देह माटी की,
दिल कांच का,दिमाग आक्षीर
रबड़ का गुब्बारा,
बनाने वाले ,
कोई एक चीज तो
फौलाद की बनाई होती !
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नयनों में मस्ती,
नजरों में हया,
पलकों में प्यार,
ये तीन ही विलक्षणताएँ
प्रदर्शित की थी महबूबा ने
मुह दिखाई के वक्त !
वो हमसे रखी छुपाये,
तेवर जो बाद में दिखाये,
नादाँ ये नहीं जानती थी कि
सरकारी मुलाजिम से
महत्वपूर्ण जानकारी छुपाना,
भारतीय दंड संहिता के तहत
दंडनीय अपराध है !!
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दहशतें बढ़ती गई,
जख्म फिर ताजा हुआ,
हँस के जो बजा था कभी
वो बैंड अब बाजा हुआ,
तेरी बेरुखी, तेरे नखरे,
कर देंगे इक दिन मेरा
जीना मुहाल,
छोड़कर बच्चे जिम्मे मेरे
जब तुम मायके चली गई
तब जाके ये अंदाजा हुआ !
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ये मैंने कब कहा था
कि तुम मेरी हो जाओ,
सरनेम (उपनाम ) बदलने को
तुम्ही बेताव थी !!
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जानता हूँ ,
हमारे घर बसाने के बाद
तुम्हारी माँ, यानि
मेरी सास ने
३ फुट गुणा ६ फुट का
पर्दा क्यों भेजा ,
क्योंकि वो जानती है कि
महंगाई और
मंदी के दौर में
शहरी लोगो के पास
शारीरिक परिधानों की
अत्यंत कमी चल रही है !!
नि:शब्द करती सभी क्षणिकाएं ....बहुत सुन्दर
ReplyDeleteक्षणिकाएँ एक से बढ़कर एक हैं
ReplyDeleteये मैंने कब कहा था
कि तुम मेरी हो जाओ,
सरनेम (उपनाम ) बदलने को
तुम्ही बेताव थी !!
.......पर ये अत्यधिक सुन्दर लगी।
क्षणिकाओं में दम है - बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसभी बढ़िया हैं.
ReplyDeleteनयनों में मस्ती,
ReplyDeleteनजरों में हया,
पलकों में प्यार,
ये तीन ही तो विलक्षणताएँ
प्रदर्शित की थी महबूबा ने
मुह दिखाई के वक्त !
वो हमसे रखी छुपाये,
तेवर जो बाद में दिखाये,
नादाँ ये नहीं जानती कि
सरकारी मुलाजिम से
महत्वपूर्ण जानकारी छुपाना,
भारतीय दंड संहिता के तहत
दंडनीय अपराध है !!
वाह बहुत खूब.
सभी रचनाये व्यंग्य के साथ है..इसीलिए दिल को छूती है
ReplyDeleteकितनी प्यारी अनुभूतियाँ कैसे निराले ढंग से व्यंजित कर दीं !
ReplyDeleteभारतीय दण्ड संहिता... वो क्या चीज़ होती है, और होती तो इतने घोटाले क्यों हो रहे हैं :)
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं पढ़ीं ,अच्छी लगीं
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
सारी क्षणिकायें अत्यन्त प्रभावशाली
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक क्षणिकाएं। बहुत ही अद्भुत।
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं बेहतरीन है..... बहुत उम्दा एवं सटीक
ReplyDelete//कोई एक तो चीज
ReplyDeleteफौलाद की बनाई होती !
//नादाँ ये नहीं जानती कि
सरकारी मुलाजिम से
महत्वपूर्ण जानकारी छुपाना,
भारतीय दंड संहिता के तहत
दंडनीय अपराध है !!
//हँस-हँस के बजा जो कभी
वो अब बाजा हुआ,
:D
mazaa aa gaya sir.. ek se badhkar ek sabhi :)
लाज़वाब! हरेक क्षणिका एक से बढ़ कर एक...बधाई !
ReplyDeleteBahut khoob ... Sabhi lajawab ...
ReplyDeleteहा हा हा ! बहुत बढ़िया गोदियाल जी । तीसरी तो बहुत मज़ेदार लगी ।
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक है.... सुंदर प्रस्तुति
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