Wednesday, February 8, 2012

वनाचार !


इंद्रप्रस्थ  में फिर जब वसंत आया वरण का,

तो सहरा में शुरू हुआ खेल, पहले चरण का।  

प्रतिद्वंदी को झूठा बताके ,शठों ने अपने परचम लहराए , 
कुर्सी पाने हेतु चर सृष्टि से ,गिद्ध,वृक सब करबद्ध आए।  

अल्हड़ से कुम्भ में शरीकी का आह्वान किया, 
हुजूम उमड़े, भेड़ों के झुंडों ने बागदान किया।  


यथार्थ से मूँदकर आँखे, मुद्दे वही धर्म और जातपात ,

और अंतत: परिणाम क्या ? वही, 'ढाक के तीन पात' !!
















9 comments:

  1. भाई जी ...
    एक बार फिर मुंडेगी ...भेड़ हमेशा की तरह !!!
    शुभकामनाएँ!:-)))

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  2. फिर निर्णय एक आयेगा,
    पाँच वर्ष खा जायेगा।

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  3. वोटों की फिर फसल उगी,
    फिर कोई लाभ उठाएगा,
    मतदाता तो बेचारा है,
    बेचारा रह जायेगा.
    दूध मलाई दिखा के सपने,
    चाट कोई फिर जायेगा.

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  4. सोलह आने सच्।

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  5. सहरा में तो एक ही ऋतु है- लूट, लूट लूट:)

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  6. बहुत सुन्दर खुबसूरत रचना। धन्यवाद।

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  7. बेबाक सच लिखा है आपने। काफी मजबूर हैं हम सब , फिर भी वोट तो डालेंगे ही , शायद भला हो जाये, और साथ ही साथ इनके खिलाफ इतना लिखा जाएगा की ये लोभी नेता कम से कम उच्च रक्तचाप द्वारा तो मरेंगे ही।

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  8. लाजवाब। प्रवीण जी भी सच कह गए। फिर निर्णय एक आएगा पांच बरस खा जाएगा।

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  9. यथार्थ से मूँद आँखे,मुद्दा धर्म,जातपात!
    अंतत: परिणाम वही, 'ढाक के तीन पात' !!

    यही तो चल रहा है बरसों से........ सटीक पंक्तियाँ

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।