Thursday, April 22, 2010

लघु व्यंग्य- इंडियन पापी लीग !


खुशखबरी है साहब ! आजकल कुछ समय से मैंने भी सोचना शुरू कर दिया है, और इसी सोचने का परिणाम है यह धांसू आइडिया । मैंने सोचा, सोचा क्या ये समझो पक्का इरादा कर लिया है कि बड़े-बड़े तर गए, अपने मौन सिंह जी के शब्दों में कहे तो 'बिग फिश', बोले तो बड़ी मछलियां, कमा-धमा के इस देश से, वो बात और है कि उस कमाई पर ब्याज स्वीटजरलैंड वाले खा रहे है। अब हम भले ही बड़ी मछली न हों , मगर मेंडक के काले-काले बच्चों की तरह जमुना जी के गंदले पानी में अपनी काली पूँछ हिलाकर और हाथ-पैर मारकर , हम भी अपनी दो-चार पुश्तों का भला कर ले, तो बुराई क्या है?

अत: अत्यंत हर्ष के साथ हम आपको सूचित करते है कि हमने भी एक नई कंपनी फ्लोट करने का आवेदन कंसर्न डिपार्टमेंट को भेजने का पक्का मन बना लिया है। सोच रहा हूँ कि कंपनी का मुख्य बिजनेस (खेल) होगा "गिल्ली-डंडा", कम्पनी का नाम रखूंगा, 'इंडियन पापी लीग'! देश के जितने भी पापी इस कंपनी के शेयर होल्डर बनना चाहे, बन सकते है । 'मोटो' होगा " मैं तर लूं , तू तब कूदना "। अब आप कहोगे कि कंपनी का ऐसा नाम रखने की ख़ास वजह क्या है? अरे जनाव, नाम में ही तो सब कुछ धरा है, और खासकर इस देश में। और जब पूरा का पूरा देश, नाम के साथ मेल खाने वाले ग्राहकों, कस्टमरों और क्लाईंटों से पटा पडा हों तो बात ही कुछ और होती है । बस, नाम धासू होना चाहिए। पतिदेव की दिनभर की घूस और बेईमानी की कमाई को श्रीमती जी उस ब्रांडेड आइटम पर खर्च करने में ज़रा भी नहीं हिचकिचायेंगी। आखिर अपने मोहल्ले में अपनी प्रेस्टीज भी तो बनाए रखनी है। बस, अपने प्रोडक्ट का थोड़ा प्रचार अच्छा हो जाए, वो कहते है न कि 'फस्ट इम्प्रेशन इज लास्ट इम्प्रेशन।' उदघाटन के लिए मोनिया माता जी अपने चरण कमलों की धूल, नारियल के नीचे रखे तांबे के कलश पर डाले दे, फिर देखो, अमेरिका से बुलाई गई गोरी-गोरी चमड़ी और रेशमी बालों वाली आइटम गर्ल अपनी झल्लिका घेरावत के साथ मिलकर कैसे ठुमक-ठुमक कर दर्शक दीर्घा में बैठे, मुह से लार टपका रहे मोटे- खूसट पापियों का मन लुभाती है। और यह बड़े ही सौभाग्य की बात है हमारे लिए कि नाम के हिसाब से मेल खाने वाले मोटी तोंद के शेयर होल्डर भी प्रचुर मात्रा में मौजूद है, अपने देश में। जो सीधे दस का सौ करने में इंटेरेस्ट रखते है। मैच देखने के लिए ऐसे दर्शकों की भी कोई कमी नहीं है, जिनके मम्मी-पापा किसी मलाईदार सरकारी डिपार्टमेंट में कार्यरत न हों, अथवा, पापाजी दूकान को कभी-कभार बेटे के भरोसे छोड़कर लंच करने न जाते हो।बस इस बीच में एक ग्राहक टपक जाना चाहिए ढंग का, बेटे जी उसी से पूरी मैच की टिकिट की वसूली कर लेते है।

एक बार चल पडी तो मैं कम्पनी का चेयरमैन बन जाउंगा। मगर हाँ, ट्वीटर को तो बिलकुल भी हाथ नहीं लगाउंगा, चाहे मेरा जिगरी दोस्त सुरुर पूरे शुरूर के साथ ही क्यों न उकसाए ऐसा करने के लिए मुझे। शेयर चाहे प्रेमिका के मार्फ़त खरीदो अथवा बीबी के मायकेवालों के मार्फ़त, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। बस शेयर ऊँची बोली में उठने चाहिए, बाद बाकी तो मुझे किसी से कुछ लेना-देना नहीं! फ्रेंचाइजी के लिए नेता-मंत्रियों और मोटी अफसरशाही के सारे रिश्तेदारों का हमेशा ही गोपनीय ढंग से स्वागत किया जाएगा। टैक्स बचाना है तो सरकार की नाराजगी तो बिलकुल भी नहीं लूंगा, क्योंकि इनकी कमवक्त एजेंसियों की कुम्भकर्णी नींद भी तभी टूटती है जब सरकार नाराज होती है, वरना तो मछली क्या , यहाँ से बड़े-बड़े घड़ियाल और मगरमच्छ तैर के निकल जाते है, और ये कभी खुंदक में दबोचते भी है तो मेंडक के बच्चों को।
नोट: छवि गुगुल से साभार

8 comments:

  1. "एक बार चल पडी तो मैं कम्पनी का चेयरमैन बन जाउंगा।"

    or humaara kya godiyaal sahaab...?

    kunwar ji,

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  2. अच्छा तरीका है………………अपनी बात समझाने का मगर यहाँ सबके आँख, कान बन्द है। सुन्दर व्यंग्य।

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  3. वन्दना said...

    अच्छा तरीका है………………अपनी बात समझाने का मगर यहाँ सबके आँख, कान बन्द है। सुन्दर व्यंग्य।


    vandana ji ki baat se sahmat hai hum bhi

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  4. बहुत दमदार व्यंग लिखा है गोदियाल जी. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  5. thik h ji aapki baat
    jab mujhe lagega ki m bhi paap ki seema paar kar chuka hu to sirji mujhe kaam - vaam jarur de dena
    vaise kafi achi peshkash h sayad kisi pe asar ho hi jaye

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  6. बढ़िया व्यंग लिखा है । लेकिन यहाँ कोई सुन रहा है क्या ?

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।