जैसा कि आप जानते ही है कि हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात यानि यूएई की शरिया कोर्ट ने 28 मार्च २०१० को 17 भारतीयों को फांसी की सजा सुनाई है। 17 भारतीयों को एक पाकिस्तानी नागरिक की हत्या के जुर्म में मौत की सज़ा सुनाई गई है। कोर्ट ने ये फ़ैसला 2009 के एक मुक़दमे में सुनाया है। 17 भारतीयों पर आरोप था कि उन्होंने शराब के ग़ैर क़ानूनी कारोबार पर अपना क़ब्ज़ा जमाने के लिए एक झगड़े में एक पाकिस्तानी नागरिक की लोहे की छड से मारकर हत्या कर दी थी।यूएई में पहली बार अदालत की ओर से किसी एक मामले में इतने लोगों को मौत की सज़ा दी गई है। वर्ष 2009 के जनवरी में शारजाह के अल-सजाह नामक स्थान पर भारतीयों और पाकिस्तानी नागरिकों के बीच ग़ैर क़ानूनी शराब के धंधे को लेकर वर्चस्व की लड़ाई हुई थी। इस लड़ाई में पाकिस्तानी नागरिक पर लोहे की छड़ से हमला किया गया था, ये लोग वहां मज़दूरी करने गए थे।फैसला आने के बाद सरकार जागी जरूर, मगर देर से। इससे पहले वहाँ स्थित सरकारी दूतावास क्या कर रहा था, क्या कभी उन्होंने इन लोगो की सुद लेने की कोशिश की? मुजरिम भले ही किसी भी धर्म-सम्प्रदाय का हो उसे देश के कानूनों के मुताविक सजा मिलनी ही चाहिए, मगर साथ ही सजा सुनाने वाले को भी मापदंडो का बिना भेद-भाव अनुसरण करना चाहिए।
ये तो थी खबर संक्षेप में, और इसे आप संक्षेप खबर न कहकर यूँ भी कह सकते है कि मीडिया ने ( प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक ) बस यही खबर फैसला आने के कई दिनों तक अपने-अपने माध्यमो पर चलाई थी, मगर किसी ने यह जुर्रत न समझी कि खबर के साथ-साथ यह भी बता दें कि सजा पाने वाले लोग कौन से धर्म के, और किस प्रान्त के रहने वाले थे ? सेक्युलर मीडिया अगर ऐसा बता देता तो इनकी सफ़ेद कमीज और हरी पैंट पर साम्प्रदायिकता का दाग नहीं लग जाता , इनके मातहतों पर वोट-बैंक नाराज नहीं हो जाता। अभी दो दिन पहले इन्होने अपने अखबारों के मुखपृष्ठ पर एक खबर प्रमुखता से छापी थी कि अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एक कश्मीरी छात्र ने सुप्रीम कोर्ट में, जहां कि क़ानून में अध्ययनरत छात्रों का एक दल घूमने गया था, वहाँ उसने अपनी धार्मिक टोपी सिर से उतारने से न सिर्फ मना किया, बल्कि इसपर सवाल उठाते हुए हंगामा भी खडा कर दिया। जबकि यह कोर्ट की परम्परा रही है कि अदालत के अन्दर टोपी उतार कर जाते है, और उसी परम्परा के आधार पर वहाँ मौजूद सुरक्षाकर्मी ने उसे टोपी उतारने को कहा था।उस खबर को प्रमुखता देने का उद्देश आप खुद समझ सकते है , सवाल यह नहीं है कि टोपी उतारना सही है अथवा नहीं, सवाल यह है कि आपको समाज में मौजूद शिष्टाचार का पालन करना चाहिये, लेकिन नहीं वहाँ भी इन्हें अपना धर्म ही नजर आया। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि जहां आपको इज्जत दी जा रही है, वहां आप इस तरह का नाजायज फ़ायदा उठाते है।
जैसा कि अब तक आपलोग भी जान चुके होंगे कि इस १७ सदस्यीय फांसीयाफ्ता दल में लगभग सभी युवक हिन्दू और सिख है और ज्यादातर पंजाब प्रांत के है। एक नासमझ बच्चा भी क़त्ल की पृष्ठभूमि को देखकर अदालत के निर्णय पर उंगली उठा सकता है। क्योंकि निर्णय में बहुत से खोट है। इस देश में ये लोग गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी से इन्साफ मांग रहे है, लेकिन अपनी गिरेवान में झांकना भूल जाते है कि इनके शरिया कानूनों का ये खुद ही किस तरह मखौल उड़ाते है। जुबान पर अल्लाह का नाम रखेंगे और दिनभर में ह़जार झूठ बोलते रहेंगे। कसाब के मामले में पाकिस्तान की अदालतों का कपट पूर्ण व्यवाहार