आप कल्पना कीजिये कि वह वक्त कैंसा रहा होगा जब कोई अंग्रेज किसी गरीब और मजबूर भारतीय के घर के किसी सदस्य को नीलामी में खरीदकर, गुलाम बनाकर अपने किसी उपनिवेश पर जानवरों की तरह काम करवाने के लिए उसे अपने साथ लेकर चलने को तैयार होता होगा, दूसरी तरफ अपने परिवार से सदा के लिए विदा होता वह अभागा गुलाम और उसका परिवार एक दूसरे से बिछुड़ते हुए किस तरह बिलख-बिलखकर रोते होंगे, उनकी शारीरिक स्थिति और मनोदशा उसवक्त कैसी भयावह रहती होगी, इन्सान होने के नाते हम उस बात का सहज अंदाजा तो लगा ही सकते है।
और शायद इसी की परिणीति थी ज़माने का वह दौर जब समाज में किसी को 'बिका हुआ', अथवा 'नीलाम' की संज्ञा देना अपने आप में एक गाली समझी जाती थी। किसी को मजाक में भी बिका हुआ कह दो तो वह काटने को दौड़ता था। हाँ, कोई अगर इस क्रिया में रंगे हाथों पकड़ा जाए तो उसके लिए मरने जैसी स्थित हो जाती थी, मुह छुपाने के लिए वह दर-दर भागा करता था। और फिर आया आधुनिक सभ्यता का दौर, वैश्विक बाजार व्यवस्था का दौर। और इस दौर ने बिकने और नीलाम होने की सारी परिभाषाएं ही पलट कर रख दी। बिके हुए अथवा नीलाम हुए इंसान के माशाल्लाह, ज़रा नखरे तो देखो, उजली पोशाक, बड़ा सा बँगला, चमचमाती महंगी विदेशी कार, और शरीर में ऐंठन। हो भी क्यों न, जब उसके अगल-बगल उसके अंगरक्षक के तौर पर बड़ी तादाद में काली वर्दी में कमांडो हो, भिन्न-भिन्न पोज में फोटो खींचने और वीडिओ बनाने को मीडिया वाले आपस में ही एक दूसरे के ऊपर चढ़ रहे हों, ऑटोग्राफ लेने को भीड़ कतार में आतुर खड़ी हो। कोई और बोले न बोले मगर खुद उसके घरवाले ही उसे इस नीलामी पर गर्व से सीना चौड़ा करके कहते होंगे, मेरा नीलाम लाडला ! वाह रे वक्त, तुम वाकई बलवान हो !
प्रसिद्द लेखक और कवि स्वर्गीय विष्णु प्रभाकर जी की ये चंद लाइने भी याद आ गई;
चुके हुए लोगों से
ख़तरनाक़ हैं
बिके हुए लोग,
वे
करते हैं व्यभिचार
अपनी ही प्रतिभा से !
अब ज़रा एक नजर हालिया कुछ ख़ास नीलामी की ख़बरों पर पर भी डाल लेते है ;
-राष्ट्रपति बनने से पहले बराक ओबामा जिस कार से सफर करते थे उसकी अब नीलामी होने जा रही है। उसकी प्रारंभिक बोली 10 लाख डॉलर रखी गई है। वर्ष 2005 की सिलेटी रंग की क्रिसलर सेडान ई बे पर नीलाम होने जा रही है।
-दिवंगत पॉप गायक माइकल जैक्सन के दीवालिया त्वचा विशेषज्ञ डॉक्टर आर्नोल्ड क्लीन दिवंगत पॉप गायक के अनसुने गीत की नीलामी करने जा रहे हैं। क्लीन ने साढ़े आठ लाइनों के हाथ से लिखे इस गीत को दीवालिया होने के बाद नीलाम करने की घोषणा की। उन्हें 3,000 से 5,000 पाउंड में इस गीत की नीलामी होने का अनुमान है।
-नीलाम होगी गद्दाफी की खून से सनी कमीज लंदन। लीबिया के पूर्व तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी की खून से सनी कमीज और शादी की अंगूठी अब नीलाम होने जा रही है। यह वही कमीज है, जिसे गद्दाफी ने अपनी मौत के वक्त पहना था।
-सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार हमारे देश के दिग्गजों की नींद हराम करने वाली २जी की फिर से नीलामी होगी और दोबारा नीलामी में भाग लेगी। दूरसंचार सेवा प्रदान करने वाली नार्वे की सरकारी कंपनी टेलीनॉर की भारतीय इकाई यूनीनार ने कहा है कि वह टूजी स्पेक्ट्रम के लिए दोबारा होने वाली नीलामी में भाग लेगी।
-अमिताभ बच्चन ने कहा कि फ़िल्मी सितारों की भी होती है नीलामी, उन्होंने शनिवार को आइपीएल में नीलामी के वर्तमान सत्र को देखते हुए यह टिप्पणी की।
ऊपर की जिन ख़बरों पर नजर डाली वे सभी वस्तुओं की नीलामी की थी, अब जो बात शुरू अमिताभ जी की टिपण्णी से हुई, अब आते है उसी बात पर; ३५० खिलाड़ी आईपीएल-५ में नीलाम होने की कतार में बैठे थे।पिछले शनिवार को नीलामी शुरू हुई और उम्मीद के मुताबिक इंडियन प्रीमियर लीग पांच की खिलाड़ियों की नीलामी में रविन्द्र जडेजा सबसे महंगे क्रिकेटर रहे, जिन्हें चेन्नई सुपर किंग्स ने 20 लाख डालर :लगभग 9 . 72 करोड़ रुपये: में खरीदा ।जडेजा का आधार मूल्य सिर्फ एक लाख डालर था और चेन्नई की टीम ने 20 लाख डालर की अधिकतम नीलामी राशि पर डेक्कन चार्जर्स के साथ मुकाबला बराबर रहने के बाद सौराष्ट्र के इस खिलाड़ी को टाईब्रेकर में खरीदा।
बस इतना ही कहूंगा कि वाह री किस्मत ! काश कि हम भी नीलाम होने लायक होते !
