Monday, April 26, 2010

क्रिकेट प्रेमियों से एक सवाल !

मुझे नहीं मालूम कि अभी यह सवाल उठाना कितना तर्कसंगत अथवा जल्दबाजी वाली बात है ! मगर जैसे कि ख़बरें है और आरोप लगाए गए है, कल अगर यह पूर्ण सत्यापित हो जाता है कि आई पी एल के कुछ अथवा सभी मैच आईपीएल प्रवंधन के सदस्यों के निर्देश पर फिक्स थे ! आई पी एल के प्रवंधन को तो एक तरफ रख दीजिये, लेकिन दूसरी तरफ इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि उसमें खेलने वाले खिलाड़ियों की भी इसमें कोई न कोई भूमिका रही थी क्योंकि उन्होंने पैसे लेकर, ऊँची कीमतों में बिककर जनता और देश को धोखे में रखा ! एक ईमानदार सवाल यह है कि तो क्या तब यह सब जानने के बाद भी आप लोग इन खिलाड़ियों को वही मान-सम्मान, महान और पता नहीं क्या-क्या दर्जा देंगे, जो आजतक देते आये है? अथवा आपको तो सिर्फ अपने मनोरंजन से मतलब है, मैच में वो लोग क्या करते है, उससे आपको कोई सरोकार नहीं, कोई मतलब नहीं ?

11 comments:

  1. kuch din mein sab bhool jaayenge ... apne desh mein aise hi chalta hai ...

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  2. पूरी दाल ही काली है भाईजी...............
    - अलबेला खत्री

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  3. गोदियाल जी,
    हम तो क्रिकेट देखते ही नही हैं।
    इतना समय कहां जो दिन भर इनका तमाशा देखो।

    राम राम

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  4. गोदियाल जी, हम तो यह गुलामो का खेल देखते भी नही पसद भी नही करते.... भाड मै जाये यह सब ओर इस के खेलने वाले

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  5. जिनके मन काले है भीतर से,
    उनके hi मुख पे इतना निखार क्यों है?


    कुंवर जी,

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  6. भरोसा नहीं होता यार ...

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  7. जहां बड़े लोग शामिल हों वहां कुछ पता नही चलेगा

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  8. क्रिकेट प्रेमी (आपका सवाल क्रिकेट प्रेमी से था) मान-सम्मान न भी दें तो क्या फ़र्क़ पड़ता है। दागियों को और भी कुछ मिल जाता है, देश की भोली-भाली जनता द्वारा। पिछला चुनाव उदाहरण है।

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  9. आपकी बात से सहमत हूँ मनोज जी , जिस देश में अजहर जैसे मैच फिक्सरों को अपने लाभ के लिए देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी अपना उम्मीदवार बनाए और देश की महान जनता (सेक्युलर जनता ) उसे इस आधार पर जिता दे कि अपना ही विरादर है, वहाँ से और भला क्या उम्मीद की जा सकती है !

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  10. यही तो विडम्बना है कि आज हम कबड्डी, खो-खो को भूल गये हैं!

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  11. aap ne apne sawalo ka jawab khud apni hi tippani (manoj ji ka uttar dene)me de diya h
    ab bolne ko kuch bhi baki na raha godial sahab

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।