Wednesday, February 15, 2012

दुविद्या


अति सम्मोहित ख्वाब
कैफियत तलब करने
आज भी गए थे उस जगह, 
जहां कल रंगविरंगे 
कुसुम लेकर वसंत आया था !
ख़याल यह देख विस्मित थे 
कि उन्मत्त दरख्त की ख्वाईशें,
उम्मीद की टहनियों से
झर-झर उद्वत हुए जा रही थी,
पतझड़ पुन:दस्तक दे गया था  
या फिर वसंत के पुलकित एहसास ही
क्षण-भंगूर थे, नहीं मालूम !! 

11 comments:

  1. मेरे मन कुछ और है, साँई के कुछ और ...

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  2. सुन्दर ..
    kalamdaan.blogspot.in

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  3. दरख्त ख़्वाहिश और उम्मीद की टहनी ...बहुत सुंदर बिम्ब से सजी अच्छी रचना ॥

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  4. पतझड़ पुन: दस्तक दे गया था
    या फिर वसंत के
    पुलकित एहसास ही
    क्षण-भंगूर थे, नहीं मालूम !!... जाने परिस्थितियाँ हावी हैं या मन की स्थिति

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  5. Lovin' it...quite romantic !...

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  6. ग्रीष्म का भय बसंत को विचलित कर रहा है..

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  7. Behtareen rachna. Janab aap shayad bhool rahe hain ki is internet mein ek jagah log apka kaafi dino se intezaar kar rahe hain, wahan bhi tashreef laaiye!

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  8. कौन सी सोच कहाँ क्या देखती है ये तो रहस्य ही है ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।