Wednesday, April 21, 2010

ये है विश्व बंधुत्व की एक और मिसाल !



हमारा धर्म सर्वश्रेष्ठ है, वह हमको शान्ति और विश्व बंधुत्व (धर्म विशेष का ) का मार्ग दिखलाता / सिखलाता है, यही एक सच्चा धर्म है, बाकी सब धर्म झूठे है, तुच्छ है, जो भी इस धर्म को अपनाता है, ऊपरवाला उसे सीधे ऊपर अपने पास ही नैसर्गिक सुखों को भोगने के लिए बुला भेजता है....इत्यादि, इत्यादि, ये दावे तो अक्सर आप लोग भी रोज ही किस्से-कहानियों और महापुरुषों के उपदेशों में भी पढ़ते-सुनते होंगे। कल ही ईरान में तो ऐसे एक महापुरुष जोकि आगे चलकर धर्मान्धो के पथ-प्रदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है, ने यहाँ तक दावा कर डाला कि औरतों के ठीक से कपडे न पहनने से भूकंप आते है। अब आपको इस ख़ास विश्व बंधुत्व की एक और घिनोनी मिसाल दिखाते है कि किस तरह जहां ये बहुसंख्यक होते है, और जब इन्हें किसी और धर्म का बकरा हलाल करने हेतु नहीं मिलता, तो ये जाति और रंगभेद का सहारा लेकर अपने ही धर्म के बकरे को हलाल कर डालते है।

अमेरिका, रूस और चीन के लिए सामरिक दृष्ठि से महत्वपूर्ण किर्गिज़स्तान, जोकि पहले सोबियत संघ का एक हिस्सा था, आज मध्य एशिया में स्थित एक लोकतांत्रिक देश है। चारों तरफ जमीन और पहाड़ियों से घिरे इस देश की सीमा उत्तर में कज़ाख़िस्तान, पश्चिम में उज़्बेकिस्तान, दक्षिण पश्चिम में ताजिकिस्तान और पूर्व में चीन से मिलती है। किर्गिज़स्तान का शाब्दिक अर्थ है, चालीस जनजातियों का समूह। यों तो अपने देश में भी आजादी के बाद से ही लोकतंत्र के अनुभव बहुत ज्यादा उत्साहवर्धक नहीं रहे है, लेकिन जैसा की अमूमन देखा गया है कि मुस्लिम बहुल देशों में तो अक्सर लोकतंत्र बिलकुल भी सफल नहीं रहा है। जिसके कि बहुत से कारण है, लेकिन जो प्रमुख कारण है, वह है, रूढ़िवादिता और आजादी का सही इस्तेमाल न कर पाना।


अभी हाल में सत्तारूढ़ दल की बेरोजगारी, महंगाई के प्रति उदासीनता, भ्रष्टाचार और कुशासन से त्रस्त जनता की भावनाओं का फायदा उठाकर वहाँ के विपक्ष ने राष्ट्रपति कुर्मानबेक बाकियेव की सत्ता पलटकर उसपर अपना कब्जा जमा लिया था,जिसमे कि अनेक लोग मारे गए थे। विगत सोमवार को किर्गिज़स्तान के कर्गिज में जातीय हिंसा, लूटमार और आगजनी की घटना में कई लोग मारे गए । बहुसंख्यक कर्गिज मूल के लोगो ने चुनचुनकर अल्पसंख्यक तुर्क लोगो का एक पूरा गाँव ही जला डाला। इस आक्रमण के बाद मयेव्का गाँव के बाकी लोग तो भाग गए, मगर एक बुजुर्ग तुर्क अल्प्संखयक अपने दोमंजिला घर को लुटेरों से बचाने का प्रयास करता रहा। लेकिन बहशीपन की हद देखिये, आक्रमणकारियों ने न सिर्फ उसे चाकुओं से गोंद डाला, वरन उसे मारने के बाद उनके नकली दांत भी निकालकर ले गए, क्योंकि उनपर सोने की परत चढी हुई थी । तो यह है इस विश्व बंधुत्व का एक और जीता-जागता उदाहरण। साथ ही एक बात और कहना चाहूँगा कि खैर, जब तक इस देश में हिन्दू बहुसंख्यक है, शायद किर्गिज़स्तान वाली नौबत तो यहाँ नहीं आयेगी, मगर जिसतरह इस लोकतंत्र में भी सरकारे महंगाई, भुखमरी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता की अनदेखी कर मनमानी कर रही है, तो उन्हें भी यह नहीं भूलना चाहिए कि जनता के सब्र की भी एक सीमा होती है।

