Friday, April 2, 2010

गिद्ध दृष्ठि अब सफ़ेद हाथी के अस्थि-पंजरों पर !

'कॉमन वेल्थ' यानि जतो नाम ततो गुण! सचमुच कुछ लोगो के लिए तो यह मानो हड़पने हेतु कॉमन वेल्थ जैसी ही है। यह किसी की व्यक्तिगत वेल्थ नहीं, बस कॉमन वेल्थ है। देश ने कॉमन वेल्थ के नाम से जिस सफ़ेद हाथी को पाला था। जब यह पैदा हुआ था तो लोगो को इसके माध्यम से बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाए गए थे। उन्हें इसकी पीठ पर बिठाकर दिल्ली में सरपट दौड़ाने के ख्वाब दिखाए गए थे, दिल्ली वाले भी खूब उत्साहित थे, मगर इन फस्ट अप्रैल के मारों को ये नहीं मालूम था कि हाथी खरीदना आसान है, पालना मुश्किल। यहाँ की सडको पर हाथी तो क्या चूहा भी सरपट नहीं भाग पा रहा । हाँ , जनता के पैसों और जान की कीमत पर इन्होने जिस सफ़ेद हाथी को पाला पोसा और बड़ा किया, उसे ये खुद ही नोचने लगे है। स्थिति यह है कि अब वह भी मरियल सा हो गया है। इन्हें मालूम है कि मरा हुआ हाथी भी लाख का होता है, मांस में जब ख़ास कुछ नहीं बचेगा तो गिद्ध दृष्ठि अभी से अस्थि-पंजरों पर चली गई है। और कॉमन वेल्थ खेल गाँव में जो दो कमरों का फ्लैट आम जनता के लिए एक करोड़ के आस पास का रखा गया था, सुना है कि वहां पर उससे भी उच्च स्तर का फ्लैट निकट भविष्य में इन्हें मुफ्त में मिलने वाला है।

7 comments:

  1. पैसों की बर्बादी आप भारत सरकार से सीख सकते हैं. अब जहां तंत्र में लूटने वाले लोग बैठे हों तो फिर इस तरह की बातें तो होंगी ही।

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  2. बहुत ही बढ़िया चित्र खींचा है आज तो!

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  3. बहुत सही कहा!!

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  4. यहाँ की सडको पर हाथी तो क्या चूहा भी सरपट नहीं भाग पा रहा

    bilkul thik kaha aapne
    yaha ki sadko ki badhaali jagjahir hain
    thekedaar material kha jata h aur sadke intejaar me rah dekhti rah jaati hain.

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  5. सही कहा जी
    प्रणाम

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  6. सच कह रहे हैं गौदियाल जी ....

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।