरूरत है कि इसे किस काम के लिये उपयोग करना चाहिये और किसके लिये नहीं।

    जापानी भाषा में लिखे किसी २००० शब्दों के लेख को मोटामोटी समझना हो तो गूगल एक वरदान से कम नहीं है। एक मिनट में वह 'ऐसा' अनुवाद दे देता है जिसको उस विषय की सामान्य जानकारी रखने वालपढ़कर समझ जाता है कि जापानी में क्या कहने की कोशिश की गयी है। यही काम किसी अनुवादक से कराना होता तो महीनों लग सकते हैं। सामान्य आदमी को जापानी अनुवादक मिलना असम्भव भी हो सकता है। पैसा भी खूब बर्बाद होगा। हो सकता है कि पहाड़ खोदने के बाद चूहिया निकले और सारा समय, पैसा और मेहनत बर्बाद हो जाय।

    हाँ, किसी साहितिक कृति (कविता आदि) के अनुवाद के लिये इसका उपयोग न किया जाय। अभी इस स्तर का होने में दशकों लग सकते हैं।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।