...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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प्रलय जारी
चहुॅं ओर काली स्याह रात, मेघ गर्जना, झमाझम बरसात, जीने को मजबूर हैं इन्सान, पहाड़ों पर पहाड़ सी जिंदगी, फटते बादल, डरावना मंजर, कलयुग का यह ...

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नोट: फिलहाल टिप्पणी सुविधा मौजूद है! मुझे किसी धर्म विशेष पर उंगली उठाने का शौक तो नहीं था, मगर क्या करे, इन्होने उकसा दिया और मजबूर कर द...
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पहाड़ी प्रदेश , प्राइमरी स्कूल था दिगोली, चौंरा। गांव से करीब दो किलोमीटर दूर। अपने गांव से पहाड़ी पगडंडी पर पैदल चलते हुए जब तीसरी कक्षा क...
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स्कूटर और उनकी पत्नी स्कूटी शहर के उत्तरी हिस्से में सरकारी आवास संस्था द्वारा निम्न आय वर्ग के लोगो के लिए ख़ासतौर पर निर्म...
मेरे मन कुछ और है, साँई के कुछ और ...
ReplyDeleteसुन्दर ..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
दरख्त ख़्वाहिश और उम्मीद की टहनी ...बहुत सुंदर बिम्ब से सजी अच्छी रचना ॥
ReplyDeleteपतझड़ पुन: दस्तक दे गया था
ReplyDeleteया फिर वसंत के
पुलकित एहसास ही
क्षण-भंगूर थे, नहीं मालूम !!... जाने परिस्थितियाँ हावी हैं या मन की स्थिति
Lovin' it...quite romantic !...
ReplyDeleteग्रीष्म का भय बसंत को विचलित कर रहा है..
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर उलझन !
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteBehtareen rachna. Janab aap shayad bhool rahe hain ki is internet mein ek jagah log apka kaafi dino se intezaar kar rahe hain, wahan bhi tashreef laaiye!
ReplyDeleteकौन सी सोच कहाँ क्या देखती है ये तो रहस्य ही है ...
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