लड़ रहा किसके लिए ?
कभी सोचा कि वो है क्या, जो तुझे मिल पायेगी,
क्या स्वर्ग, क्या जन्नत,
अरे मूर्ख सारी तमन्ना धरी की धरी रह जायेगी !
सच तो ये है कि मैं चंद लकड़ियों
और तू दो गज जमीन को तरसेगा,
जब ये जिन्दगी ख़त्म होने के कगार पर आयेगी !!

छवि Reuters से साभार ! अंगरेजी में विस्तृत खबर आप यहाँ पढ़ सकते है

10 comments:

  1. आपने घिनोनी मिसालें बहतर ढंग से पेश की, परन्‍तु पाठक वह बात भी पढना चाहेंगे उसका लिंक आपने न दिया , इमान्‍दारी का तकाजा तो यही था दोनों तरफ की बात देते

    भूकंपों की अधिकता के कारण जो धर्मान्धो के पथ-प्रदर्शक ने बताये
    http://hamarianjuman.blogspot.com/2010/04/saleem-khan.html

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  2. पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिम हिम उपल कृषी दलि गरहीं॥

    जैसे ओले खेती का नाश करके स्वयं भी गल जाते हैं वैसे ही दुष्टजन दूसरों का काम बिगाड़ने के लिये खुद का नाश करन लेने से भी नहीं चूकते।

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  3. मुस्लिम देशों में लोकतंत्र सफल हो भी नहीं सकता.... क्यूंकि लोकतंत्र आज की ज़रूरत है.... और आज का कॉन्सेप्ट है... और मुसलमानों को आदि काल में जीने की आदत ऊपर से अल्लाह ने दी है.... अल्लाह चाहता ही नहीं कि मुसलमाँ जेहनी तौर तरक्की करें....तो जब अल्लाह मेहरबान तो सारे मुसलमाँ पहलवान.... यह और ऐसे मुसलमाँ ख़ुदा की आड़ में सब कुछ गलत कर रहे हैं.... इन्हें शिक्षा की बहुत ज़रूरत है.... और सबसे बड़ी बात यह कि अगर मुसलमाँ कुर-आन ही सही से पढ़ लें और उसको समझ लें.... तो यह कौम सुधर जाएगी .... और शायद ही कोई मुसलमान कुर-आन तो जानता हो.... अगर जानता होता तो दूसरे धर्मों को आदर देता.... और यह मार-काट नहीं मची होती.... मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ...की इस दुनिया में किसी भी मुसलमान को कुर-आन की मालूमात नहीं है.... सही से.... सिर्फ लम्बी-लम्बी बहसते हैं....ख़ुद इस्लामिक देशों को भी कुछ नहीं मालूम है.... और अरब देश जो सिर्फ ऐय्याशी में बिजी रहता है.... वो क्या नैतिकता की बात करेगा... और मैं इसको साबित भी कर सकता हूँ.....

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  4. गोदियाल जी आपने और महफूज भाई ने हमारे कहने लायक कुछ छोड़ा ही नहीं!

    कुंवर जी,

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  5. गांभीर्य का परिचय।

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  6. आईये... दो कदम हमारे साथ भी चलिए. आपको भी अच्छा लगेगा. तो चलिए न....

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।