जग-जाहिर है, कि किस तरह उन्होंने मुंबई दंगो के मास्टर माइंड को बचाया । बाकी सब कुछ अगर भूल भी जाइए तो ये लोग अपनी कुरआन की और शरिया कानूनों की बार-बार दुहाईया देते हुए कहते है कि उसके मुताविक जो व्यक्ति मुसलमान है, उसके लिए शराब और उससे सम्बंधित कारोबार ही इस्लाम के मुताबिक हरामहै; ( यहाँ यह भी स्पष्ट कर दूं कि मैंने अपने इस लेख में कहीं भी इस्लाम की बुराई नहीं की है क्योंकि मुझे धर्म से कोई शिकायत नहीं है, मैं बुराई कर रहा हूँ उसे मानने वालो की, उनके पक्षपातपूर्ण व्यवहार की )
quran:
ऐ ईमान लानेवालो! ये शराब और जुआ और देवस्थान और पाँसे तो गन्दे शैतानी काम है। अतः तुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो॥5. अल-माइदा 90॥
शैतान तो बस यही चाहता है कि शराब और जुए के द्वारा तुम्हारे बीच शत्रुता और द्वेष पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद से और नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम बाज़ न आओगे?॥91॥
अब मजेदार बात यह है कि जिस पाकिस्तानी को इन ५०-६० हिन्दू और सिख मजदूरों ने पीटा था ( जानकारी के मुताविक उन्होंने उसे मारने के उद्देश्य से नहीं पीटा था, ५०-६० लोगो के हंगामे के बीच कैसे और कौन उस पाकिस्तानी के सिर पर लोहे की छड मार गया, उन १७ युवकों को भी नहीं मालूम, उन्हें तो सिर्फ वहां की पुलिस ने घटना के बाद घटनास्थल से गिरफ्तार किया था, और वह पाकिस्तानी बाद में अस्पताल में मरा था) वह पाकिस्तानी शराब के गैरकानूनी धंधे में लिप्त था, यानी इस्लाम के मुताविक हराम का काम कर रहा था, तो अगर फैसला सुनाने वाला भी सच्चा मुसलमान था तो उसे तो इन १७ भारतीयों को फांसी की सजा सुनाने के बजाये इनाम देना चाहिए था कि उन्होंने एक इस्लाम के हराम को ही हलाल कर दिया, क्योंकि वह पाकिस्तानी तो इस्लाम का सबसे बड़ा गुनाहगार था! लेकिन नहीं वहाँ तो इनके लिए उन शरिया कानूनों का उद्देश्य किसी बहाने दूसरे धर्म के लोगो को हलाल करना मात्र है। काश कि उस जज को अपने दुर्भावना और पूर्वाग्रहों से गर्षित कृत्यों पर तनिक शर्म भी आती।
ये तो थी खबर संक्षेप में, और इसे आप संक्षेप खबर न कहकर यूँ भी कह सकते है कि मीडिया ने ( प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक ) बस यही खबर फैसला आने के कई दिनों तक अपने-अपने माध्यमो पर चलाई थी, मगर किसी ने यह जुर्रत न समझी कि खबर के साथ-साथ यह भी बता दें कि सजा पाने वाले लोग कौन से धर्म के, और किस प्रान्त के रहने वाले थे ? सेक्युलर मीडिया अगर ऐसा बता देता तो इनकी सफ़ेद कमीज और हरी पैंट पर साम्प्रदायिकता का दाग नहीं लग जाता , इनके मातहतों पर वोट-बैंक नाराज नहीं हो जाता। अभी दो दिन पहले इन्होने अपने अखबारों के मुखपृष्ठ पर एक खबर प्रमुखता से छापी थी कि अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एक कश्मीरी छात्र ने सुप्रीम कोर्ट में, जहां कि क़ानून में अध्ययनरत छात्रों का एक दल घूमने गया था, वहाँ उसने अपनी धार्मिक टोपी सिर से उतारने से न सिर्फ मना किया, बल्कि इसपर सवाल उठाते हुए हंगामा भी खडा कर दिया। जबकि यह कोर्ट की परम्परा रही है कि अदालत के अन्दर टोपी उतार कर जाते है, और उसी परम्परा के आधार पर वहाँ मौजूद सुरक्षाकर्मी ने उसे टोपी उतारने को कहा था।उस खबर को प्रमुखता देने का उद्देश आप खुद समझ सकते है , सवाल यह नहीं है कि टोपी उतारना सही है अथवा नहीं, सवाल यह है कि आपको समाज में मौजूद शिष्टाचार का पालन करना चाहिये, लेकिन नहीं वहाँ भी इन्हें अपना धर्म ही नजर आया। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि जहां आपको इज्जत दी जा रही है, वहां आप इस तरह का नाजायज फ़ायदा उठाते है।