अब एक खबर अपने पड़ोस की भी देख ले ;
पाकिस्तान ने इंग्लैंड को तीसरे टेस्ट में 71 रनों से शिकस्त देकर टेस्ट मैचों की सीरीज में 3-0 से क्लीन स्वीप किया। यह पहला अवसर है जब पाकिस्तान ने इंग्लैंड को सीरीज के सभी मैच में हराकर व्हाइटवाश किया। पाकिस्तान ने कुल पांचवीं बार किसी सीरीज में क्लीनस्वीप किया। आखिरी बार उसने 2003 में बांग्लादेश के खिलाफ 3-0 से क्लीनस्वीप किया था। उसने इस जीत से इंग्लैंड के हाथों पिछली दो सीरीजों में मिली हार का बदला भी चुकता कर दिया।
अब ज़रा इस इंसानों की नीलामी के महानायक अथवा खलनायक की भी चर्चा कर ली जाए तो अनुचित न होगा। दिसंबर १९२८ में कलकता क्रिकेट कल्ब की दूकान को अधिग्रहित कर बीसीसीआई के नाम से यह संस्था बनाई गई। और आज इस देश में क्रिकेट की एकछत्र ठेकेदार है। आज इस देश में क्रिकेट की जो भी स्थिति है, उसका लगभग सारा ही श्रेय इस संस्था को जाता है। इस संस्था के बारे में बहुत से रोचक तथ्य है, कुछ हालिया रोचक तथ्य यह है कि देश के ज्यादातर लोगो खासकर निठल्ली प्रवृति के लोगो में बड़ी कुशलता से क्रिकेट रूपी वायरस डालकर, मोटी टिकट कमाई से मालामाल इस संस्था को जब आरटीआई के दायरे में लाने की बात उठी तो इनके कर्ता-धर्ताओं द्वारा विरोध स्वरुप जो तर्क दिया गया वह था कि जी हम तो एक प्राइवेट स्वायत संस्था है, इसलिए हमें उसके दायरे में नहीं लाया जा सकता। इनके इस तर्क से जो सवाल उपजे वो और भी मजेदार है, मसलन जैसे क्या प्राइवेट संस्थाएं भी स्वायत हो सकती है इस देश में? क्या प्राइवेट स्वायत संस्थाओं को इसकदर कर में छूट भी दी जाती है इस देश में? जैसा कि इन्होने कोर्ट में दावा किया कि ये एक प्राइवेट संस्था है, इसलिए भारतीय कानूनों के प्रति जबाबदेह नहीं है, तो फिर क्या इतने बड़े इस देश के, जहां कुछ लोग इसे एक धर्म की तरह मानते है, के पूरे क्रिकेट तंत्र का ठेका इन्हें किसने दिया? और यदि ये इसके असली ठेकेदार हैं तो फिर ८६ साल बाद भी कुछ महानगरों तक ही इनके खिलाड़ियों के चयन की दुकाने सिमटी हुई है, देश के दूर-दराज के युवा प्रतिभावान खिलाड़ियों के जीवन से ये क्यों खिलवाड़ कर रहे है? यदि ये प्राइवेट संस्थान है तो इसे देश में किसी और प्राइवेट संस्थान ( आई सी एल एक उदाहरण है ) को खुलने और चलने से रोकने वाले ये कौन होते है?
खैर, अंत में यही कहूंगा कि हम हिन्दुस्तानियों की एक बुरी आदत है कि क्या राजनीति, क्या खेल, क्या व्यवसाय, जहां हमें मलाई खाने को मिल जाए, हम चिपककर बैठ जाते है। खुदा से यही दुआ करूंगा कि भले ही लोग नीलाम हो रहे हो, बिक रहे हो, लेकिन इन तथाकथित ठेकेदारों की पगड़ी इस अनंत सुख से बची रहे।
अब जमीर बिकते हैं। खरीददार भी कम नहीं।
ReplyDeleteपैसे में बहुत ताकत है । इंग्लेंड , ऑस्ट्रेलिया में भले ही मूंह की खानी पड़ी हो , लेकिन इन के खिलाडियों को तो नीलाम कर ही दिया । चलिए इसी ख्याल से खुश हो लेते हैं ।
ReplyDeleteसब बिकता है, बस दाम चाहिये..
ReplyDeleteजहां हमें मलाई खाने को मिल जाए, हम चिपककर बैठ जाते है।... bilkul sahi
ReplyDeleteअब तो हर कोई बिकने को तैयार है...खरीदार मिले बस.
ReplyDeleteखेल को मंडी बना दिया है....
ReplyDeleteनीलाम/बिकने की होने हज़ार वजहें हो सकती हैं, हज़ारों तरह के लोग भी हो सकते हैं जो बिकते/नीलाम होते ही रहते हैं... उन्हीं में से सरकारों के ग़ुलाम भी एक हैं जिन्हें सरकार अपना छोटू मानती है, लोग उन्हें अपना ही नहीं अपने बाप का भी नौकर मानते हैं, प्रेस उन्हें लतियाने/गुर्राने के काम लाती है, लाला उन्हें नोट डालकर चलने वाली दस्तख़त कराने की मशीन मानते हैं...ये ग़ुलाम ख़ुद को जलालत नकारने वाले रोबोट की तरह दिखने में उमर गुजार देते हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
सिर्फ देश की जनता को छोड़ के सभी निलामी लायक चीजें हैं आज ... देश की जनता बस हुक्म माने के लिए है ...
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