जैसा कि अब तक आपलोग भी जान चुके होंगे कि इस १७ सदस्यीय फांसीयाफ्ता दल में लगभग सभी युवक हिन्दू और सिख है और ज्यादातर पंजाब प्रांत के है। एक नासमझ बच्चा भी क़त्ल की पृष्ठभूमि को देखकर अदालत के निर्णय पर उंगली उठा सकता है। क्योंकि निर्णय में बहुत से खोट है। इस देश में ये लोग गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी से इन्साफ मांग रहे है, लेकिन अपनी गिरेवान में झांकना भूल जाते है कि इनके शरिया कानूनों का ये खुद ही किस तरह मखौल उड़ाते है। जुबान पर अल्लाह का नाम रखेंगे और दिनभर में ह़जार झूठ बोलते रहेंगे। कसाब के मामले में पाकिस्तान की अदालतों का कपट पूर्ण व्यवाहार जग-जाहिर है, कि किस तरह उन्होंने मुंबई दंगो के मास्टर माइंड को बचाया । बाकी सब कुछ अगर भूल भी जाइए तो ये लोग अपनी कुरआन की और शरिया कानूनों की बार-बार दुहाईया देते हुए कहते है कि उसके मुताविक जो व्यक्ति मुसलमान है, उसके लिए शराब और उससे सम्बंधित कारोबार ही इस्लाम के मुताबिक हरामहै; ( यहाँ यह भी स्पष्ट कर दूं कि मैंने अपने इस लेख में कहीं भी इस्लाम की बुराई नहीं की है क्योंकि मुझे धर्म से कोई शिकायत नहीं है, मैं बुराई कर रहा हूँ उसे मानने वालो की, उनके पक्षपातपूर्ण व्यवहार की )
quran:
ऐ ईमान लानेवालो! ये शराब और जुआ और देवस्थान और पाँसे तो गन्दे शैतानी काम है। अतः तुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो॥5. अल-माइदा 90॥
शैतान तो बस यही चाहता है कि शराब और जुए के द्वारा तुम्हारे बीच शत्रुता और द्वेष पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद से और नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम बाज़ न आओगे?॥91॥
अब मजेदार बात यह है कि जिस पाकिस्तानी को इन ५०-६० हिन्दू और सिख मजदूरों ने पीटा था ( जानकारी के मुताविक उन्होंने उसे मारने के उद्देश्य से नहीं पीटा था, ५०-६० लोगो के हंगामे के बीच कैसे और कौन उस पाकिस्तानी के सिर पर लोहे की छड मार गया, उन १७ युवकों को भी नहीं मालूम, उन्हें तो सिर्फ वहां की पुलिस ने घटना के बाद घटनास्थल से गिरफ्तार किया था, और वह पाकिस्तानी बाद में अस्पताल में मरा था) वह पाकिस्तानी शराब के गैरकानूनी धंधे में लिप्त था, यानी इस्लाम के मुताविक हराम का काम कर रहा था, तो अगर फैसला सुनाने वाला भी सच्चा मुसलमान था तो उसे तो इन १७ भारतीयों को फांसी की सजा सुनाने के बजाये इनाम देना चाहिए था कि उन्होंने एक इस्लाम के हराम को ही हलाल कर दिया, क्योंकि वह पाकिस्तानी तो इस्लाम का सबसे बड़ा गुनाहगार था! लेकिन नहीं वहाँ तो इनके लिए उन शरिया कानूनों का उद्देश्य किसी बहाने दूसरे धर्म के लोगो को हलाल करना मात्र है। काश कि उस जज को अपने दुर्भावना और पूर्वाग्रहों से गर्षित कृत्यों पर तनिक शर्म भी आती।
क्या कहें???
ReplyDeleteयह सब अपनी मनमर्जी करते है, अपनी कुरान को अपने मन मुताबिक बदलते रहते है, उस का अर्थ अपने हिसाब से लगाते है, क्या कहे जी
ReplyDeleteयानी इस्लाम के मुताविक हलाल का काम कर रहा था, तो अगर
ReplyDeleteलगता है आप ने ऊपर वाली लाईन मै हलाल की जगह हराम लिखना था, ओर नीचे भी...
सजा सुनाने के बजाये इनाम देना चाहिए था कि उन्होंने एक इस्लाम के """हलाल" को ही हलाल कर दिया, क्योंकि वह पाकिस्तानी तो इस्लाम का सबसे बड़ा गुनाहगार था! लेकिन नहीं वहाँ तो इनके लिए उन शरिया कानूनों का उद्देश्य किसी बहाने दूसरे धर्म के लोगो को हलाल करना मात्र है।
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ReplyDelete.
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आदरणीय गोदियाल जी,
अच्छा मुद्दा उठाया आपने,
एक Group clash में एक व्यक्ति की जान जाने पर दूसरे धर्म के १७ को सजाये मौत दे देना सीधे तौर पर कानून का मजाक है, इस निर्णय में वाकई खोट है।
परंतु 'हलाल' और 'हराम' को लेकर थोड़ा भ्रम प्रतीत होता है पोस्ट पढ़कर...
हलाल
Synonyms
None found.
Antonyms
None found.
Definitions
adjective
1. proper or legitimate
2. conforming to dietary laws
Example: a halal kitchen
noun
1. (Islam) meat from animals that have been slaughtered in the prescribed way according to the shariah
तथा...
हराम
Urdu (Transliterated)
Haraam = forbidden, unlawful.
"शरिया कानूनों की बार-बार दुहाईया देते हुए कहते है कि उसके मुताविक जो व्यक्ति मुसलमान है, उसके लिए शराब और उससे सम्बंधित कारोबार ही इस्लाम के मुताबिक हलाल है;"
यहाँ 'हलाल' की जगह 'हराम' होगा।
"वह पाकिस्तानी शराब के गैरकानूनी धंधे में लिप्त था, यानी इस्लाम के मुताविक हलाल का काम कर रहा था,"
यहाँ भी 'हलाल' की जगह 'हराम' होगा।
"अगर फैसला सुनाने वाला भी सच्चा मुसलमान था तो उसे तो इन १७ भारतीयों को फांसी की सजा सुनाने के बजाये इनाम देना चाहिए था कि उन्होंने 'एक इस्लाम के हलाल को ही हलाल कर' दिया,"
यहाँ इस्लाम के मुताबिक 'हराम' के काम में लिप्त को 'हलाल' कर दिया होना चाहिये।
आभार!
इन्साफ़ ......................और उनका खुदा खैर करे
ReplyDeleteआदरणीय गोदियाल जी,
ReplyDeleteअच्छा मुद्दा उठाया आपने,
इन लोगों के बारे में तो बात करना भी अब हमें तो मूर्खता लगने लगी है...ये लोग न सुधरे है और न ही सुधरने की कोई गुंजाईश ही दिखाई देती है......
ReplyDeleteसही सवाल उठाया गोदियाल जी,सहमत हूं आपसे।वैसे प्रवीण जी सही कह रहे हैं हलाल की जगह हराम होना चाहिये था।
ReplyDeleteआदरणीय भाटिया जी और प्रवीण शाह जी , गलती की और ध्यान दिलाने हेतु आपका आभार, भूल सुधर कर दी है !
ReplyDeleteआपसे 100% सहमत
ReplyDeleteकुछ कहने को नहीं, जानते समझते सब है. :(
ReplyDeleteयहीं पर सब के मुंह पर ताला पड़ जाता है...
ReplyDeleteपोस्ट लिखकर और पढ़ कर अपनी भड़ास निकालने के सिवाय हम और कर ही क्या सकते हैं?
ReplyDeleteएक पाकिस्तानी के बदले मैं १७ भारतीय। पाकिस्तानी की मौत हुई ये बात तो सत्य है , वजह थी शराब बेचने की होड़। क्या शारजाह पुलिश को इस बात की खबर नहीं थी, की उसके यंहा भारतीय और पाकिस्तानी दोनों मिलकर के शराब बेच रहे हैं।
ReplyDeleteपाकिस्तानी की हत्या में पचास लोग गिरफ्तार किये गए , मगर उसमे से सिर्फ सत्रह हिंदुवो को ही दोषी पाया गया, क्योंकि बाकि सब पाकिस्तानी मुस्लमान थे।
क्या कभी किसी ने ये सोचा है की उन सत्रह भारतीयों के परिवार वालो का क्या दोष है।
क्या शरियत कानून में मौत की सजा के अलावा और कोई सजा नहीं है ? क्या ये सजा उम्र कैद में नहीं बदली जा सकती ?
भारत में तीन सौ लोगो की हत्या में शामिल कसाब अब रोज नए पैतरे बदल रहा है। हमारे ही देश के गद्दार वकील उसकी जान बचने में लगे हुए हैं। रोज नए - नए साबुत पेश किये जाते हैं। संसद पर हमला करने वाले प्रमुख अभियुक्त को फांसी की सजा सुना दिए जाने के बाद भी सरकार उसे फांसी नहीं दे पा रही है।
इसका मतलब ये नहीं की हमारा कानून कमजोर है , हमारे देश में माफ़ कर देने की परंपरा है। सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते।